Move to Jagran APP

कभी यहां घोड़ों पर आते थे खरीददार, यहां के सराफा बाजार की है अपनी अलग पहचान Jalandhar News

सराफा बाजार में वाजिब दाम पर अच्छे गहने मिल जाते हैं। हालांकि बाजार में भीड़ की वजह से थोड़ी परेशानी तो जरूर होती है। इस पर ध्यान देना होगा।

By Sat PaulEdited By: Published: Sun, 20 Oct 2019 04:09 PM (IST)Updated: Mon, 21 Oct 2019 08:31 AM (IST)
कभी यहां घोड़ों पर आते थे खरीददार, यहां के सराफा बाजार की है अपनी अलग पहचान Jalandhar News
कभी यहां घोड़ों पर आते थे खरीददार, यहां के सराफा बाजार की है अपनी अलग पहचान Jalandhar News

जालंधर, [शाम सहगल]। शहर के जिस सराफा बाजार में आज पैदल गुजरना मुश्किल हो चुका है, वहां पर कभी लोग सोने के आभूषण खरीदने के लिए घोड़ों पर आते थे। यही नहीं, आसपास के गांवों व कस्बों से लोग इमाम नासिर तक बसों में आते थे। वे वहां से पैदल ही सराफा बाजार आकर सोने के आभूषणों की खरीदारी करते थे।

loksabha election banner

सराफा बाजार के बुजुर्ग कारोबारी केवल कृष्ण लूथरा बताते हैं कि विभाजन के दौरान सराफा बाजार का दायरा केवल हनुमान चौक से लेकर लाल बाजार के पहले हिस्से तक हुआ करता था। समय के साथ इसके साथ लगते इलाके लाल बाजार, भट्ठा वाली गली तथा कोहलियां मोहल्ला भी सराफा बाजार में मर्ज हो चुके हैं। इस बाजार में तीन से लेकर चार मंजिला तक दुकानें बन चुकी हैं, जहां पर स्वर्ण आभूषण पॉलिश करने से लेकर गलाई तक तथा तैयार करने से लेकर उसमें चमक लाने तक का कारोबार किया जा रहा है। वह बताते हैं कि विभाजन से पूर्व पाकिस्तान के लायलपुर में स्वर्ण आभूषण खरीदने के लिए लोग जाया करते थे।

विभाजन के बाद हनुमान चौक से लेकर लाल बाजार तक स्थित सराफा बाजार से लोग खरीदारी करते रहे हैं। गुरु अमरदास नगर निवासी पंकज बताते हैं कि बह जालंधर में 20 साल से रह रहे हैं। सोने या चांदी के गहने सराफा बाजार से ही ले आते हैं। सराफा बाजार में वाजिब दाम पर अच्छे गहने मिल जाते हैं। हालांकि, बाजार में भीड़ की वजह से थोड़ी परेशानी तो जरूर होती है। इस पर ध्यान देना होगा। यहां पर यातायात की व्यवस्था में सुधार करना होगा।  

35 रुपये प्रति तोला बेच चुके हैं सोना

केवल कृष्ण लूथरा बताते हैं कि करीब 16 वर्ष की उम्र में उन्होंने सोने का कारोबार शुरू किया था। 50 के दशक में उन्होंने मात्र 35 रुपये प्रति तोला सोना बेचा था। इसी तरह चांदी 12 आने प्रति तोला के हिसाब से बेची थी। उस समय चांदी का इस्तेमाल आभूषणों के लिए नहीं, बल्कि बर्तनों व शोपीस के लिए अधिक किया जाता था। कारण, आभूषण के लिए लोग केवल सोने को ही तरजीह देते थे।  

समय के साथ बढ़ा बर्तन बाजार का दायरा

जिले के एकमात्र बर्तन बाजार का दायरा समय के साथ बढ़ा है। इसके साथ ही मजबूत हुआ है बाजार का अस्तित्व। विभाजन से पूर्व जहां इस बाजार में बर्तन की चार-पांच दुकानें ही हुआ करती थी, वहीं इस समय 100 के करीब दुकानें हैं। यहां पर बर्तनों की खरीद-फरोख्त की जाती है। भले ही विकसित हो गए शहर में गली-मोहल्लों में भी बर्तनों की दुकानें खुल चुकी हैं, लेकिन बावजूद इसके धनतेरस के दिन यहां पर तिल रखने की जगह नहीं बचती है। बाजार के पुराने दुकानदार शर्मा बर्तन भंडार के हैप्पी शर्मा बताते हैं कि समय के साथ तांबे, पीतल व कांस्य का स्थान स्टील ने ले लिया है। इसके बाद नॉन स्टिक बर्तनों के चलन से भी पीतल व तांबे के बर्तनों का इस्तेमाल कम हो गया है। 

तीन पीढ़ियों से सोने का कारोबार कर रहा है धवन परिवार

शहर के बाजार शेखां खुर्द में स्थित धवन ज्वेलर्स पर तीसरी पीढ़ी इस कारोबार को कर रही है। धवन ज्वेलर्स के कुलभूषण धवन बताते हैं कि दादा कश्मीरी लाल धवन के समय से जो परिवार उनसे स्वर्ण आभूषण बनवाने के लिए आते थे, उनमें कई विदेश जाकर सेटल हो चुके हैं। बावजूद इसके उनका विश्वास आज भी उन्हीं पर बरकरार है। यही कारण है कि जब भी वे भारत आते हैं तो आभूषण तैयार करवाकर सौगात के रूप में विदेश लेकर जाते हैं। उन्होंने कहा कि उनके कई ग्राहक ऑनलाइन डिजाइन सेलेक्ट करके उन्हें भेजते हैं, जिन्हें यहां तैयार करवा दिया जाता है। वहीं, लव कुमार धवन बताते हैं कि समय के साथ अब इटालियन सिल्वर ज्वेलरी ने अपनी जगह बना ली है। 

हरियाणा की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

पंजाब की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.