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पंजाब में स्कूल मुनाफाखोरी में जुटे, फीस के चक्कर में पिस रहे अभिभावक... सीएम की चुप्पी नहीं टूट रही

दैनिक जागरण कार्यालय में हुई राउंड द टेबल के दौरान अभिभावकों का कहना है कि स्कूल वाले मुनाफाखोरी पर तुले हुए हैं। इस बारे में पंजाब सरकार को सख्त कदम उठाना चाहिए लेकिन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने चुप्पी साध रखी है।

By Vikas_KumarEdited By: Published: Tue, 11 May 2021 11:30 AM (IST)Updated: Tue, 11 May 2021 11:30 AM (IST)
पंजाब में स्कूल मुनाफाखोरी में जुटे, फीस के चक्कर में पिस रहे अभिभावक... सीएम की चुप्पी नहीं टूट रही
दैनिक जागरण कार्यालय में हुई राउंड द टेबल के दौरान अभिभावक।

जालंधर, [अंकित शर्मा]। डेढ़ साल से बच्चे घर पर ही बैठ कर आनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं, मगर स्कूल वाले मुनाफाखोरी पर तुले हुए हैं। वे हर तरह के हत्थकंडे अपना रहे हैं, ताकि बच्चों की फीस से लेकर हर फंड की वसूल सकें। उन्हें तो बस पैसों से मतलब है। अभिभावकों की परेशानियों के बारे में स्कूल मैनेजमेंट सुनने को तैयार नहीं हैं। किसी का काम चल रहा हो या न चल रहा हो, किसी के पास नौकरी हो या न हो, पैसे हों या न हों, उन्हें अपनी पूरी फीस चाहिए। यह दर्द अभिभावकों ने दैनिक जागरण कार्यालय में हुई राउंड द टेबल के दौरान जाहिर किया। अभिभावकों का कहना है कि इस पर पंजाब सरकार को सख्त कदम उठाना चाहिए, लेकिन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने चुप्पी साध रखी है।

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22 मार्च 2020 को लगे लाकडाउन के बाद सैकड़ों लोगों की नौकरी चली गई तो हजारों लोगों के कामकाज बंद हो गए, मगर स्कूल वाले तो सिर्फ अपने खर्चे पूरे करने पर लगे हुए हैं। सरकार को चाहिए था कि वो पेरेंट्स के हक में आगे आए। पिस तो मध्यम वर्ग रहा है। जिसके दो या तीन बच्चे हैं वो बिना कामकाज के फीस का जुगाड़ कैसे करेगा। पता नहीं क्यूं कैप्टन साहब इस मुद्दे पर सामने नहीं आ रहे। कोई भी विधायक सा सांसद भी इस मुद्दे पर नहीं बोल रहा है। क्या किसी ने यह चेक किया कि किसी स्कूल में पहले 40 शिक्षक थे तो आज वहां 20 कैसे रह गए? स्कूलों ने अपने खर्च तो घटा लिए और सारा बोझ पेरेंट््स पर डाल दिया।

मोंटू सिंह, प्रधान, पेरेंट्स एसोसिएशन माडल हाउस

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स्कूलों ने अपना बोझ पेरेंट्स पर डाल दिया। आनलाइन पढ़ाई करवा रहे हैं, मगर खर्च लाकडाउन के पहले वाले ही करवा रहे हैं। इसके लिए सरकार को चाहिए कि वो आगे आए और पेरेंट्स को भी चाहिए कि वो इक_े होकर स्कूलों के खिलाफ आवाज उठाएं। शराब के ठेके सुबह छह बजे खोल दिए जो रात भर खुले रहते हैं, पर आम आदमी अगर रेहड़ी भी लगा ले तो उससे धक्केशाही व पावर दिखाई जाती है। सरकार को इस पर कदम उठाना चाहिए।

कन्नू बहल, व्यवसायी

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सवा साल से स्कूल बंद पड़े हैं। उनकी बिल्डिंग का कोई इस्तेमाल नहीं किया गया। बावजूद स्कूल संचालक अपनी दुकानदारी चलाने के लिए अभिभावकों पर अतिरिक्त बोझ डाल कर अपने खर्चे पूरे कर रहे हैं। इस मुद्दे पर सरकार भी चुप है, तभी तो सुबह कुछ बयान आता है और शाम होते-होते यह बदल जाता है। शिक्षा मंत्री भी इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं कर रहे। दिल्ली के सरकारी स्कूल प्राइवेट स्कूलों को टक्कर दे रहे हैं, क्योंकि वहां सिस्टम बनाया गया। यहां सिर्फ बातें ही हैं।

गौरव अरोड़ा

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सिस्टम में गड़बड़ी है, तभी तो कोई भी मंत्री व नेता इस मुद्दे पर बोलने को तैयार नहीं है। सवा साल से बच्चे स्कूल नहीं गए। घर से ही पढ़ाई कर रहे हैं, मगर जिस प्रकार से स्कूलों की तरफ से परेशान किया जा रहा है, यह पेरेंट््स को ही पता है। सरकार को चाहिए कि वो खुद स्कूलों से निपटे। उनके लिए कोई न कोई सुविधा मुहैया कराए। अभिभावकों पर अतिरिक्त बोझ तो न डाला जाए। जब स्कूल चलते थे तो कामकाज भी ठीक था। अभिभावकों ने तब किसी प्रकार से फीस के लेकर आवाज नहीं उठाई। आज हालात ठीक नहीं हैं तो उन्हें भी समझना चाहिए।

राज कुमार राजू, समाज सेवक

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जब से लाकडाउन लगा हुआ है, कामकाज नहीं चल रहा, क्योंकि हर तरह के फंक्शन बंद हैं। आमदनी के सभी रास्ते बंद हैं। जिस घर में दो या तीन बच्चे हैं, वो अपने बच्चों का खर्च कैसे उठाएंगे। स्कूल वाले तो ट्यूशन फीस के अलावा बिल्डिंग फंड, एनुअल चार्जेस, आइटी फंड आदि के साथ-साथ अब एडमिशन फीस की डिमांड भी कर रहे हैं। सरकार को चाहिए कि वे म्यूजिशियन और मध्यम वर्ग के बारे में भी सोचे।

हकीकत राय, गायक

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स्कूल में ट्यूशन फीस देने की बात है तो किसी को कोई एतराज नहीं, क्योंकि पढ़ाई तो बच्चों की चल रही है। इसके अलावा न तो ट्रांसपोर्टेशन है और न ही स्कूल की बिल्डिंग का इस्तेमाल। इसके बावजूद अभिभावकों से पहले वाले सभी चार्जेज मांगे जा रहे हैं। जिस घर में दो बच्चे हैं, उन्हें अलग-अलग फोन लेकर दिया, साथ में इंटरनेट कनेक्शन दिया, क्योंकि बच्चों की एक ही समय में अलग-अलग क्लासें होनी हैं। स्कूल ने तो क्लास के अलावा कोई सुविधा नहीं दी।

बलजीत सिंह

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लाकडाउन जब से लगा है, कारोबार व दुकानदारी तो पटरी पर आ ही नहीं पाई। भार्गव नगर में ऐसे कई अभिभावक हैं, जिन्होंने बच्चों के लिए बैंक से लोन लिया था, ताकि वे अच्छे स्कूल में पढ़ा सकें। आज कामकाज न होने पर वे कर्ज में डूब गए हैं। बैंक तो अपना ब्याज डाल कर मोटी रकम वसूल रहा है और ऊपर से स्कूल अपनी मुनाफाखोरी पर उतरे हुए हैं। स्कूलों ने सालों तक मुनाफी ही कमाया। सभी समझौते क्या सिर्फ अभिभावकों के लिए ही हैं, स्कूलों की कोई जिम्मेदारी नहीं।

शेर सिंह

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स्कूलों की तरफ से आनलाइन क्लासें लगवाई जा रही हैं, जिसके लिए ट्यूशन फीस काफी हैं। मगर वे तो इस बात पर अड़े हुए हैं कि जल्द से जल्द सभी फंड देकर अपना बैलेंस क्लियर करें। बच्चों की आनलाइन क्लासों तक से नाम काटे जा रहे हैं। तरह के मैसेज व फोन काल के जरिये पेरेंट्स को परेशान किया जा रहा है। स्कूलों को तो बस सभी तरह की फीस चाहिए।

वरिंदर कुमार


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