Punjab Oxygen Scam: कोरोना मरीज दम तोड़ते रहे, जालंधर के सिविल अस्पताल स्टाफ ने मुंह मांगे दामों पर बेचे सिलेंडर
आक्सीजन को जमीन निगल गई या आसमान इसका जवाब सिविल अस्पताल प्रशासन के पास नहीं है। जाच रिपोर्ट भी सेहत विभाग के पास पहुंच चुकी है लेकिन कार्रवाई से पहले ही बड़े पैमाने पर सियासी दबाव डलवाकर रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डालने की कवायद की जा रही है।
मनोज त्रिपाठी, जालंधर। Jalandhar Punjab Oxygen Cylinder Scam जब पूरे देश में आक्सीजन को लेकर कोहराम मचा था, कोरोना से पीड़ित सैकड़ों मरीजों की मौत आक्सीजन नहीं मिलने की वजह से हो रही थी, तब ऐसे में जालंधर के सिविल अस्पताल का स्टाफ आक्सीजन घोटाला करने में जुटा था। बाहर मुंह मांगे दामों पर आक्सीजन सिलेंडरों की सप्लाई की गई। मौके की नजाकत देख आक्सीजन की कमी पूरा करने के लिए उद्योगपतियों से लेकर समाजसेवियों की मदद ली गई। जिला प्रशासन को शक होने पर जांच कमेटी बिठा पड़ताल गई तो सैकड़ों सिलेंडरों के इस्तेमाल में घालमेल सामने आया। सिलेंडरों की डिमांड, सप्लाई व इस्तेमाल में बड़ा अंतर आया।
जांच कमेटी से बचने के लिए अस्पताल स्टाफ ने फर्जी डाक्यूमेंट व दिनांक पर सैकड़ों लीटर आक्सीजन की खपत तो दिखा दी लेकिन अब उनको यह बताना मुश्किल हो रहा है कि उस आक्सीजन का इस्तेमाल किस मरीज पर और कितना किया गया। इस्तेमाल अगर न मरीजों पर किया गया और न ही किसी और काम के लिए तो फिर आक्सीजन गई कहां? आक्सीजन को जमीन निगल गई या आसमान, इसका जवाब सिविल अस्पताल प्रशासन के पास नहीं है। जाच रिपोर्ट भी सेहत विभाग के पास पहुंच चुकी है, लेकिन कार्रवाई से पहले ही बड़े पैमाने पर सियासी दबाव डलवाकर रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डालने की कवायद की जा रही है।
1698 आक्सीजन सिलेंडरों की कहां हुई खपत?
कोरोना के दूसरे चरण में मई से लेकर जुलाई तक आक्सीजन सिलेंडरों की मारामारी थी। सिविल अस्पताल परिसर में मौजूद आक्सीजन प्लाट सप्लाई पूरी नहीं कर पा रहा था जिस कारण आक्सीजन की सप्लाई के लिए निजी कंपनियों पर निर्भर होना पड़ा। प्रशासन ने बी व डी टाइप के 1698 आक्सीजन सिलेंडर बाहर से खरीदे। इन सिलेंडरों की आक्सीजन किस-किस मरीज को दी गई या किस-किस अस्पताल को सिलेंडर भेजे गए, उसका रिकार्ड सेहत विभाग के पास नहीं है। सिलेंडर खरीदे भी गए, कागजों पर इस्तेमाल भी हुए लेकिन वास्तव में इस्तेमाल किस मरीज के लिए कितने समय तक किया गया उसका पूरा रिकार्ड ही गायब है। कुछ का रिकार्ड नहीं रखा गया जबकि कुछ के डाक्यूमेंट गायब हैं। आक्सीजन सपोर्ट पर रखे मरीजों की मेडिकल व ट्रीटमेंट हिस्ट्री भी नहीं मिली।
मरीजों के बिना ही खाली कर डाले 126 आक्सीजन सिलेंडर सरकार व सेहत विभाग के हेडक्वार्टर के पास मौजूद रिपोर्ट के मुताबिक अस्पताल में बिना मरीज के ही 126 आक्सीजन सिलेंडरों का इस्तेमाल मुलाजिमों ने कर डाला। अब पोल खुल रही है तो अधिकारी से लेकर मुलाजिम तक किसी के पास कोई जवाब नहीं है । अस्पताल प्रशासन के रिकार्ड में 24 जुलाई को कोरोना का एक भी मरीज नहीं था, लेकिन कोरोना मरीजों पर 36 आक्सीजन सिलेंडरों की खपत दिखाई गई। इसी प्रकार 25 जुलाई को बिना किसी मरीज के 45 सिलेंडर लग गए। 26 जुलाई को 42 और 27 जुलाई को तीन आक्सीजन सिलेंडरों की खपत दिखाई गई है, लेकिन इन तिथियों में अस्पताल के रिकार्ड के अनुसार कोरोना का एक भी मरीज भर्ती नहीं था। जब अस्पताल में मरीज ही नहीं थे तो कोरोना के कोटे की आक्सीजन कहा और किसे दी गई?
आक्सीजन लेने वाले नान कोविड मरीजों के रिकार्ड में भी गोलमाल
कोरोना काल में अस्पताल में काफी समय तक नान कोविड मरीजों का भी इलाज किया जाता रहा। इन मरीजों में भी कितनी आक्सीजन किसके इलाज पर खर्च की गई, इसका रिकार्ड भी रखना होता है। अस्पताल प्रशासन के पास नान कोविड मरीजों के इलाज पर खर्च होने वाली आक्सीजन की जानकारी तो है, लेकिन मरीजों का आकड़ा कहा है यह पता नहीं। मामला अभी तक दबाए रखा गया है।
मरीजों के हालात का हवाला देकर बचाव में जुटे हैं डाक्टर गड़बड़ी सामने आने के बाद सिविल अस्पताल प्रशासन आक्सीजन सिलेंडरों की खपत को लेकर मरीजों के हालात का हवाला देकर अपने बचाव में जुटा है। अपने उच्च अधिकारियों को तकनीकी बातों में उलझाने की कवायद कर रहा है। सिविल अस्पताल में 18 वेंटीलेटर हैं। अगर मान लें कि सभी पर मरीज थे तो भी 18 मरीज ही रोजाना होंगे, लेकिन जिन दिनों में न तो वेंटीलेटर पर मरीज थे और न ही बेडों पर तो उन दिनों में आक्सीजन कहा खर्च की गई?
मेडिकल सुपरिंटेंडेंट ने कहा-तबादला अभी हुआ, पहले क्या हुआ कोई जानकारी नहीं
मेडिकल सुपरिंटेंडेंट डा. सीमा का कहना है कि उनका तबादला हाल ही में हुआ है। अस्पताल प्रशासन के पास सारा रिकार्ड है। रिकार्ड की पड़ताल के लिए कमेटी का गठन किया गया है। कमेटी समय-समय पर पड़ताल करती रहती है। पहले क्या हुआ उस बारे में उन्हें जानकारी नहीं है।