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1834 से 2020 तक का सफरनामा; पहली पीढ़ी ने बनाई फुटबॉल, चौथी पीढ़ी सहेज रही इतिहास

18 वर्षीय ओजस खरबंदा ने स्पोट्र्स हेरिटेज म्यूजियम बनाया है। म्यूजियम में 1834 से 2020 तक का खेल सामग्री का सफरनामा दिखाया गया है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Mon, 16 Mar 2020 12:25 PM (IST)Updated: Tue, 17 Mar 2020 09:06 AM (IST)
1834 से 2020 तक का सफरनामा; पहली पीढ़ी ने बनाई फुटबॉल, चौथी पीढ़ी सहेज रही इतिहास
1834 से 2020 तक का सफरनामा; पहली पीढ़ी ने बनाई फुटबॉल, चौथी पीढ़ी सहेज रही इतिहास

जालंधर [मनोज त्रिपाठी]। जालंधर की बनी फुटबॉल और वालीबॉल की गेंद को दुनियाभर में पहुंचाने वाले निहालचंद खरबंदा की चौथी पीढ़ी हेरिटेज स्पोट्र्स म्यूजियम के जरिए खेल सामग्री निर्माण के गौरवशाली इतिहास को सहेजने में जुटी हुई है। प्रसिद्ध नीविया समूह के 18 वर्षीय ओजस खरबंदा ने जालंधर में ऐसा म्यूजियम बनाया है, जिसमें खेल सामग्री के निर्माण का इतिहास बताया गया है। इस म्यूजियम में विश्व प्रसिद्ध मेसी, पेले और सचिन तेंदुलकर द्वारा इस्तेमाल की गई गेंद और बल्ले को रखा गया है।

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ओजस खरबंदा बताते हैैं कि वर्ष 1883 में सियालकोट (अब पाकिस्तान में) में सरदार गंडा सिंह ओबराय ने खेल सामग्री निर्माण की नींव रखी थी। बाद में उनके साथ निहालचंद खरबंदा भी जुड़ गए। मात्र 30 रुपये प्रतिमाह वेतन पर निहालचंद को रंगून में खेल सामग्री की सप्लाई की जिम्मेवारी सौंपी गई थी। बंटवारे के बाद वह परिवार सहित जालंधर आ गए और नए सिरे से कारोबार की नींव रखी। उन्होंने फुटबॉल और वालीबॉल का निर्माण शुरू किया। पीढ़ी दर पीढ़ी यह कारोबार फलता-फूलता रहा। वर्ष 1961 में इसे नीविया समूह के नाम से कॉरपोरेट रूप दिया गया।

दरअसल, उस समय स्यालकोट खेल निर्माण उद्योग का प्रमुख केंद्र था। बंटवारे के बाद वहां से आए लोगों ने जालंधर में इस कारोबार को खड़ा किया। शुरू में यहां फुटबॉल और वालीबॉल की गेंद ही ज्यादा बनाई जाती थी। इसका असर पंजाब के खेल माहौल पर भी पड़ा। गांव-गांव में फुटबॉल खेला जाता था। 1970 में जेसीटी मिल ने इसे प्रोफेशनल तरीके से शुरू कर आगे बढ़ाया, लेकिन यह सफर लंबा नहीं चला। 1990 तक धीरे-धीरे राज्य से यह खेल लुप्त हो गया और अन्य खेलों ने जगह बना ली। 10 साल पहले जेसीटी ने भी हाथ खींच लिए।

फुटबॉल को दे रहे बढ़ावा

नीविया के संचालक और ओजस के पिता राजेश खरबंदा ने नए सिरे से विभिन्न क्लबों को फुटबॉल के प्रति प्रेरित किया और आज होशियारपुर, रुड़का कलां तथा पठानकोट सहित कई हिस्सों में फिर से फुटबॉल दिखाई देने लगा है।

खेल में बदलाव का सफर

म्यूजियम में पहुंचकर एहसास हो जाएगा कि किस प्रकार समय के साथ-साथ खेलों की तकनीक बदली और उसके हिसाब से खेल उद्योग ने खिलाडिय़ों की सहूलियत को ध्यान में रखते हुए नए-नए प्रयोग किए।

दादा ने दी प्रेरणा

ओजस बताते हैैं कि एक दिन घर में फीते वाली फुटबॉल पर नजर पड़ी। दादा विजय खरबंदा से पूछा तो उन्होंने इसका रोचक इतिहास बताया। यहीं से म्यूजियम का आइडिया आया। जालंधर के लेदर कांप्लेक्स में स्थित नीविया फैक्ट्री में म्यूजियम बनाया। सबसे पहले उसी फीते वाले फुटबॉल का चयन किया। परिवार से भरपूर मदद मिली। खेल सामान बनाने वाले लोगों से संपर्क किया। सोशल मीडिया पर भी अभियान चलाया। लोगों से खेल के पुराने सामान को दान करने की अपील की। अच्छा रिस्पांस मिला और लोग बढ़चढ़ कर योगदान कर रहे हैैं। 

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