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अब खारा जल भी बनेगा मीठा, समुद्र के पानी को यह तकनीक बनाया पीने लायक

अब समुद्र के खारे पानी को पीने के लायक बनाया जा सकता है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओसियन टेक्नोलॉजी (एनआईओटी) के वैज्ञानिकों ने इसकी तकनीक विक‍सित की है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Wed, 09 Jan 2019 10:17 AM (IST)Updated: Wed, 09 Jan 2019 10:17 AM (IST)
अब खारा जल भी बनेगा मीठा, समुद्र के पानी को यह तकनीक बनाया पीने लायक
अब खारा जल भी बनेगा मीठा, समुद्र के पानी को यह तकनीक बनाया पीने लायक

जालंधर, [मनीष शर्मा]। अब अाप खारे जल को भी आसानी से पीने लायक बना सकते हैं। समुद्र के जिस खारे पानी को चखना तक मुश्किल है, वही अब लोगों के पीने के काम आ रहा है। यही नहीं, पानी से होने वाली कई तरह की बीमारियों से भी लोगों की जिंदगी बचा रहा है। यह संभव हुआ है डीसैलिनेशन प्लांट से। इस प्‍लांट को विकसित किया है नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओसियन टेक्नोलॉजी (एनआईओटी) के वैज्ञानिकों ने।

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नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओसियन टेक्नोलॉजी, बैैंगलोर के वैज्ञानिकों ने किया कारनामा  

इसकी शुरूआत लक्ष्यद्वीप से की गई है। जहां के 10 द्वीपों पर यह प्लांट लगाया गया है। लक्ष्यद्वीप के इन द्वीपों पर पीने के पानी का कोई कुदरती स्रोत नहीं है। लोग समुद्र के इसी खारे पानी को पीने के लिए मजबूर थे। इससे वो गंभीर बीमारियों की चपेट में आ रहे थे। लक्ष्यद्वीप में मिली कामयाबी से उत्साहित वैज्ञानिक अब अंडमान एवं निकोबार में ऐसा ही लेकिन ज्यादा क्षमता का प्लांट लगाने की तैयारी कर रहे हैं। लवली प्रोफेशनल यूनीवर्सिटी में 106वीं इंडियन साइंस कांग्रेस में पहुंचे वैज्ञानिकों ने अपनी इस तकनीक को प्रदर्शित किया।

रोजाना एक लाख लीटर पानी होता है शुद्ध
एनआईओटी के प्रोजेक्ट वैज्ञानिक योगराज शर्मा ने बताया कि इस तकनीक से लक्ष्यद्वीप में एक लाख लीटर पानी से नमक को अलग कर शुद्ध किया जाता है। जो बाद में वहां रहने वाले लोगों को सप्लाई किया जाता है। प्लांट के सही ढंग से काम करने के बाद स्थानीय सरकारी महकमों को इसका अधिकार दे दिया जाता है। जो थोड़ा पैसा लेकर यह पानी लोगों को देती है ताकि शुद्ध किए पानी की फिजूलखर्ची न हो।

प्लांट व तकनीक के बारे में बताते नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओसियन टेक्नोलॉजी के प्रोजेक्ट साइंटिस्ट योगराज शर्मा।

उन्‍होंने बताया कि पहले लोगों को यहां देसी तरीकों यानि पानी घड़े में रखकर नमक के नीचे बैठने का इंतजार करने समेत अलग-अलग तरीकों से पानी साफ करना पड़ता था लेकिन फिर भी उसमें नमक की मात्रा रहती ही थी। इस नमकीन पानी को पीने से लोगों को कई तरह के जलजनित रोग हो रहे थे। अब अंडमान एवं निकोबार में डेढ़ लाख लीटर प्रतिदिन क्षमता का प्लांट लगाने की तैयारी की जा रही है।
यह है तकनीक
वैज्ञानिक योगराज शर्मा के मुताबिक लक्ष्यद्वीप मेें समुद्र के ऊपर ही एक ब्रिज बनाया गया है। जिसके ऊपर 11 गुणा 11 स्क्वायर मीटर का डिसैलीनेशन प्लांट लगाया गया है। इसमें अब समुद्र की सतह का पानी लाते हैं। जो प्लांट के फ्लश चेंबर में आता है। वहां 27 मिलीबार का वेक्यूम प्रेशर बनाया गया है।

उन्‍होंने बताया कि वेक्यूम प्रेशर का फायदा यह है कि जहां आम तौर पर पानी 100 डिग्री तापमान पर खौलना शुरू होता है, यहां वो 22.5 डिग्री पर ही खौलने लगता है और उसका वाष्पीकरण शुरू हो जाता है। चूंकि समुद्र के सतही पानी का अपना ही सामान्य तापमान 25 से 28 डिग्री तक होता है, इसलिए अलग से उसे गर्म करने की जरूरत नहीं होती।

उन्‍हाेंने बताया कि इस पानी से जो वाष्प निकलती है, उसे कंडेसर में जमा कर लिया जाता है। फिर कंडेसर के बगल से पानी की अलग पाइप गुजरती है, जिसमें समुद्र के 300 मीटर नीचे से पानी लाया जाता है, क्योंकि वो पानी काफी ठंडा होता है। उस पानी की ठंडक से कंडेसर में जमा वाष्प पानी में बदल जाता है। इसे फिर आगे बर्तनों में इक्टठा कर पीने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रक्रिया में वाष्पीकरण के बाद जो नमक या नमकीन पानी बच जाता है, उसे दोबारा समुद्र में ही डाल दिया जाता है। यह प्रक्रिया पूरा दिन चलती रहती है।


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