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वाद्य यंत्रों की ‘नब्ज’ पहचानता है जालंधर का सिंह परिवार, दुनिया भर में कमाया नाम

सरदार शिंगारा सिंह ने विभाजन से पहले लाहौर में प्रताप म्यूजिक हाउस के नाम से यह कारोबार शुरू किया था। आज उनकी चौथी पीढ़ी कोलकाता म्यूजिक हाउस संभाल रही है।

By Pankaj DwivediEdited By: Published: Sat, 18 Jan 2020 04:33 PM (IST)Updated: Sun, 19 Jan 2020 08:29 AM (IST)
वाद्य यंत्रों की ‘नब्ज’ पहचानता है जालंधर का सिंह परिवार, दुनिया भर में कमाया नाम
वाद्य यंत्रों की ‘नब्ज’ पहचानता है जालंधर का सिंह परिवार, दुनिया भर में कमाया नाम

जालंधर, [शाम सहगल]। संगीत के साथ जालंधर शहर का पुराना संबंध है। केएल सहगल से लेकर पंडित रमाकांत और बॉलीवुड में सुगंधा मिश्रा व हंसराज हंस से लेकर नूरां सिस्टर्स और मास्टर सलीम सहित कई नाम शहर से वास्ता रखते हैं। सुर व ताल के इस संगम में महत्वपूर्ण कड़ी का काम कर रहे हैं रेलवे रोड स्थित ‘कोलकाता म्यूजिक हाउस’ के संचालक। वाद्य यंत्रों की ‘नब्ज’ पहचानने वाले सिंह परिवार ने संगीत कि इस नर्सरी की शुरुआत 1934 में लाहौर से की थी। यह सफर अब देश से होते हुए विदेशों तक पहुंच चुका है।

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संगीत के साथ किसी भी रूप में संबंध रखने वाला शहर के रेलवे रोड पर स्थित कोलकाता म्यूजिक हाउस से भलीभांति वाकिफ है। कारण, यहां लगभग हर वाद्य यंत्र तथा संगीतकार की जरूरत को बखूबी समझने वाले पारखी मौजूद हैं। पिछले 75 वर्ष से इस व्यवसाय से जुड़े होने के कारण अब इनका नाम शहर और प्रदेश के साथ-साथ विदेश में भी विख्यात है। ऐसा इसलिए भी, क्योंकि इस परिवार ने समय के साथ संगीत के बदले प्रारूप को नजदीक से देखा है। आज वेस्टर्न म्यूजिक के वाद्य यंत्र के लिए भी इस दुकान का नाम शिद्दत से लिया जाने लगा है।

जालंधर के रेलवे रोड स्थित कोलकाता म्यूजिक हाउस देश के साथ-साथ विदेश में भी विख्यात है। यहां वाद्य यंत्रों का निर्माण करके निर्यात भी किया जाता है।

लाहौर के प्रताप म्यूजिक हाउस से बना जालंधर का कोलकाता म्यूजिक हाउस

जोगिंदर सिंह ने बताया कि उनके पिता सरदार शिंगारा सिंह ने विभाजन से पहले लाहौर में प्रताप म्यूजिक हाउस के नाम से यह कारोबार शुरू किया था। वह खुद संगीत के शौकीन थे और वाद्य यंत्र तैयार करते थे। उस समय संसाधन कम होने के कारण संगीत को प्रमोट करने के विकल्प खास नहीं थे। उनके पिता में संगीत का जुनून था। वह संगीतकार की सेवा करने का कोई मौका नहीं गंवाते थे। कई बार तो आर्थिक रूप से कमजोर संगीतकार से वाद्य यंत्र रिपेयर करने के पैसे भी नहीं लेते थे। विभाजन के बाद वह शुरुआत में बिना दुकान के जालंधर में वाद्य यंत्र तैयार करते रहे। फिर, 1961 में रेलवे रोड पर दुकान लेकर काम शुरू किया। उस समय अधिकतर वाद्य यंत्रों का कच्चा माल केवल कोलकाता से ही मिलता था। इसीलिए दुकान का नाम ‘कोलकाता म्यूजिक हाउस’ रखा गया।

चौथी पीढ़ी संभाल रही पारीवारिक धरोहर

वाद्य यंत्रों का पुश्तैनी कारोबार अब सरदार शिंगारा सिंह की चौथी पीढ़ी संभाल रही है। जोगिंदर सिंह बताते हैं कि पिता शिंगारा सिंह के निधन के बाद उन्होंने दुकान संभाली। अब पुत्र तेजविंदर सिंह और पौत्र अचल सिंह व अर्जित सिंह कारोबार आगे बढ़ा रहे हैं।

बनारस व बिहार के कारीगर कर रहे निर्माण

जोगिंदर सिंह के अनुसार उन्होंने दुकान के साथ-साथ वाद्य यंत्र निर्माण का काम भी शुरू किया। इसके लिए सुर व ताल के संगम की पहचान रखने वाले कारीगर बनारस और बिहार से बुलाए गए हैं। वे उनके पास वाद्य यंत्रों का निर्माण करते है। जो व्यक्ति वाद्य यंत्र की नब्ज पहचान लेता है, वास्तव में वही कारीगर है। उनके पास कार्य करने वाले कारीगर पहले खुद इन वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल करते हैं, फिर इन्हें बिक्री के लिए प्रदर्शित किया जाता है।

लाहौर से लेकर विदेशों तक बनाई पहचान 

‘कोलकाता म्यूजिक हाउस’ के तेजविंदर सिंह बताते हैं कि परिवार ने वाद्य यंत्र तैयार करने का दौर लाहौर से शुरू किया था, जो अब विदेश तक जा पहुंचा है। लोकल काम के साथ-साथ विदेश में भी वाद्य यंत्र निर्यात किए जा रहे हैं। इसके लिए कई बार ऑनलाइन डीलिंग की जाती है व फिर इन्हें तैयार करके ऑस्ट्रेलिया, कनाडा व इंग्लैंड सहित कई देशों में एक्सपोर्ट किया जाता है।

वेस्टर्न म्यूजिक में भी कमाया नाम 

वाद्य यंत्रों की डिमांड में समय के साथ परिवर्तन हुआ है। तबला, हारमोनियम, तुम्बी तथा गिटार तक सीमित वाद्य यंत्रों की शृंखला में अब गिटार, इलेक्ट्रो पैड, कैसियो (कीबोर्ड), जांबा, कोंगो व बैंड की डिमांड बढ़ी है। जोगिंदर सिंह बताते हैं कि संगीत को प्रमोट करने के लिए आज भी व्यापक प्रयास किए जाने की जरूरत है। क्लासिकल संगीत को प्रमोट करने के लिए जालंधर में श्री हरिवल्लभ संगीत सम्मेलन के रूप में एक बेहतर प्लेटफार्म लोगों को मिल जाता है। इसी तरह के प्रयास देशभर में किए जाने चाहिए ताकि नई पीढ़ी का जुड़ाव भी भारतीय शास्त्रीय संगीत से हो सके और वे अपने पारंपरिक वाद्य यंत्रों को बजाना सीख सकें।

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