पंजाब चुनाव 2022 : अपने ही किले में कमजोर हुए कैप्टन अमरिंदर सिंह, जालंधर सहित दोआबा की चुनावी रणनीति में उलझे
Punjab Vidhan Sabha Election 2022 पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को जालंधर सहित दोआबा के अपने सियासी मैदान को मजबूती के लिए नए सिरे से मेहनत करनी होगी। अभी तक कई विधानसभा सीटों पर कैप्टन के उम्मीदवार इंतजार में हैं कि कब कैप्टन आए और उनका चुनाव प्रचार जोर पकड़े।
जालंधर [मनोज त्रिपाठी]। पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस छोड़ने के बाद बेशक अपनी अलग पार्टी बनाकर भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन के रूप में फिर से चुनावी मैदान में किसमत आजमा रहे हैं लेकिन जालंधर सहित दोआबा के अपने सियासी मैदान में कैप्टन को मजबूती के लिए नए सिरे से मेहनत करनी होगी। अभी तक कई विधानसभा सीटों पर कैप्टन के उम्मीदवार इसी इंतजार में हैं कि कब कैप्टन आए और उनका चुनाव प्रचार जोर पकड़े। जालंधर कैप्टन का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता रहा है। कैप्टन के अलावा कांग्रेस के सबसे सुरक्षित गढ़ के रूप में पूरे पंजाब में प्रसिद्ध जालंधर में इस बार चुनावी हवा बदली हुई नजर आ रही है। ना तो कैप्टन अभी तक अपने पुराने किले में मजबूत चुनावी रणनीति पेश कर पाए हैं और ना ही कांग्रेस विरोधी दलों पर हावी हो पा रही है।
कैप्टन के कांग्रेस से अलग होने के बाद उम्मीद की जा रही थी कि जालंधर से कुछ अच्छे चेहरे भी कैप्टन के पाले में जा सकते हैं लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। एक अकेले मोहिंदर सिंह केपी को अपने पाले में खड़ा करने के लिए कैप्टन के पसीने छूट रहे हैं और कांग्रेस की कूटनीति में मोहिंदर सिंह केपी के साथ-साथ कैप्टन भी उलझ चुके हैं। केपी का टिकट इस बार कांग्रेस ने काट दिया है। ना ही उन्हें जालंधर की वेस्ट सीट से चुनावी मैदान में उतारा है और ना ही आदमपुर से उतरने दिया है। इसके चलते की केपी भी मझधार में लटक गए हैं।
नकोदर और आदमपुर में फंसी कैप्टन की प्रतिष्ठा
जालंधर की नकोदर व आदमपुर सीट पर कैप्टन अमरिंदर सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर लग गई है। नकोदर से काफी जद्दोजहद के बाद कैप्टन ने ओलंपियन अजीत पाल सिंह को चुनावी मैदान में उतारा था, लेकिन अजीत पाल अभी तक नकोदर विधानसभा हलके में सक्रिय नहीं हो सके हैं। इसके बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि अजीत पाल संभवत चुनाव लड़ने के मूड़ में नहीं है। अगर ऐसा होता है तो यह कैप्टन के लिए जालंधर में उल्टी गंगा बहाने जैसा होगा क्योंकि चुनावी मैदान में अगर आप का उम्मीदवार ही मैदान छोड़कर भाग जाए तो पार्टी के साथ-साथ पार्टी के मुखिया की प्रतिष्ठा भी दांव पर लग जाती है। यही हाल आदमपुर का है। आदमपुर में उम्मीदवार ना मिल पाने की वजह से कैप्टन अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए इस सीट को भाजपा के हवाले कर सकते हैं। इसे लेकर गठबंधन में विचार-विमर्श चल रहा है एक या दो दिनों में इसका फैसला भी हो जाएगा।