खबरनामाः वेंडरों ने निकाला ऑटोमेटिक कोच का तोड़, बदले में यात्रियों से वसूल रहे अतिरिक्त चार्ज
जैसे ही यात्री ने स्टेशन से वेंडर से कोई चीज मंगवाई तो एक वेंडर ट्रेन के दरवाजे पर खड़ा रहता है जबकि दूसरा उसे लेने के लिए स्टेशन पर उतर जाता है।
जालंधर [अंकित]। प्रत्येक वीरवार को जालंधर से गुजरने वाली शताब्दी में तेजस कोच लगते हैं। इनमें लगे ऑटोमेटिक दरवाजे ट्रेन के चलते ही बंद होने के कारण यात्री खासे परेशान हैं। कई बार ट्रेन में चढऩे वाले यात्री दरवाजे बंद होने की वजह से नीचे ही रह जाते हैं, या फिर जो अंदर गए हैं वो बाहर नहीं निकल पाते। हालात ऐसे बन जाते हैं कि ट्रेन की चेन पुल कर यात्री चढ़ाने और उतारने पड़ रहे हैं। इसके बावजूद पेंट्री कार के वेंडरों ने इसका तोड़ निकाल लिया है। इसके लिए वे यात्रियों से अतिरिक्त चार्ज वसूलते हैं। जैसे ही यात्री ने स्टेशन से वेंडर से कोई चीज मंगवाई तो एक वेंडर ट्रेन के दरवाजे पर खड़ा रहता है, जबकि दूसरा उसे लेने के लिए स्टेशन पर उतर जाता है। ट्रेन के चलने पर दरवाजे को वेंडर धक्का लगाकर खोले रखता जब तक दूसरा वेंडर ट्रेन में सवार न हो जाए।
टूटी कुर्सियों से स्वागत
सिटी रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर एक पर रखीं लोहे की टूटी कुर्सियां रेल कर्मचारियों के साथ-साथ यात्रियों का स्वागत करती हैं। इनकी हालत इतनी खराब हो चुकी है कि इन पर बैठते ही व्यक्ति इनमें फंस कर रह जाता है। पिछले दिनों डीआरएम राजेश अग्रवाल जब जालंधर स्टेशन के दौरे पर आए तो अधिकारियों ने इन्हें प्लेटफार्म से हटा दिया, लेकिन डीआरएम के जाते ही फिर से ये रेलवे की शोभा बढ़ा रही हैं। खास बात यह है कि इन कुर्सियों पर लिख रखा है कि इनका प्रयोग केवल रेलवे कर्मचारी ही कर सकते हैं लेकिन स्टेशन पर भीड़ ज्यादा और बैठने के लिए बैंच कम होने के कारण यात्री कभी कभार इन पर बैठ ही जाते हैं। इन पर बैठते ही वे ऐसे फंसते हैं कि कोई दूसरा सहारा दे तो ही वे निकल पाते हैं। अक्सर यात्री इनमें फंस रहे हैं और रेलवे को कोस रहे हैं।
रह गया सिर्फ डंडा
रेलवे देश भर में ए ग्रेड की श्रेणी में आने वाले अपने स्टेशनों का सुंदरीकरण कर रहा है। इसी के तहत स्टेशनों के बाहर देश की शान 110 फीट ऊंचें तिरंगे भी लगवाए गए। इनमें जालंधर, लुधियाना, अमृतसर के स्टेशन भी शामिल हैं। दो साल पहले सात मार्च को जालंधर स्टेशन पर तिरंगा फहराया गया था। इन दो सालों में दो बार तिरंगा क्षतिग्रस्त हो चुका है। पहले जब झंडे का कपड़ा क्षति ग्र्रस्त हुआ तो उसे उतार दिया गया। फिर कुछ महीनों के इंतजार के बाद इसे दोबारा फहराया गया। हाल ही में तेज हवाएं चलने की वजह से झंडा फिर क्षतिग्रस्त हो गया तो इसे उतार दिया गया। अब वहांं झंडे की जगह केवल डंडा रह गया है। झंडे के फटने के पीछे कारण इसकी ज्यादा ऊंचाई बताई है, लेकिन आज तक इसका कोई स्थाई हल निकालने की कभी कोशिश नहीं हुई। फल स्वरूप स्टेशन पर ज्यादातर झंडे की जगह डंडा ही दिखाई देता है।
स्क्रीन बताएगी सही किराया
सिटी रेलवे स्टेशन के टिकट काउंटरों के आगे एलीईडी फेयर डिसप्ले लगा दी गई हैं। यह एलईडी रिजर्वेशन काउंटरों के साथ-साथ करंट टिकट काउंटरों पर भी लगाई गई है। अब बस इंतजार है इनके चलने का। इनके चलते ही यात्रियों को भी उनकी टिकट का किराया उनके सामने लगी स्क्रीन पर अंकित हुआ नजर आएगा। रेलवे की इस पहल से यात्रियों की जेब पर लगाई जा रही सेंध पर रोक लगेगी। अक्सर करंट टिकट खरीदने वाले यात्री शिकायत करते हैं कि उनकी टिकट पर पैसे कुछ लिखे होते हैं और उनसे वसूले कुछ और जा रहे हैं। ट्रेन पकडऩे की जल्दी में कई तो शिकायत तक नहीं कर पाते। हालांकि कभी कभार रेड के दौरान इसका पर्दाफाश होता है। अब जब यह फेयर डिस्पले एलईडी लग जाएगी तो यात्री से हो रही वसूली बंद हो जाएगी। वह उतने ही पैसे देगा जितना उसका किराया बनता है।