खेल-खेल में : तनख्वाह दे दें यही बहुत है
खेल विभाग के हालात किसी से छिपे नहीं है। दावे विभाग तो बड़े-बड़े करता है पर अपने स्टाफ की भी सही से सुध नहीं ले पा रहा।
खेल विभाग के हालात किसी से छिपे नहीं है। दावे विभाग तो बड़े-बड़े करता है पर अपने स्टाफ की भी सही से सुध नहीं ले पा रहा। हाल ही में कोचों की विभागीय दफ्तर में नववर्ष की पार्टी हुई। पार्टी में विभिन्न खेलों के कोच शामिल हुए। सभी को लजीज लंच करवाया गया। हालाकि लंच पर खर्च किए गए पैसे खेल विभाग के खाते से नहीं बल्कि कोचों की जेब से गए। कारण यह है कि कोचों ने विभाग से आस लगानी ही बंद कर दी है। कोचों का कहना है कि विभाग समय पर तनख्वाह दे दे, यही बहुत है। विभाग इतना फटेहाल है कि रिटायरमेंट पर भी पार्टी नहीं देता। वैसे कोई पार्टी देना तो दूर की बात।
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हमारी भी सुनो
खेल विभाग में ठेके पर काम कर रहे कोच अंदर ही अंदर काफी दुखी हैं परंतु उन्हें समझ नहीं आता कि अपना दुखड़ा किसे सुनाएं। उनका दर्द यह है कि विभाग में सरकारी जंवाई बने बैठे कोच जो साठ से सत्तर हजार रुपया महीना वेतन ले रहे हैं उनके खिलाड़ी तो परफार्म कर नहीं पा रहे हैं। लेकिन ठेके वाले कोच, जिनके खिलाड़ी मेडल ला रहे हैं उन्हें नौ से दस हजार रुपया थमा कर निपटाया जा रहा है। एक सीनियर एथलेटिक कोच ने अपना दर्द साझा करते हुए कहा कि खिलाडिय़ों को ना तो इनामी राशि ही मिल रही है और ना ही कोचों को प्रोत्साहन। इतने कम वेतन में घर चलाना भी मुश्किल हो रहा है। हालाकि डीएसओ गुरप्रीत सिंह कहते हैं कि भर्ती खुलने के बाद जल्द ही कोच स्थायी होंगे, लेकिन वह दिन कब आएगा, इसका किसी के पास जवाब नहीं है।
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जेब से करवा रहे हैं सफाई
सरकार दावा करती है कि खिलाडिय़ों को हर सुविधा दी जाएगी। लेकिन स्पोर्ट्स कॉलेज के हॉस्टल की हालत को देखकर ऐसा नहीं लगता। यहा खिलाड़ी गंदगी में रहने को मजबूर हैं। कारण है कि यहा तीन साल से कोई सफाई कर्मचारी ही नहीं है। यही नहीं सिक्योरिटी गार्ड भी नहीं है। विभाग को बार-बार कहने के बावजूद जब कहीं सुनवाई नहीं हुई तो विभाग के डीएसओ गुरप्रीत सिंह जोकि स्वयं एक हॉकी खिलाड़ी रह चुके हैं, ने हॉस्टल में रह रहे खिलाडिय़ों का दर्द समझा। खेल विभाग की इज्जत बचाने के लिए अपनी जेब से पैसे खर्च कर सफाई करवा रहे हैं। सरकार ने तो नहीं सुनी लेकिन एक खिलाड़ी ने दूसरे खिलाड़ी कादर्द जरूर समझा।
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नेताओं का खेल
राजनेता लोगों की परेशानी का हल कैसे निकालते है। इसका उदाहरण स्पोर्ट्स कॉलेज के फटे सिंथेटिक ट्रैक से मिलता है। तीन सप्ताह पहले सासद चौधरी संतोख सिंह फटे ट्रैक को देखने पहुंचे, खिलाडिय़ों के दर्द को समझा। फिर चला घोषणाओं का दौर। खिलाडिय़ों को बड़े-बड़े सपने दिखाए गए और फोटो खिंचवाए गए। इसके बाद अकाली दल दोआबा जोन के नेता भी खिलाडिय़ों का दर्द बाटने के लिए पहुंच गए। खेल सेंटर में पहुंचकर खिलाडिय़ों से मिले। यहा भी फोटो सेशन हुआ। अब दोनों ही दलों के नेता चुप्पी साध कर बैठ गए हैं। खिलाडिय़ों की समस्या जस की तस बनी हुई है। दस साल से खिलाड़ी अपना दर्द इन नेताओं को बता रहे हैं सभी मरहम की बात तो करते हैं पर मरहम कोई नहीं लगा रहा। सभी सिर्फ राजनीति चमकाने में लगे हैं। अब खिलाडिय़ों ने इन नेताओं से आस करनी ही बंद कर दी है। फटे ट्रैक पर ही अभ्यास कर रहे हैं।