जालंधर के जिमखाना क्लब में 25 साल से पार्किंग का घमासान, निर्माण से पहले ही आने लगी घोटाले की बू
जालंधर के जिमखाना क्लब में पार्किंग का मुद्दा इस समय गरमाया हुआ है। नए साल में होने वाले क्लब चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा पार्किंग ही बन गया है। कार्यकारिणी ने अंडर ग्राउंड पार्किंग का प्रस्ताव पास कर दिया। क्लब के सदस्यों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है।
जालंधर, [मनोज त्रिपाठी]। शहर के सबसे प्रतिष्ठित जिमखाना क्लब में 25 साल से वाहनों की पार्किंग को लेकर विवाद चल रहा है। हर बार क्लब की कार्यकारिणी के चुनाव में पार्किंग एक बड़ा मुद्दा होता है, लेकिन चुनाव के बाद ये मुद्दा हवा-हवाई हो जाता है। इस बार भी नए साल में होने वाले चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा पार्किंग ही बन गया है। कार्यकारिणी ने अंडर ग्राउंड पार्किंग का प्रस्ताव पास कर दिया है। इसके बाद से क्लब के सदस्यों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है कि हरे पेड़ों व बच्चों के पार्क को तहत-नहस करके पार्किंग का निर्माण करवाना समझ से परे है। इस संबंध में हस्ताक्षर अभियान चल रहा है, लेकिन कार्यकारिणी पर सिक्का जमाए बैठे पदाधिकारियों के कानों पर जूं भी नहीं रेंग रही। अब यह मुद्दा आम से खास बन गया है, क्योंकि पार्किंग के निर्माण से पहले ही घोटाले की बू आने लगी है।
पहले लिया मजा, अब भुगत रहे सजा
मामला स्थानीय निकाय विभाग के एक आला अधिकारी से जुड़ा है। कुछ समय पहले तक विभाग में उच्च पद पर तैनात रहने वाले एक अधिकारी को उनकी खास योग्यता के दम पर जालंधर के तमाम कांग्रेसियों ने काफी पसंद करके जालंधर में तैनात करवा लिया। महोदय की तैनाती के बाद कई कांग्रेसियों ने तमाम लोगों की वाहवाही लूटी कि देखो कितना मृदुभाषी अधिकारी तैनात करवा लिया है। अब जो चाहेंगे वही होगा। महोदय कभी विभाग के मंत्री की पत्नी के सामने मैडम सर, मैडम सर कहते नहीं थकते थे। उनके इसी व्यवहार से शहर के कांग्रेसियों के दिल में उनके प्रति प्यार उमड़ आया था, लेकिन अब महोदय ने जालंधर में तैनाती के बाद अपनी स्टाइल में काम शुरू कर दिया है। नतीजतन मेयर सहित जो कांग्रेसी पहले महोदय की तैनाती के बाद मजा ले रहे थे अब उन्हेंं सजा भुगतनी पड़ रही है, क्योंकि मायाजाल में फंसे महोदय उनकी सुनवाई नहीं कर रहे हैं।
आरटीआइ का कमाल, कांग्रेस हुई लाल
शहर में बीते दो सप्ताह से आरटीआइ की आड़ में ब्लैकमेलिंग का मुद्दा चर्चा में छाया हुआ है। एक तरफ कांग्रेस नेता मेजर सिंह पीडि़त पक्ष के रूप में हैं तो दूसरी तरफ आरटीआइ कार्यकर्ता सिमरनजीत सिंह भी पीडि़त होने का दावा कर रहा है। आरटीआइ कार्यकर्ता की धमक इतनी है कि कांग्रेसियों को उसकी गिरफ्तारी के लिए थाने का घेराव तक करना पड़ा है, लेकिन गिरफ्तारी नहीं हो पाई। मामला बिगड़ता देख सरकार ने भी हिदायतें जारी कर दी कि इसका हल निकाला जाए और सड़क पर उतरे कांग्रेसियों को जल्द न्याय दिलाया जाए, लेकिन पुलिस की बेबसी के चलते न तो कांग्रेसियों को न्याय मिल पा रहा है और न ही आरटीआइ कार्यकर्ता को। अब तो लोग सत्ता के गलियारों में यह भी चर्चा करने लगे हैं कि अगर यही हाल रहा तो आने वाले समय में प्रापर्टी कारोबार से जुड़े कांग्रेसियों के बुरे दिन आने वाले हैं।
पहले 'तड़ीपार', अब टिकट का इंतजार
भारतीय जनता पार्टी व शिरोमणि अकाली दल का गठबंधन टूटने के बाद तमाम भाजपाइयों के चेहरों पर रौनक लौट आई है। इन्ही में एक पार्टी की सियासत का शिकार हुए अमरजीत सिंह अमरी भी हैं। सिख चेहरा होने के चलते पार्टी ने उन्हेंं शहर से 'तड़ीपारÓ करके देहात की जिम्मेवारी सौंप दी थी। वहां उन्होंने पार्टी को काफी मजबूती भी दिलाई इसमें कोई शक नहीं है। अब गठबंधन टूटने के बाद अमरी को उम्मीद थी कि उन्हेंं एक बार फिर से शहर की जिम्मेवारी दी जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और उन्हें दोबारा से देहात की जिम्मेवारी सौंप दी गई है। अब पार्टी ने कोई फैसला किया है तो भविष्य का सोच कर ही किया होगा। नतीजतन अब देहात की विधानसभा सीटों से चुनाव लडऩे के इच्छुक कई दावेदारों में इस बात की खासी चर्चा है कि जल्दी से पार्टी फैसला करे, आखिर टिकट का इंतजार कब तक किया जाए।