Punjab Election 2022: जालंधर में पुराने चेहरों पर ही भाजपा का विश्वास, कैंट सीट से दावेदार अधिक होने से फंसा पेंच
Punjab Vidhan Sabha Election 2022 जालंधर में भाजपा की ओर से तीन सीटों पर पुराने चेहरे ही उतारे गए हैं। पिछले तीन दिनों से भारतीय जनता पार्टी की पहली सूची इसी कारण से रुकी हुई थी कि चुनाव में पुराने चेहरे उतारे जाएं या नए चेहरों को टिकट दी जाए।
जालंधर [जगजीत सिंह सुशांत]। भारतीय जनता पार्टी ने पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए शुक्रवार को पहली लिस्ट जारी कर दी है। इसमें जालंधर की तीन सीटों पर पुराने चेहरे ही उतारे गए हैं। जालंधर सेंट्रल से मनोरंजन कालिया, जालंधर नार्थ से केडी भंडारी और जालंधर वेस्ट से मोहिंदर भगत की टिकट फाइनल हुई है। जालंधर कैंट की सीट पर अभी तक फैसला नहीं हुआ है। पिछले तीन दिनों से भारतीय जनता पार्टी की पहली सूची इसी कारण से रुकी हुई थी कि चुनाव में पुराने चेहरे उतारे जाएं या नए चेहरों को टिकट दी जाए। भाजपा नए चेहरों पर दांव खेलना चाहती थी, लेकिन पुराने चेहरे दबाव बनाने में सफल रहे। पार्टी ने पुराने चेहरों को इसलिए उतारा है, क्योंकि टिकट कटने पर बगावत का खतरा था। फिल्लौर सीट से शिरोमणि अकाली दल संयुक्त के उम्मीदवार के रूप में पूर्व मंत्री सरवण सिंह फिल्लौर मैदान में होंगे। भाजपा गठबंधन ने अभी करतारपुर, आदमपुर, नकोदर और शाहकोट पर भी उम्मीदवार उतारने हैं।
नार्थ में भाजपा का चौथी बार भंडारी पर दांव
कृष्णदेव भंडारी के जालंधर नार्थ हलके से चुनाव मैदान में आ जाने से मुकाबला रोचक हो गया है। इस सीट से पंजाब भाजपा के उपाध्यक्ष राकेश राठौर और पूर्व मेयर सुनील ज्योति भी टिकट के लिए मजबूती से दावा कर रहे थे। केडी भंडारी ने एक कार्यकर्ता के रूप में राजनीतिक सफर शुरू किया था और फिर पार्षद का चुनाव जीते। नगर निगम में विपक्ष के नेता बने और इसी पद पर रहते हुए शानदार काम के चलते उन्हें साल 2007 में विधानसभा चुनाव में टिकट मिल गई। वह 2007 और 2012 में कांग्रेस के दिग्गज नेता अवतार हैनरी को हराकर विधायक बने थे। अकाली दल में भी उनकी अच्छी पकड़ रही है। 2017 के चुनाव में कांग्रेस की लहर में उन्हें भारी अंतर से हार का सामना करना पड़ा था। उन्होंने नार्थ हलके में चंदन नगर अंडर ब्रिज समेत कई बड़े विकास कार्य करवाए हैं। लोगों में लोकप्रिय हैं और जमीन से जुड़े होने के कारण आम जनता की पहुंच में रहते हैं।
कमजोर पक्ष
- पार्टी कार्यकर्ताओं पर पकड़ कमजोर
- दूसरे दावेदारों से भीतरघात का खतरा
- अकाली दल का वोट बैंक कटने से भी नुकसान
मजबूत पक्ष
- आम लोगों में लोकप्रिय
- इलाके के मुद्दों पर अच्छी पकड़
- आप के उम्मीदवार से कांग्रेस को नुकसान
मनोरंजन कालिया को पार्टी में नहीं मिली टक्कर
पूर्व मंत्री मनोरंजन कालिया भाजपा के कद्दावर नेता हैं और उनके मुकाबले पर सेंट्रल हलके में कोई बड़ा दावेदार नहीं था। किशन लाल शर्मा, अनिल सच्चर और पार्षद शैली खन्ना टिकट के लिए दावा ठोक रहे थे, लेकिन आखिर में पार्टी हाईकमान ने कालिया पर ही विश्वास जताया है। जालंधर सेंट्रल सीट पर मनोरंजन कालिया और उनके पिता मनमोहन कालिया का दबदबा रहा है। मनोरंजन कालिया पंजाब भाजपा के अध्यक्ष, भारतीय जनता युवा मोर्चा पंजाब के अध्यक्ष, भाजपा विधायक दल के नेता और मंत्री रहे हैं। पार्टी में उनकी मजबूत पकड़ है और राजनीतिक रणनीति में भी वह माहिर हैं। जालंधर में मौजूदा सिविल अस्पताल की आधुनिक बिल्डिंग मनोरंजन कालिया के स्वास्थ्य मंत्री रहते ही बनी थी। पिछले कुछ समय से खराब स्वास्थ्य के कारण उनके चुनाव न लडऩे की अटकलें भी लगती रही हैं, लेकिन अब वह मैदान में हैं तो मुकाबला रोचक रहने की उम्मीद है।
कमजोर पक्ष
- अकालियों का साथ छूटने से नुकसान
- खराब स्वस्थ के कारण पब्लिक में सक्रियता कम रही
- पार्षद मनजिंदर चट्ठा के पार्टी छोड़ने से नुकसान
मजबूत पक्ष
- रणनीति बनाने में माहिर
- सेंट्रल हलके में कार्यकर्ताओं से तालमेल
- कई दशक से वोटरों में पैठ
मोहिंदर भगत को नहीं हिला पाए विरोधी
जालंधर वेस्ट हलके से मोहिंदर भगत एक बार फिर मैदान में हैं। वह पूर्व मंत्री भगत चूनी लाल के बेटे हैं। वह पिता की राजनीतिक विरासत संभाल रहे हैं और उनकी लड़ाई जातिगत वोट बैंक के आधार पर मजबूत मानी जा रही है। जालंधर वेस्ट अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित है और यहां पर रविदासिया समाज और भगत बिरादरी की बराबर वोटें हैं। अगर मोहिंदर भगत चुनाव में भगत बिरादरी से अकेले उम्मीदवार होते हैं तो यहां पर मुकाबला काफी रोचक रहेगा। पिछला चुनाव भी जालंधर वेस्ट हलके से मोहिंदर भगत ने लड़ा था, लेकिन कांग्रेस की लहर में वह पराजित हुए थे, लेकिन इस बार समीकरण काफी बदले हुए हैं। कांग्रेस की लहर थम चुकी है और आम आदमी पार्टी के मुकाबले में आने से तिकोना मुकाबला भाजपा को राहत दे सकता है। मोहिंदर भगत के लिए पार्टी की ताकत सबसे बड़ी मजबूती है। उनकी पब्लिक इमेज भी अच्छी है।
कमजोर पक्ष
- रणनीति में माहिर नहीं माने जाते
- पार्टी में ही कई विरोधी हैं
- आक्रमकता की कमी
मजबूत पक्ष
- भगत बिरादरी का बड़ा वोट बैंक
- अकाली नेताओं से अच्छे संबंध
- साफ सुथरी छवि
आठवीं बार चुनौती देने उतरे सरवण सिंह फिल्लौर
तीन बार कैबिनेट मंत्री और छह बार विधायक रहे सरवन सिंह फिल्लौर भाजपा गठबंधन के सहयोगी दल शिरोमणि अकाली दल संयुक्त की टिकट पर मैदान में हैं। सरवन सिंह फिल्लौर ने वर्ष 1977 में अपना पहला चुनाव जीता था और युवा विधायक के तौर पर पंजाब विधानसभा में प्रवेश किया था। फिल्लौर उनका बड़ा गढ़ रहा है। साल 2012 में उन्हें फिल्लौर से करतारपुर भेजा गया और वहां पर भी वह चुनाव जीत गए। हालांकि 2017 में अकाली दल छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे। कैप्टन अमरिंदर सिंह के करीबी थे, लेकिन उनके कांग्रेस छोड़ कर जाने से समीकरण बिगड़ गए और वह एक सप्ताह पहले ही भाजपा गठबंधन के सहयोगी दल शिरोमणि अकाली दल संयुक्त में शामिल हो गए थे। सरवण सिंह यहां पर बड़ा चेहरा है और सभी के लिए चुनौती बनेंगे। हर वर्ग और पार्टी में उनकी पकड़ है। वह आठवीं बार मैदान में हैं।
कमजोर पक्ष
- अकाली दल से अलग होकर पहली बार चुनाव लड़ेंगे
- नई पार्टी में वर्करों की कमी
- ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा के विरोध का खतरा
मजबूत पक्ष
- फिल्लौर में कई काम करवाए
- जनता में लोकप्रिय नेता
- दलित पालिटिक्स में माहिर