राष्ट्रीय बालिका दिवस आज..नाकाफी साबित हो रहीं कोशिशें
समय बदलता गया सरकारें बदलती गई लेकिन अगर कुछ नहीं बदला तो वह है समाज में महिलाओं की स्थिति। देश चांद पर जा पहुंचा है लेकिन लड़कियां जमीन पर भी सुरक्षित नहीं हैं। हर पांच साल बाद सरकारें बदलती हैं और उनके द्वारा किए हुए वादे भी बदल जाते हैं।
प्रियंका ¨सह, जालंधर समय बदलता गया, सरकारें बदलती गई, लेकिन अगर कुछ नहीं बदला तो वह है समाज में महिलाओं की स्थिति। देश चांद पर जा पहुंचा है, लेकिन लड़कियां जमीन पर भी सुरक्षित नहीं हैं। हर पांच साल बाद सरकारें बदलती हैं और उनके द्वारा किए हुए वादे भी बदल जाते हैं। तमाम राजनीतिक पार्टियां फिर से चुनावी मैदान में अपनी अपनी घोषणाओं के साथ उतर गई हैं। इसमें पंजाब में लड़कियों के ¨लग अनुपात तथा समाज में महिलाओं को बराबरी का अधिकार दिलाने की घोषणाएं हो रही हैं, लेकिन नेशनल गर्ल चाइल्ड डे के दिन अगर सभी विधानसभा हलकों में मतदाताओं की स्थिति पर नजर डालें तो एक भी विधानसभा हलका ऐसा नहीं है, जहां महिलाओं व पुरुषों की संख्या बराबर हो या महिलाओं की संख्या पुरुषों से ज्यादा हो। महिलाओं और पुरुषों के अनुपात में तमाम कोशिशों के बावजूद बराबरी नहीं हो पाई है। हर क्षेत्र में आज महिलाएं लड़कों से आगे हैं, लेकिन अगर बात करें समाज में बराबरी की तो उन्हें पीछे रखा जा रहा है। सरकार ने इस तरफ सुधार के काफी प्रयास किए भी हैं, बावजूद यह प्रयास अभी तक नाकाफी साबित हो रहे हैं। इसलिए मनाया जाता है राष्ट्रीय बालिका दिवस भारत में राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने की शुरुआत 24 जनवरी 2008 को महिला और बाल विकास मंत्रालय की तरफ से की गई थी। खास बात यह है कि इंदिरा गांधी ने 24 जनवरी 1966 को भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली थी। उस दिन से सरकार द्वारा भी जागरूकता के लिए विभिन्न प्रकार के आयोजन देश भर में करवाए जाते हैं। दुर्भाग्य की बात यह है कि 2008 से शुरू हुए इस अभियान को आज 13 साल हो चुके हैं। इस दौरान तीन सरकारें भी पंजाब में बदल चुकी है, लेकिन महिलाओं की स्थिति में कोई खास सुधार नहीं नजर आ रहा है। योजनाएं बनी, लेकिन अपेक्षित सफलता नहीं मिली केंद्र सरकार ने कन्या भ्रूण हत्या व जांच रोकने के लिए पीसी-पीएनडीटी एक्ट 1995 में लागू किया। पंजाब व जालंधर में इस पर सख्ती की जाती है, लेकिन अपेक्षित सुधार नजर नहीं आ रहा है। इसके अलावा सरकार ने जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम शुरू किया। इसके तहत जच्चा-बच्चा की सुरक्षा के लिए सरकारी अस्पतालों में फ्री डिलीवरी की सुविधा दी गई। इसमें अगर बेटा पैदा होता है तो सरकारी अस्पतालों में एक साल और बेटी को पांच साल तक फ्री जांच व इलाज की सुविधा मिलती है। इसके बाद स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ, लेकिन बहुत बड़ी सफलता नहीं मिली। जालंधर में नवजन्मे बच्चों में 1000 लड़कों के पीछे 910 लड़कियां हैं, जबकि ओवरआल लिंगानुपात में 1000 लड़कों के पीछे 896 लड़कियां हैं। फिल्लौर महिला वोटर - 99327 पुरुष वोटर - 106873 नकोदर महिला वोटर- 93399 पुरुष वोटर - 100254 शाहकोट महिला वोटर - 87936 पुरुष वोटर- 93399 करतारपुर महिला वोटर- 87817 पुरुष वोटर- 95667 जालंधर वेस्ट महिला वोटर -80672 पुरुष वोटर - 88340 जालंधर सेंट्रल महिला वोटर - 82448 पुरुष वोटर - 88755 जालंधर नार्थ महिला वोटर- 89732 पुरुष वोटर - 99273 जालंधर कैंट महिला वोटर - 91282 पुरुष वोटर- 99296 आदमपुर महिला वोटर - 79919 पुरुष वोटर- 86448 महिला वोटर की कुल संख्या - 792532 पुरुष वोटर की कुल संख्या - 858305 .... बेटियों को समाज में नहीं मिला सही स्थान : अतिमा शर्मा कन्या महाविद्यालय की प्रधानाचार्य अतिमा शर्मा द्विवेदी का कहना है कि जब तक बेटियों को समाज में सही स्थान नहीं मिलता, तब तक हमारा समाज स्वस्थ और उन्नत नहीं बन पाएगा। राष्ट्रीय बालिका दिवस पर सब देशवासियों को मिलकर यह निर्णय लेना चाहिए कि लड़की का पैदा होना सौभाग्य है। कारण, लड़की है तो समाज है। सबको इस बात का ध्यान रखना चाहिए। बेटियों का हौसला बढ़ाएं माता-पिता : हर¨वदर कौर एडवोकेट हर¨वदर कौर का कहना है कि लड़कियों की हालत में अगर सुधार लाना है तो इसकी शुरुआत घर व परिवार से ही होनी चाहिए। हर माता-पिता को बेटियों का हौसला बढ़ाना चाहिए, ताकि वो हर मुश्किल से लड़ सकें। कहीं न कहीं समाज में भी कमी है और सरकार में भी। समाज में अगर अपनी पहचान बनानी है तो आत्मनिर्भर बनना बहुत जरूरी है।