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गुटबंदी का असर, दो महीने बाद भी कौंसिलों को नहीं मिले प्रधान

जागरण संवाददाता जालंधर निकाय चुनाव के दो महीने बाद भी जालंधर की सात कौंसल व पंचायतों कनिकाय चुनाव के दो महीने बाद भी जालंधर की सात कौंसल व पंचायतों के प्रधानों का अभी तक चुनाव नहीं हो पाया। जालंधर की आठ नगर कौंसिल व पंचायत पर 14 फरवरी को चुनाव हुआ था।

By JagranEdited By: Published: Thu, 15 Apr 2021 06:00 AM (IST)Updated: Thu, 15 Apr 2021 06:00 AM (IST)
गुटबंदी का असर, दो महीने बाद भी कौंसिलों को नहीं मिले प्रधान
गुटबंदी का असर, दो महीने बाद भी कौंसिलों को नहीं मिले प्रधान

जागरण संवाददाता, जालंधर : निकाय चुनाव के दो महीने बाद भी जालंधर की सात कौंसल व पंचायतों के प्रधानों का अभी तक चुनाव नहीं हो पाया। जालंधर की आठ नगर कौंसिल व पंचायत पर 14 फरवरी को चुनाव हुआ था। दो दिन पहले ही करतारपुर कौंसिल के प्रधान वरिष्ठ उपप्रधान व उपप्रधान का चुनाव हुआ लेकिन बाकी सात जगह अभी प्रधान पद पर सहमति ही नहीं बन पा रही।

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नकोदर, नूरमहल, महितपुर, फिल्लौर, लोहियां खास, अलावलपुर, आदमपुर में प्रधान नियुक्त नहीं हो पाने के कारण विकास कार्य भी प्रभावित हो रहे हैं। नूरमहल और अलावलपुर में कांग्रेस को बहुमत नहीं है। फिल्लौर, महितपुर, लोहिया खास व नकोदर में कांग्रेस के पास पूरा बहुमत है जबकि आदमपुर में कांग्रेस समर्थित ही पार्षद हैं लेकिन सभी जगह प्रधान तय करने में खूब गुटबंदी है। नकोदर, नूरमहल, अलावलपुर व आदमपुर में अकाली दल के विधायक हैं और इससे राज्य में सत्तारुढ़ कांग्रेस को यहां टक्कर मिल रही है। प्रधान पद को लेकर विधायकों और कांग्रेस के हलका इंचार्ज के पास दावेदारों की सिफारिश भी खूब हो रही है। कांग्रेस के हलका इंचार्ज और विधायक इस बात को लेकर भी चितित हैं कि अगर प्रधान पद को लेकर ज्यादा खींचतान हुई तो विधानसभा चुनाव में गुटबंदी से नुकसान उठाना पड़ सकता है।

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दो साल प्रभावित रह सकता है विकास

प्रधान व अन्य पदों पर नियुक्ति न होने से इन कस्बों में विकास कार्य प्रभावित होना तय है। अभी तक आठों जगह बजट भी पास नहीं हो पाए और अगले साल के लिए विकास कार्यों की योजना भी नहीं बन पाई है। इन सभी कौंसिल व पंचायत में हाउस बनने के बाद ही मीटिग हो पाएगी। अगर मार्च तक प्रधान बन जाते तो विकास कार्य के लिए बजट तय हो जाता। अब सरकार की मंजूरी से ही काम करवाना होगा। यही नहीं अगले साल भी यहां पर काम प्रभावित रहने के आसार हैं क्योंकि तब तक विधानसभा चुनावों की घोषणा हो जाएगी। चुनाव की घोषणा के कारण आचार संहिता लागू रहेगी और अगले साल भी बजट पास करने में देरी हो सकती है। ऐसे में दो साल तक इन कस्बों को राजनीतिक खींचतान की मार झेलनी पड़ सकती है।


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