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पंजाब विधानसभा चुनाव 2022ः पिछली बार हार के बाद भी फिल्लौर से टिकट ले गए सांसद के बेटे विक्रमजीत

Punjab Chunav 2022 जालंधर की फिल्लौर एक मात्र ऐसी सीट है जहां से पार्टी ने पिछले चुनाव में हारे चौधरी परिवार के सदस्य विक्रमजीत सिंह चौधरी को टिकट दी है। उनके पिता चौधरी संतोख सिंह जालंधर लोकसभा सीट से सांसद हैं। इसलिए वह टिकट लेने में कामयाब रहे हैं।

By Pankaj DwivediEdited By: Published: Sun, 16 Jan 2022 02:55 PM (IST)Updated: Sun, 16 Jan 2022 02:55 PM (IST)
पंजाब विधानसभा चुनाव 2022ः पिछली बार हार के बाद भी फिल्लौर से टिकट ले गए सांसद के बेटे विक्रमजीत
सांसद संतोख सिंह चौधरी के बेटे विक्रमजीत सिंह चौधरी को कांग्रेस ने फिर फिल्लौर से टिकट दी है। फाइल फोटो

जासं, जालंधर। जिले की 9 विधानसभा सीटों में से 8 पर कांग्रेस न अपने प्रत्याशियों के नाम घोषित कर दिए हैं। फिल्लौर एक मात्र ऐसी सीट है जहां से पार्टी ने पिछले चुनाव में हारे चौधरी परिवार के सदस्य विक्रमजीत सिंह चौधरी को टिकट दी है। पहले चर्चा थी कि विक्रमजीत के बजाय उनकी मां करमजीत कौर को टिकट मिल सकती है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उनके पिता चौधरी संतोख सिंह जालंधर लोकसभा सीट से सांसद हैं और उनका पार्टी में अच्छा प्रभाव है, इसलिए वह टिकट लेने में कामयाब रहे हैं। हालांकि उनके लिए मुकाबला इस बार भी आसान नहीं रहेगा, क्योंकि फिल्लौर सीट पर बहुजन समाज पार्टी का बड़ा वोट बैंक है और अकाली दल के साथ गठबंधन की वजह से कांग्रेस के लिए फिर खतरे की घंटी रहेगी। पिछली बार यहां से बहुजन समाज पार्टी से अकाली दल में आए बलदेव खैहरा ने चुनाव जीता था। 

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चौधरी विक्रमजीत ही क्यों?

  • कोई दूसरा बड़ा चेहरा नहीं
  • सांसद पिता का हाईकमान पर दबाव
  • संसदीय निधि से कई काम करवाए

दूसरी पार्टियों से उम्मीदवार

बसपा-अकाली: बलदेव सिंह खैहरा

आप : प्रिंसिपल प्रेम कुमार

भाजपा : उम्मीदवार घोषित नहीं

कमजोर पक्ष

  • जनसंपर्क में कमी
  • अकाली और बसपा में गठजोड़
  • पूर्व मंत्री फिल्लौर की नाराजगी

कैप्टन को पद से हटवाने वाले परगट तीसरी बार मैदान में

कैबिनेट मंत्री परगट सिंह कैंट हलके से तीसरी बार चुनाव लड़ेंगे। पहला चुनाव उन्होंने अकाली दल से लड़ा था, लेकिन पिछले चुनाव से पहले वह कांग्रेस में शामिल हो गए थे। कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाने में उनकी खास भूमिका रही है। नवजोत सिंह सिद्धू के करीबी हैं। करीब 111 दिन के लिए मंत्री के तौर पर उनका कामकाज अच्छा रहा है और हलके में उनकी छवि पहले से बेहतर हुई है। सर्वे रिपोर्ट में पिछड़ने के बावजूद उन्होंने आखिरी दिनों में विकास कार्यों के दम पर वापसी की है। हालांकि परगट सिंह की जनता में पकड़ कमजोर है, लेकिन एक स्टार खिलाड़ी होने के नाते उनकी लोकप्रियता को कम नहीं आंका जा सकता।

परगट सिंह को ही क्यों?

-चर्चित चेहरा और बड़ा नाम हैं

- कैंट में पुलिस और खिलाड़ियों के बड़े वोट बैंक पर प्रभाव

दूसरी पार्टियों से उम्मीदवार

बसपा-अकाली: जगबीर बराड़

आप : सुरिंदर सिंह सोढ़ी

भाजपा : उम्मीदवार घोषित नहीं

कमजोर पक्ष

विकास प्रोजेक्ट में देरी

जनसंपर्क कम है

अपनी ही पार्टी के लोग नाराज


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