इतनी तेजी से तो कोरोना भी नहीं फैल रहा जितनी तेजी से नेता दल बदल रहे, पढ़ें अमृतसर की रोचक खबरें
Punjab Assembly Election 2022 पंजाब चुनाव में टिकटों के बंटवारे ने नेताओं की पोल खोलकर रख दी है। हाईकमान से नाराज नेता रातोंरात पार्टी बदल रहे हैं। उन्हें तो बस हर हाल में टिकट चाहिए। इससे उनकी विश्वनीयता पर प्रश्न चिन्ह लग गया है।
विपिन कुमार राणा, अमृतसर। इस बार का विधानसभा चुनाव कुछ अलग है। जिस तरह से दल-बदल हो रहा है, उसने सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं। किसी को खुद को तो किसी के चहेते को टिकट नहीं मिला तो उसने दूसरी पार्टी का दामन थाम लिया। पिछले दिनों एक सियासी महफिल लगी तो इसमें चर्चा का विषय भी दलबदल रहा। एक वर्कर ने चुटकी लेते हुए कहा कि इतनी तेजी से तो कोरोना भी नहीं फैल रहा, जितनी तेजी से दलबदल हो रहा है। तभी दूसरे ने कहा कि पहले 24 घंटे इमरजेंसी के बारे में सुना था, अब तो पार्टियों ने 24 घंटे दल बदलने वालों के स्वागत में द्वार खोल दिए हैैं। बस आपको दरवाजा खटखटाकर अंदर आना है। एक ने तो पार्टी बदलने वालों की विश्वसनीयता पर ही सवाल खड़े कर दिए, बोले-जो जिस पार्टी में सालोंसाल रहे, वे उसके नहीं हुए, उनसे आगे भी क्या उम्मीद की जा सकती है?
चेहरे की ही तो लड़ाई है
विधानसभा चुनाव-2022 में चेहरों को लेकर खासी कशमकश छिड़ी हुई है। सीएम का चेहरा कौन होगा और किस चेहरे को आगे रखकर पंजाब के लोगों से वोट मांगे जाएंगे, इसे लेकर हर पार्टी में गणित बिठाया जा रहा है। यही वजह रही कि जब कांग्रेस ने अपनी प्रचार मुहिम छेड़ी तो उन्होंने चरणजीत सिंह चन्नी, नवजोत सिंह सिद्धू और सुनील जाखड़ की फोटो वाले होर्डिंग लगाकर पार्टी के चेहरों से जनता को रूबरू करवाया। इसी तर्ज पर अकाली दल ने पहले केवल सुखबीर बादल और आम आदमी पार्टी ने अरविंद केजरीवाल को चेहरे के रूप में पेश किया। हालांकि जैसे-जैसे चुनाव प्रचार ने जोर पकड़ा तो सुखबीर के होर्डिंग पर प्रकाश सिंह बादल और आप के होर्डिंग पर भगवंत मान की फोटो लग गई। सियासी गलियारे में इस पर लोग चुटकी लेने से बाज नहीं आए। बोले-चेहरे की तो लड़ाई है। सबको पता है किस चेहरे पर वोट पड़ने हैं।
पहरावे पर सियासी रंग
राजनीतिक तौर तरीके आजकल चर्चा में हैं। विशेषकर सियासी पहरावे ने तो लोगों की परेशानी बढ़ाई हुई है। कंपनी बाग के सामने स्थित टी स्टाल पर कुछ ऐसी ही चर्चा छिड़ी हुई थी। चाय की चुसकियां ले रहे लोग बारी-बारी अपनी शमूलियत पेश कर रहे थे। तभी शर्मा जी बोले, अगर कोई मफलर पहनकर चलता है तो लोग उसे केजरीवाल के साथ जोड़ देते हैं। अगर कोई लान्ग कोट पहनता है तो उसे अकाली बना देते हैं। यही हाल परंपरागत लोई और शाल ओढ़न वालों के लिए भी बने हुए हैं। किसी को कोई चन्नी समर्थक तो कोई सिद्धू का खास बोलने लगता है। तभी बीच में से आवाज आई, क्या अब लोग ठंड से बचने के लिए यह सब पहनना या ओढऩा छोड़ दें। सियासत ने वैसे भी सबको अपने रंग में रंगा हुआ है, लोगों के कपड़े ही बचे थे, अब उस पर भी छाप पड़ने लगी है।
नेताजी द्वारे, बुरे घिरे बेचारे
जब चुनाव आते हैं तो नेताजी इलाके में नजर आते हैं। वरना उनके दर्शन तो लोगों को नसीब नहीं होते। वे अपनी समस्याएं हल करवाने के लिए उन्हें ढूंढते रहते हैं। शहर के भी बहुत से नेता ऐसे रहे, जिन तक लोगों की सीधी पहुंच नहीं थी, पर लोग कोरोना की करामात का धन्यवाद कर रहे हैं, जिन्होंने नेताओं को द्वारे-द्वारे लाकर खड़ा कर दिया। पिछले दिनों एक वरिष्ठ नेताजी चुनाव प्रचार के लिए घर-घर दस्तक दे रहे थे। इसी दौरान कुछ लोगों ने उन्हें घेर लिया और हलके में लंबे समय तक गायब रहने के सवाल दागने शुरू कर दिए। नेताजी बोले, मैं तो आपके बीच ही था और हूं। फिर एक व्यक्ति ने कटाक्ष कि यह तो कोरोना ने आपको गलियों-मोहल्लों में लोगों के घरों तक पहुंचा दिया है, वरना आपकी तो गाड़ियों के काफिले के पास तक लोगों को भटकने नहीं दिया जाता था।