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Civil Hospital में व्हीलचेयर लेना नहीं आसान, सिक्योरिटी के लिए देने पड़ते हैं 100 रुपये Jalandhar News

सिविल अस्पताल जालंधर में रोजाना 1500 से 1800 के करीब मरीज ओपीडी में जांच करवाने तथा 100-110 मरीज दाखिल होते हैं। इनमें एक फीसदी दिव्यांग शामिल हैं।

By Sat PaulEdited By: Published: Fri, 07 Feb 2020 10:28 AM (IST)Updated: Fri, 07 Feb 2020 03:49 PM (IST)
Civil Hospital में व्हीलचेयर लेना नहीं आसान, सिक्योरिटी के लिए देने पड़ते हैं 100 रुपये Jalandhar News

जालंधर, [जगदीश कुमार]। जिला अस्पताल जहां रोजाना सैकड़ों लोग इस आस के साथ आते हैं कि उनके मर्ज का इलाज यहां के काबिल डॉक्टर कर पाएंगे, लेकिन इसे प्रशासनिक लापरवाही ही कहेंगे कि गंभीर हालत में सिविल अस्पताल में पहुंचे मरीजों को यहां ओपीडी तक पहुंचना भी मुश्किल हो जाता है। कारण है ओपीडी में आने वाले मरीजों के लिए व्हीलचेयर की कमी होना।

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व्हीलचेयर नहीं मिलने के कारण मरीज या तो अपने तीमारदारों के कंधों पर सवार होकर डॉक्टर के पास पहुंचते हैं या फिर घंटों व्हीलचेयर मिलने का इंतजार कर डॉक्टर के पास पहुंचते हैं। इनमें से कई ऐसे भी हैं जो बड़ी मुश्किल से तीमारदारों के सहारे दो मिनट में तय होना वाला रास्ता घिसटते-घिसटते तय करते हैं। ऐसा भी नहीं कि सिविल अस्पतालों में व्हीलचेयर की कोई कमी है। यहां पर करीब 34 व्हीलचेयर हैं। इनमें से मात्र पांच ही ओपीडी के लिए रखी गई हैं, बाकी वार्डों की शोभा बढ़ा रही है।

ओपीडी में रखी गईं पांच व्हीलचेयर लेना भी आसान काम नहीं है। यहां ओपीडी की पर्ची तो 10 रुपये की है लेकिन अगर किसी को व्हीलचेयर चाहिए तो उसे सौ रुपये सिक्योरिटी देनी पड़ती है। ऐसे में गरीब लोग मजबूरन गिरते-उठते अपना इलाज करवाने को मजबूर हैं।

व्हीलचेयर के लिए ढाई घंटे इंतजार

मकसूदां की रहने वाली पूजा शर्मा अपने भाई के साथ स्कूटरी पर पहुंचीं। चल नहीं सकती थी तो पार्किंग में स्कूटरी खड़ी कर उसे वहीं बिठा उसका भाई व्हीलचेयर ढूंढता रहा। पूजा रेलवे की टिकट में रियायत लेने के लिए प्रमाण पत्र बनवाने के लिए आई थी। पूछताछ केंद्र पर एक व्हील चेयर मिली परंतु उसे ताला लगा था। वह पर्ची बनवाने के बाद लौटा तो कोई दूसरा व्हील चेयर ले जा चुका था। करीब अढ़ाई घंटे तक पूजा शर्मा टीबी विभाग के बाहर पार्किंग में स्कूटरी पर बैठी रही। इसके बाद उन्हें व्हीलचेयर मिली।

तबीयत खराब होने पर बेटा बना सहारा

तबीयत खराब होने पर गांव वरियाना की रहने वाली सुरिंदर कौर (78) अपने बेटे हरजीत सिंह के साथ अस्पताल में पहुंची। हालात इस कदर थे कि उनसे चला नहीं जाता था और वह इमरजेंसी वार्ड के गेट के बाहर जमीन पर ही बैठ गई। करीब 40 मिनट तक वहां बैठी रही। उनके बेटे हरजीत सिंह ने व्हीलचेयर ढूंढी परंतु नहीं मिली। मां का हाथ पकड़ कर धीरे-धीरे ओपीडी कांप्लेक्स तक लेकर गए और वहां कुर्सी पर बिठाया। पर्ची बनवा कर लाए और डॉ. तरसेम लाल से जांच करवा काफी मशक्कत कर उन्हें वापिस लेकर गए।

जल्दी पहुंच गया तो मिल गई व्हीलचेयर

दिव्यांगता प्रमाण पत्र बनवाने के लिए जालंधर के ही रहने वाले संजीव कुमार परिजनों के साथ पहुंचे। संजीव बोला वह घर से जल्दी ही आ गए थे। पूछताछ केंद्र पर चार व्हीलचेयर को ताला लगा हुआ था। मुलाजिम के ड्यूटी पर पहुंचते ही सबसे पहले उन्हें व्हीलचेयर मिल गई और उनका काम आसान हो गया। इसी तरह लांबड़ा से बक्शी राम की एक टांग कट गई थी। वह दिव्यांगता प्रमाण पत्र बनवाने के लिए परिजनों के साथ पहुंचे। उनकी हालत को देखते हुए पूछताछ केंद्र में तैनात मुलाजिम ने 100 रुपये सिक्योरिटी लेकर उन्हें व्हील चेयर मुहैया करवा दी।

यहां पर भी लाठी ही सहारा

मिठापुर में रहने वाले राम बहादुर की सड़क हादसे में टांग पर गंभीर चोट लगी थी। वह लाठी के सहारे चलते हैं। अस्पताल में हड्डी रोग विभाग में जांच करवाने के लिए आए थे। राम बहादुर से व्हील चेयर की सहायता लेने की बात पूछी गई तो उन्होंने बताया कि वह अकेले ही आए है। उन्हें व्हील चेयर कहां से मिलती है इस बात की भी जानकारी ही नहीं है। 

वाकर से पहुंचीं डॉक्टर के पास

आदमपुर में रहने वाली कौशल्या देवी (65) को कमर दर्द की समस्या है। बेटे कुलदीप के साथ सिविल अस्पताल में हड्डी रोग विभाग में इलाज करवाने के लिए आई थीं। घर से कार में आए परंतु पार्किंग से ओपीडी तक आने ें दिक्कत हुई। पूछताछ कक्ष में व्हील चेयर के बारे में पूछा तो मुलाजिम ने बताया कि मरीज लेकर गए है वापिस आने के बाद ही उन्हें दे सकेंगे। व्हील चेयर का इंतजार न कर बेट व वाकर के सहारे ही डाॅक्टर के कमरे तक पहुंचे।

अपनी ही साइकिल से पहुंचे अस्पताल

काला सिंघिया रोड पर रहने वाले इंद्रजीत सिंह (40) पोलियो की वजह से दोनों टांगों से लाचार हैं। बुखार, खांसी और बदन दर्द की वजह से सिविल अस्पताल में दवा लेने के लिए आए। वह अपनी ट्राई साइकिल ही सीधे अस्पताल में अंदर ले गए। वहां मेडिसन की ओपीडी में पहुंचे और डाॅक्टर ने उन्हें जांच कर दवा लिख कर भेज दिया।

पीठ पर उठाकर पहुंचाया ओपीडी

नूरपुर के रहने वाले राज कुमार (28) की दो सप्ताह पहले सड़क हादसे में टांग टूट गई थी। सिविल अस्पताल में उनकी टांग का आपरेशन कर पलास्टर लगाया गया। उन्हें दर्द काफी महसूस होती है। डड्डी रोग माहिर डाक्टर ने वीरवार को उन्हें जांच के लिए दोबारा बुलाया। काफी देर तक व्हील चेयर का इंतजार करते रहे आखिर में उनके भाई हरीश ने उन्हें अपनी पीठ पर उठाया और ओपीडी में ले गए।

1909 में बना था सिविल अस्पताल

शहीद बाबू लाभ सिंह ट्रस्ट के सचिव सुरिंदर सैनी का कहना है कि यह अस्पताल 1909 में शुरू हुआ था। इसका नाम विक्टोरिया अस्पताल रखा गया था। 1975 में भूतपूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने इसका नाम शहीद बाबू लाभ सिंह सिविल अस्पताल रखा। पहले 100 बेड का अस्पताल था व वर्तमान में 550 बेड का है।

ओपीडी में बढ़ाई जाएंगी व्हील चेयर की संख्या

सिविल अस्पताल की मेडिकल सुपरिंटेंडेंट डॉ. मनदीप कौर का कहना है कि अस्पताल में रोजाना 1500 से 1800 के करीब मरीज ओपीडी में जांच करवाने तथा 100-110 मरीज दाखिल होते हैं। इनमें एक फीसदी दिव्यांग शामिल हैं। अस्पताल में सेहत विभाग की ओर से व्हील चेयर मुहैया करवाई गई है। अस्पताल में 34 व्हील चेयर है। जबकि पंजाब हेल्थ सिस्टम कारपोरेशन की नीतियों के अनुसार 500 बेड की क्षमता वाले अस्पताल में 20 व्हील चेयर होनी चाहिए। वार्डों में जहां व्हील चेयर अतिरिक्त हैं, वहां से उठवा कर ओपीडी में रखवा कर मरीजों की समस्या का समाधान किया जाएगा।

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