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जालंधर की इमाम नासिर मस्जिद के पाकिस्तान में चर्चे, बाबा फरीद ने यहीं ली थी शरण, जानें इसकी खासियतें

जालंधर की ऐतिहासिक इमाम नासिर मस्जिद जालंधर के ग्रैंड ट्रंक रोड पर स्थित है। यह करीब लगभग 800 साल पुरानी है। दो मंजिला बनी मस्जिद में लगा क्लाक टावर इसकी बड़ी खासियत है। यह पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र है।

By Pankaj DwivediEdited By: Published: Wed, 02 Dec 2020 11:43 AM (IST)Updated: Wed, 02 Dec 2020 11:43 AM (IST)
जालंधर की इमाम नासिर मस्जिद के पाकिस्तान में चर्चे, बाबा फरीद ने यहीं ली थी शरण, जानें इसकी खासियतें
जालंधर की इमाम नासिर मस्जिद ८०० साल का इतिहास समेटे है। (जागरण)

जालंधर [प्रियंका सिंह]। जालंधर की इमाम नासिर मस्जिद (Imam Nasir Masjid) के आजकल पाकिस्तान में खूब चर्चे हैं। पाकिस्तान की मीडिया में जालंधर शहर की खूब तारीफ हो रही है। यहां के एक चैनल पर पिछले दिनों किए गए शो में जालंधर शहर की खूबियों की एंकर ने जमकर तारीफ की। इसका वीडियो भी पंजाब में वायरल हो गया था। शो में जालंधर के ऐतिहासिक स्थानों की बात आई तो सबसे पहले नाम आया था इमाम नासिर मस्जिद का। क्या आप जानते हैं यह मस्जिद कितनी पुरानी है, इसका यह नाम कैसे पड़ा। इस ऐतिहासिक मस्जिद से जुड़े कई ऐसे तथ्य हैं जिन्हें आप नहीं जानते होंगे। आज हम आपको बताएंगे कि यह खूबसूरत मस्जिद क्यों इतनी मशहूर है।

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महान संत इमाम नासिर पर है नाम

इमाम नासिर मस्जिद जालंधर के ग्रैंड ट्रंक रोड पर स्थित है। यह करीब लगभग 800 साल पुरानी है। इतिहासकारों के अनुसार यहां पर 40 दिनों के लिए बाबा फरीद ने शरण ली थी, जिसके चलते स्थान को और भी पवित्र माना जाता है। यही कारण है कि पाकिस्ताने के लोग इस मस्जिद के बारे में जानने को उत्सुक रहते हैं।

जालंधर की इमाम नासिर मस्जिद का रंग-रूप समय के साथ बदला है। हालांकि आस्था के केंद्र के रूप में इसका स्थान बरकरार है। मस्जिद में लगा क्लाक टावर पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहता है।

क्लाक टावर पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र

दो मंजिला बनी मस्जिद में लगा क्लाक टावर इसकी बड़ी खासियत है। यह पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र है। मस्जिद मुगलशैली की वास्तुकला का भी प्रतिबिंब भी है। इसकी दीवारों पर अलग-अलग पैटर्न की आकर्षक चित्रकारी की गई है। मस्जिद के चारों दीवारें लंबी है, जिन्हें बाजार के बीच से भी आसानी से देखा जा सकता है। इस दरगाह में मुस्लिम समुदाय कार्यक्रम करवाता है।

मस्जिद के पास रहने वाले अब्दुल बताते हैं कि वह लगभग 60 साल से यहां पर रह रहे हैं। वह कहते हैं कि समय के साथ मस्जिद के रंग रूप में कई बार बदलाव आया है। हालांकि उनके दिल में इसे लेकर श्रद्धा में कोई कमी नहीं आई है। देश के विभाजन के समय बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग यहां से चले गए थे। जालंधर के लोगों ने इस मस्जिद की अच्छी तरह देखरेख करके इसे संभाले रखा है।

सुंदर बगीचा दिलाता है मुगलकालीन शैली की याद

इमाम नासिर मस्जिद के अंदर बना सुंदर बगीचा मुगलकालीन शैली की याद दिलाता है। मुगलों के दौर में बगीजों को विशेष महत्व होता था। यहां पर ज्यादातर सर्दियों में आना ही पसंद करते हैं क्योंकि गर्मी में उमस और चिलचिलाती धूप रहती है।

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