धर्म क्षेत्रेः सप्प दे मुंह च कोड़ किरली... और मुझको भी लिफ्ट करा दे
जालंधर में आम जनता और संस्थाएं धार्मिक गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। आइए डालते हैं धर्म क्षेत्र से जुड़ी कुछ चुनिंदा खबरों चर्चाओं पर।
जालंधर, जेएनएन। जालंधर शहर में सप्ताह भर धार्मिक गतिविधियों की चहल-पहल रहती है। इन्हीं में कुछ चुनिंदा खबरों, चर्चाओं और कयायों को चुटीले और नुकीले अंदाज में प्रस्तुत कर रहे हैं हमारे रिपोर्टर शाम सहगल। आइए डालते हैं एक नजर।
सप्प दे मुंह च कोड़ किरली
हाल में पारित हुए सीएए और एनआरसी को लेकर इन दिनों खूब हो हल्ला है। मुस्लिम समुदाय के लोग खुद को उपेक्षित समझकर इसका विरोध कर रहे हैं। लेकिन मुस्लिम समुदाय में भी एक वर्ग ऐसा है जो बड़ी मुश्किल में है। चाहकर भी विरोध नहीं कर पा रहा है। दरअसल, इस वर्ग के मुखिया को सरकार ने एक आयोग का अध्यक्ष बना रखा है। यदि विरोध करते हैं तो पांच साल के लिए मिली कुर्सी छिनती है और नहीं करते हैं तो समुदाय में बुरे बनते हैं। यानी ‘सप्प दे मुंह च कोड़ किरली’ वाले हालात बने हुए हैं। खाए तो कड़वी, छोड़े तो बुझदिली। ऐसे में दोनों को खुश रखने के लिए इन्होंने नया रास्ता निकाला है। समुदाय की बैठकों में तो अंदरखाते शरीक होते हैं और विरोध भी जताते हैं परंतु मीडिया के सामने आकर सरेआम विरोध करने से बच रहे हैं।
मुझको भी लिफ्ट करा दे
पुरानी सब्जी मंडी के नजदीक स्थित प्राचीन मंदिर में लोगों की आमदन में भी तेजी के साथ इजाफा हुआ है। श्रद्धालु बढ़े तो इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार होना लाजमी है। ऐसा हुआ भी, लेकिन इस दौरान अपनों को लाभ पहुंचाने पर ही कमेटी का ध्यान ज्यादा केंद्रित रहा। नतीजा यह हुआ कि निर्माण कार्य में क्वालिटी से समझौता कर दिया गया। श्रद्धालुओं को तो इसका कोई फायदा नहीं हुआ लेकिन अपनों को लिफ्ट करवाने में कमेटी के लोग सफल रहे। लोगों के दान से हो रहे मंदिर के विकास में इस तरह की लापरवाही अब चर्चा का विषय बनी हुई है। चूंकि कमेटी के अधिकतर सदस्य परिवारवाद का पालन कर रहे हैं। इस कारण कोई इसका खुलकर विरोध भी नहीं कर रहा है और मौन विरोध किया जा रहा है।
कौन है बैक बेंचर
फ्लिपकार्ट पर लोगों को लोटपोट करने वाला सीरियल बैक बेंचर विवादों में कब आ गया इसका पता ही नहीं चला। बात जब बढ़ी तो लोग सड़कों पर उतर आए और इसकी तीन अभिनेत्रियां संकट में पड़ गईं। हैरानी की बात तो यह है कि जिस समुदाय के धर्म पर सीरियल में टिप्पणी की गई वह चुप है और जिनका इससे कोई लेना-देना नहीं है, वे सड़कों पर विरोध कर रहे हैं। विरोध करने वालों को इसका भी मलाल नहीं है कि जिनके लिए वह संघर्ष कर रहे हैं उस समुदाय के नाम पर स्वास्थ्य से लेकर शिक्षण संस्थानों को चलाने वालों में से कोई भी उनके साथ नहीं खड़ा है और न ही कोई कमेंट कर रहा है। उन्हें तो इस बात की खुशी है कि जिस मिशन पर निकले थे, उसमें काफी हद तक सफल भी रहे हैं। लिहाजा जिम्मेदारी से दौड़ने वाले सदैव याद रहेंगे।
आगाज होते ही उठी आवाज
गुरु साहिबान ने समूची मानवता को धर्म का पालन करने और सिद्धांतों पर चलने की प्रेरणा दी है। यह बात जुदा है कि विरले ही इन सिद्धांतों पर खरा उतर पाते हैं। ऐसी ही मिसाल हाल ही में देखने को मिली। बात नगर कीर्तन के दौरान मेहमानों को सम्मान देने से जुड़ी है। यहां सम्मान देने वाले सिद्धांतों को ही भूल गए। गलती से एक ओंकार की जगह पर अपनी संस्था का नाम लिखवा कर समारोह का आगाज कर बैठे। फिर क्या था आगाज के खिलाफ ही संगत की आवाज भी बुलंद हो गई। मामला समुदाय के बीच का था तो तालमेल कमेटी ने आपस में सभी का बमुश्किल तालमेल बिठाया और मामला शांत करवाया। तुरंत स्मृति चिन्हों से संस्था का नाम हटाया गया। अब भी यह मामला चर्चा का विषय बना हुआ है। हालांकि सम्मान देने वालों को इस बात का एहसास भी करवाया गया। सम्मान करने वालों ने इस भूल को स्वीकार भी किया।
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