बंद पड़े मंदिरों के कपाट, निर्जला एकादशी पर जरूरतमंदों को दान देकर पूरी की व्रत की रस्म
निर्जला एकादशी को शहर के लोगों ने कोरोना संकट के बीच शारीरिक दूरी के नियम का पालन करके मनाया। धार्मिक श्रद्धा के तहत उन्होंने व्रत तो रखा लेकिन मंदिरों से दूरी बनाए रखी।
जालंधर, जेएनएन। वर्ष भर में मनाई जाती 24 एकादशियों में सबसे महत्वपूर्ण निर्जला एकादशी को शहर के लोगों ने कोरोना संकट के बीच शारीरिक दूरी के नियम का पालन करके मनाया। धार्मिक श्रद्धा के तहत उन्होंने व्रत तो रखा लेकिन मंदिरों से दूरी बनाए रखी। इधर, निर्जला एकादशी के बाद भी मंगलवार को शहर के मंदिरों के कपाट बंद पड़े हुए हैं। ऐसे में अधिकतर लोगों ने जरूरतमंदो को व्रत का सामान देकर दान की रस्म पूरी की। हालांकि निर्जला एकादशी व्रत का सामान बेचने वाली दुकानों पर तड़के से ही लोग पहुंचने शुरू हो गए। इस दौरान उन्होंने हथपंखी, फल, बर्तन व शरबत की खरीदारी की।
निर्जला एकादशी पर जहां निर्जल और निराहार रहकर व्रत संपन्न किया जाता है, वही मंदिर में जाकर व्रत के समान चढ़ा कर पूजा अर्चना करने की परंपरा है। जबकि, कोरोना वायरस संकट के बीच बंद पड़े मंदिरों के कपाट और पंडितों की कमी के कारण लोगों ने सड़कों पर बैठे जरूरतमंद लोगों को व्रत का सामान वितरित किया। इसके अलावा मां चिंतपूर्णी मंदिर माई हीरां गेट, श्री देवी तालाब मंदिर और श्री सिद्ध बाबा सोढल मंदिर के बाहर बैठे भिखारियों को दान कर सामान भेंट किया।
नर सेवा ही नारायण सेवाः पंडित दीन दयाल
इस बारे में श्री गोपीनाथ मंदिर सर्कुलर रोड के पुजारी पंडित दीन दयाल शास्त्री बताते हैं कि जरूरतमंद को दान देना सबसे बड़ा कर्म है। उन्होंने कहा कि नर सेवा ही नारायण सेवा है, जिसके तहत जरूरतमंद लोगों को दान देकर धार्मिक रस्म को पूरा किया जा सकता है।
हरियाणा की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
पंजाब की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें