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एससी-एसटी लैंड काे लेकर छिड़ा घमासान, अकालियों की राह नहीं आसान

दोआबा के एससी व एसटी लैंड के सियासी घमासान में अकालियों की राह आसान नहीं है। भाजपा को किनारे करके सियासी सफर दूर की कौड़ी से कम नहीं है।

By Sat PaulEdited By: Published: Wed, 14 Nov 2018 12:44 PM (IST)Updated: Wed, 14 Nov 2018 01:11 PM (IST)
एससी-एसटी लैंड काे लेकर छिड़ा घमासान, अकालियों की राह नहीं आसान
एससी-एसटी लैंड काे लेकर छिड़ा घमासान, अकालियों की राह नहीं आसान

[मनोज त्रिपाठी, जालंधर] दोआबा के एससी व एसटी लैंड के सियासी घमासान में अकालियों की राह आसान नहीं है। सहयोगी दल भारतीय जनता पार्टी को किनारे करके अकालियों के लिए एससी व एसटी लैंड का सियासी सफर दूर की कौड़ी से कम नहीं है। इसके बाद भी अकालियों की पोस्ट मैट्रिक स्कालरशिप के मुद्दे को लेकर जालंधर में बुधवार को हो रही राज्य स्तरीय रैली में भाजपाइयों को आमंत्रित नहीं किया गया है। इस बाबत भाजपा के प्रदेश महासचिव राकेश राठौर का कहना है कि यह रैली अकालियों की की रैली है। भाजपा नेता इसमें शिरकत नहीं करेंगे, लेकिन कोई भाजपा नेता अपनी मर्जी से जाना चाहेगा तो वह जा सकता है।

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पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप का मुद्दा बीते 20 महीनों से भाजपा लगातार उठाती आ रही है। पू्र्व प्रदेश प्रधान व केन्द्रीय राज्य मंत्री विजय सांपला खुद इस बाबत दर्जनों बार पंजाब सरकार को कटघरे में खड़ा कर चुके हैं। अलबत्ता भाजपा ने विभिन्न धरनों व प्रर्दशनों के सहारे इस मुद्दे को उठाकर सरकार की मुश्किलें बढ़ाई हैं। पंजाब में सबसे ज्यादा एससी व एसटी वर्ग दोआबा में ही हैं। यही वजह है कि के एससी व एसटी लैंड की सियासत में अकालियों ने भी भाजपा के मुद्दे को हाईजैक करके दोबारा से सियासी कब्जे की कूटनीति शुरू कर दी है।

1952 से लेकर 1918 तक के लोकसभा चुनाव के परिणामों पर नजर डालें तो इस सीट पर ज्यादातर बार चुनावों में कांग्रेस का ही कब्जा रहा है। दो बार जनता दल से पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल के अलावा 1977 से 80 के बीच अकाली दल के इकबाल सिंह ढिल्लो व 1996 से 98 के बीच अकाली दल के दरबारा सिंह चुनाव जीत पाए हैं। 20 सालों से इस सीट से कांग्रेस ही चुनाव जीतती आ रही है। सुखबीर के दस साल के शासनकाल में 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में अकाली दल ने कांग्रेस के गढ़ में जोरदार सेंधमारी करके सभी दस विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। इसी जीत के बाद सुखबीर पंजाब की सियासत में सियासी मैनेजमेंट व कूटनीति का बड़ा चेहरा बनकर उभरे थे। बीते विस चुनाव में कांग्रेस ने जालंधर सहित दोआबा की एससी व एसटी लैंड में दोबारा अपना सिक्का जमा लिया था। सुखबीर को पता है कि लोकसभा चुनाव में जीत चाहिए तो जालंधर की दलित सियासत में अकाली दल को दोबारा मजबूत करना होगा। सुखबीर का यह सपना भाजपा के पूर्ण सहयोग के बिना फिलहाल पूरा होना टेढी खीर साबित हो सकता है।

चौधरियों के गढ़ में टीनू का ब्रेन गेम

रैली के सहारे दोआबा की एससी व एसटी राजनीति में पवन टीनू अपना कद और बड़ा करना चाहते हैं। यही वजह है कि पोस्ट मैट्रिक स्कालरशिप के मुद्दे पर अकाली दल की स्वतंत्र रैली करवाने का मास्टर प्लान टीनू ने तैयार किया है। सियासी पंडित इसे चौधरियों के गढ़ में टीनू के ब्रेन गेम की राजनीति के रूप में देख रहे हैं। टीनू बसपा के समय से ही दोआबा में एससी व एसटी लीडर के रूप में अपनी अलग पहचान बना चुके हैं। उनकी इसी पहचान को लेकर सुखबीर ने उन्हें अपनी टीम में शामिल करके विस चुनाव के साथ-साथ जालंधर के लोकसभा चुनाव के मैदान में उतारा था।

भाजपा अलग करेगी रैली

अपने मुुद्दे पर अकालियों की सेंधमारी का काउंटर करने के लिए भाजपा ने भी पोस्ट मैट्रिक स्कालरशिप सहित अन्य मुद्दों को लेकर जल्द ही रैली करने की प्लानिंग शुरू कर दी है। हर मंडल में 50 से 60 शक्ति केन्द्रों को खोलने का अभियान पूरा करने के बाद भाजपा के प्रमुख एजेंडे में यह मुद्दा शामिल है। जिला प्रधान रमन पब्बी का कहना है कि फिलहाल भाजपा इस आयोजन से दूरी बनाए हुए है और न ही अकालियों की तरफ से कोई आमंत्रण दिया गया है।


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