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जालंधर में काला संघिया ड्रेन के किनारों से गंदगी होगी दूर, विकसित होंगे बायो डायवर्सिटी पार्क

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने आदेश दिया है कि काला संघिया ड्रेन के किनारों पर बायो डायवíसटी पार्क विकसित किए जाएं। ऐसे आदेश इसलिए आए क्योंकि ड्रेन में इतनी गंदगी गिराई जा रही है कि इसकी पहचान अब गंदे नाले के रूप में बन चुकी है।

By Edited By: Published: Wed, 14 Apr 2021 06:30 AM (IST)Updated: Wed, 14 Apr 2021 08:41 AM (IST)
जालंधर में काला संघिया ड्रेन के किनारों से गंदगी होगी दूर, विकसित होंगे बायो डायवर्सिटी पार्क
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने आदेश दिया है कि काला संघिया ड्रेन के किनारों पर बायो डायवíसटी पार्क विकसित किए जाएं।

जालंधर, जेएनएन।  नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने आदेश दिया है कि काला संघिया ड्रेन के किनारों पर बायो डायवíसटी पार्क विकसित किए जाएं। ऐसे आदेश इसलिए आए क्योंकि ड्रेन में इतनी गंदगी गिराई जा रही है कि इसकी पहचान अब गंदे नाले के रूप में बन चुकी है। एनजीटी के आदेश के तहत बायो डायवíसटी पार्क में मेडिकेटेड प्लाट यानि ऐसे पौधे लगाए जाएंगे जो औषधीय गुण वाले हों और वातावरण को स्वच्छ कर सकें। एनजीटी की मानिटरिंग कमेटी के आदेश मूल रूप से सिंचाई विभाग के लिए हैं लेकिन शहर में लोगों के लिए परेशानी बन रही ड्रेन पर नगर निगम काम करेगा।

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इसके लिए स्मार्ट सिटी कंपनी ने पहले ही 40 करोड़ रुपये से काम करने का प्लान बनाया हुआ है। अब इस प्रोजेक्ट पर तेजी से काम करना होगा। जो भी योजना बनेगी उस पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की मानिटरिंग कमेटी को लगातार अपडेट देना होगा। इस समय ड्रेन के आसपास कई कालोनिया बस चुकी हैं और प्रदूषण के कारण इन कालोनियों में रहने वालों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। नगर निगम की हद में करीब 12 किलोमीटर ड्रेन है, बाकी करीब 80 किलोमीटर की जिम्मेदारी सिंचाई विभाग और ग्रामीण विकास एवं पंचायत विभाग की रहेगी।

स्मार्ट सिटी कंपनी के सीईओ करनेश शर्मा ने कहा कि एनजीटी के आदेश के बाद काला संघिया ड्रेन के निगम हद में आते इलाके की पैमाइश करवाई जा रही है। सिंचाई विभाग और राजस्व विभाग के साथ मिलकर ड्रेन के किनारों का इलाका तय किया जा रहा है जहा पर बायो डायवíसटी पार्क विकसित किया जाएगा। बता दें कि यह ड्रेन जालंधर से नकोदर तक जाती है और आगे सतलुज में जाकर मिल जाती है। ड्रेन मूल रूप से बरसाती पानी पर निर्भर है और हिमाचल के पहाड़ों से निकलती है। इन दिनों बरसाती पानी के बजाय शहर-गांव के सीवरेज व इडंस्ट्री का दूषित पानी इसमें से निकल रहा है और सीधे सतलुज में मिल रहा है।

स्मार्ट सिटी में प्रस्तावित प्रोजेक्ट

स्मार्ट सिटी कंपनी ने काला संघिया ड्रेन के सुंदरीकरण के लिए जो प्रोजेक्ट प्रस्तावित किया है उसके तहत ड्रेन के साथ-साथ ग्रीन बेल्ट डेवलप की जाएगी। किनारों पर दूसरे पौधों के साथ-साथ औषधीय पौधे लगाए जाने हैं। यह भी तय किया गया है कि ग्रीन बेल्ट के साथ ही झूले लगाए जाएंगे ताकि लोग यहा आकर सैर कर सके और इस जगह का इस्तेमाल पिकनिक स्पाट के रूप में किया जा सके। ड्रेन में गंदगी गिरने से रोकना सबसे बड़ी चुनौती ड्रेन मूल रूप से बरसाती पानी की निकासी के लिए ही होती है लेकिन पिछले कुछ सालों में यह गंदे पानी की निकासी के लिए इस्तेमाल होने लगी।

ड्रेन से सीवरेज और कारखानों को गंदा पानी जब दरियाओं में प्रदूषण बढ़ाने लगा तो सरकार इस पर जागी है। अब गंदगी रोकने के लिए सख्त कदम उठाए जा रहे हैं। वातावरण प्रेमी संत बलबीर सिंह सीचेवाल ड्रेनों की सफाई के लिए लगातार काम कर रहे हैं। वह एनजीटी के मानिटरिंग कमेटी मेंबर भी हैं। सीवरेज के पानी को काफी हद तक ड्रेन में जाने से रोका गया है लेकिन इंडस्ट्री के जहरीले पानी को रोकना अभी भी चुनौती बना हुआ है।

सीवरेज ट्रीटमेंट प्लाट से निकलने वाली गार खेतों में इस्तेमाल करने के निर्देश

एनजीटी की मानिटरिंग कमेटी ने आदेश दिया कि सभी सीवरेज ट्रीटमेंट प्लाट से निकलने वाली गार को 100 प्रतिशत कृषि कार्यो में इस्तेमाल करना सुनिश्चित किया जाए। एनजीटी ने इसके लिए निर्देश दिया है कि जहा-जहा सीवरेज ट्रीटमेंट प्लाट है वहा प्लाट के आसपास के किसानों से संपर्क किया जाए और उन्हें यह गार उपलब्ध करवाई जाए। सीवरेज ट्रीटमेंट से निकलने वाली गार बढि़या खाद के रूप में इस्तेमाल की जा सकती है। जहा-जहा सीवरेज की गार और साफ किया पानी खेतों में इस्तेमाल हुआ है वहा पर फसल की पैदावार 20 प्रतिशत तक बढ़ी है। संत बलबीर सिंह सीचेवाल ने सुल्तानपुर लोधी समेत कई गावों में छप्पड़ के पानी को साफ करके खेती के कार्यो में इस्तेमाल करने के प्रयास शुरू करवाए हैं और इससे किसानों को बड़ा फायदा मिला है।


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