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लाकडाउन में भी नहीं टूटने दिया मरीजों का विश्वास, फोन पर आर्डर लेकर घर पर भिजवाई दवाएं

Jalandhar Make Small Strong तेजिंदरपाल सिंह वर्ष 2002 से श्रीराम चौक स्थित इंपीरियल मेडिकल हाल संचालित कर रहे हैं। उन पर ग्राहकों का गहरा विश्वास है। स्टोर में मरीजों को हर तरह की दवाएं मिल जाती हैं। उन्हें कहीं भटकना नहीं पड़ता है।

By Pankaj DwivediEdited By: Published: Wed, 21 Oct 2020 12:30 AM (IST)Updated: Wed, 21 Oct 2020 12:30 AM (IST)
लाकडाउन में भी नहीं टूटने दिया मरीजों का विश्वास, फोन पर आर्डर लेकर घर पर भिजवाई दवाएं
तेजिंदरपाल सिंह वर्ष 2002 से श्रीराम चौक स्थित इंपीरियल मेडिकल हाल संचालित कर रहे हैं।

जालंधर, जेएनएन। शहर के श्रीराम चौक में 80 के दशक में खुली एक डाक्टर की दुकान अब मेडिकल स्टोर में परिवर्तित हो चुकी है। जो दवाई शहर की किसी दुकान पर नहीं मिलती है, वह यहां आसानी से उपलब्ध हो जाती है। हम बात कर रहे हैं इंपीरियल मेडिकल हाल की। यहां पर जीवनरक्षक दवाओं के साथ हर उस मर्ज की मेडिसिन मिलती है जो अब तक केवल बड़े मेडिकल सेंटरों में मिलती थी।

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तेजिंदरपाल सिंह ने बताया कि वर्ष 1955 से पहले श्री राम चौक पर डा. हरबिशन सिंह की दुकान होती थी। यहां उपचार करवाने के लिए मरीजों की भीड़ लगी रहती थी। डा. हरबिशन सिंह की मौत के बाद पिता अनूप सिंह व उनके पार्टनर अमरनाथ ने यह दुकान खरीद ली और यहां मेडिकल स्टोर शुरू किया। जल्द ही मेडिकल स्टोर पर मरीजों का काफी विश्वास बनना शुरू हो गया। तेजिंदरपाल कहते हैं कि उन्होंने वर्ष 1984 में मेडिकल स्टोर पर पिता का हाथ बंटाना शुरू किया। वर्ष 2002 में पिता की मौत के बाद सारा कामकाज वह खुद संभाल रहे हैं।

लाकडाउन में वाट्सएप पर डाक्टर की पर्ची देख मरीजों तक दवाइयां पहुंचाईं

मेडिकल हाल के मालिक तेजिंदरपाल ने बताया कि कोरोना संकट में लाकडाउन लगने के बाद सरकार ने थोड़े समय के लिए मेडिकल स्टोर खोलने की अनुमति दी थी। बावजूद इसके लोग कोरोना वायरस संक्रमण के डर के कारण घर से बाहर नहीं आ रहे थे। इस बीच बीमार लोगों तक जरूरी दवाएं पहुंचाना बड़ी चुनौती थी। उन्होंने फोन पर दवाइयों के आर्डर लेने शुरू कर दिए। मेडिकल स्टोर पर काम करने वाले कर्मचारियों ने जरूरतमंदों के घरों तक दवाइयां पहुंचाना शुरू किया। मरीजों के विश्वास के कारण उन्हें यह काम करने में विशेष परेशानी पेश नहीं आई। हालांकि बिना पर्ची के किसी मरीज को दवाई नहीं दी गई। पहले मरीज डाक्टर की पर्ची वाट्सएप भेजता था। पर्ची देखने के बाद ही दवाई घर तक पहुंचाई जाती थी।

मरीजों से होम डिलीवरी का चार्ज नहीं लिया

तेजिंदरपाल ने बताया कि उन्होंने दवाओं की होम डिलिवरी के लिए किसी भी मरीज चार्जेस नहीं लिए। लाकडाउन में रोजाना सौ से डेढ़ सौ आर्डर आ जाते थे। अब कोरोना की गंभीरता कम होने लगी है। मरीज सीधे मेडिकल हाल से दवाइयों की खरीदारी कर रहे है।

मुश्किल घड़ी में पैसे लिए बिना मरीजों तक दवाई पहुंचाई

तेजिंदरपाल ने बताया कि मरीजों को मेडिकल हाल पर अटूट विश्वास है। कई मरीज ऐसे थे जिनके पास दवाई के लिए पैसे नहीं थे। उन्होंने उनके घरों तक भी दवाई पहुंचाई। मुश्किल घड़ी में कई मरीजों से दवाई के पैसे नहीं लिए। लाकडाउन खुलने के बाद मरीज खुद पैसे देने पहुंच रहे हैं। 

तेजिंदरपाल ने कहा कि उनके पिता अनूप सिंह ने शुरू से ही उन्हें ईमानदारी से काम करने के लिए प्रेरित किया है। मेडिकल हाल में आने वाले हर खरीदार को बिल दिया जाता है। कोशिश यही रहती है कि मेडिकल हाल में हर प्रकार की दवाई उपलब्ध हो। वह हर बीमारी की दवाई रखना जरूरी मानते हैं ताकि मरीज भटके नहीं। उसे एक ही जगह पर सभी दवाएं मिलें। उन्होंने कहा कि डिजिटल युग में भी मरीजों को मेडिकल स्टोर आकर स्वयं दवाई खरीदना पसंद है।

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