बिना बैंड-बाजा और बारात के सादगी से कीरत के हो गए मधुरमीत, घर की चारदीवारी में पूरी की सभी रस्में
गुरुद्वारा में शादी करने की इजाजत नहीं मिली तो मधुरमीत की शादी की रस्में उनके अर्बन ईस्टेट स्थित ससुराल में संपन्न हुईं। मधुरमीत के पिता ने कहा सादी शादी का उन्हें कोई मलाल नहीं।
जालंधर [शाम सहगल]। न बैंड, न बाजा व न ही बारात, और पूरी हो गई शादी की रस्में। परिणय सूत्र में बंधने की तमाम रस्में सादगी और मौजूदा हालात के मुताबिक शारीरिक दूरी समेत अन्य नियमों को ध्यान में रखते हुए पूरी की गईं। इसके साथ ही एनआरआइ मधुरमीत सिंह भाटिया कीरत के हो गए। शहर के विजय नगर की कोठी नंबर 107 में रहने वाले भाटिया परिवार ने कर्फ्यू के बीच बेटे की सादगी के साथ शादी करके मिसाल कायम की है।
दरअसल, मधुरमीत सिंह 13 मार्च को कनाडा से शहर शादी करवाने के लिए आया था, लेकिन 22 मार्च को लॉक डाउन व 23 मार्च से कर्फ्यू लग गया। इसके बाद एक बार फिर कर्फ्यू तीन मई तक होने के कारण भाटिया परिवार को यह फैसला लेना पड़ा। दूसरा कारण कनाडा सरकार अब वहां से गए नागरिकों को वापस बुला रही है। ऐसे में मधुरमीत को कभी भी वापस बुलाया जा सकता था।
अर्बन ईस्टेट स्थित ससुराल में पूरी हुईं शादी की रस्में
मधुरमीत की शादी की रस्में उनके अर्बन ईस्टेट स्थित ससुराल में संपन्न हुईं। गुरुद्वारा साहिब में शादी करने की इजाजत ना मिलने पर मधुरमीत के ससुर विक्रम सिंह गिल ने घर की चारदीवारी में ही तमाम रस्में पूरी करने का इंतजाम कर दिया।
इकलौते बेटे की सादी शादी पर नहीं कोई मलाल
मधुरमीत के पिता सरकारी स्कूल से सेवानिवृत्त प्रिंसिपल राजिंदर पाल सिंह भाटिया ने कहा कि वह उनका इकलौता बेटा है। शादी धूमधाम से करने की योजना तो थी लेकिन मौजूदा हालात के मुताबिक यह संभव न था। लिहाजा, सादगी के साथ करवाई गई। इसका उन्हें कोई मलाल नहीं है। पारिवारिक सदस्यों की सहमति के साथ ही सादगी के साथ शादी संपन्न करवाई गई है, इससे पूरा परिवार खुश है।
बच्चों की खुशी में ही अपनी खुशी
मधुरमीत की माता नेहरू गार्डन स्कूल में लेक्चरर तेजिंदर कौर बताती हैं कि बच्चों की खुशी में ही अपनी खुशी है। कीरत के रूप में वह जैसी बहू चाहती थी, वैसी ही मिली है। पूरा परिवार फैसले से खुश है। सादगी के साथ की गई शादी वास्तव में सुकून भी देती है।
पारिवारिक सदस्यों के साथ से ऊपर कोई खुशी नहीं
मधुरमीत व पत्नी कीरत बताते हैं कि पारिवारिक सदस्यों के साथ मिल जाने से ऊपर कोई खुशी नहीं है। खुशियों का मूल केवल शोर शराबा नहीं बल्कि अपने परिवार के सदस्यों की खुशी तथा साथ है, जिसे पाकर वह संतुष्ट है। वाहेगुरु से समूचे विश्व को कोरोना से निजात दिलाने की अरदास करते हुए अपने जीवन की शुरुआत की है।