बॉलीवुड छोड़ पंजाबी सिनेमा की तरफ आ रहे कई हीरो
पंजाबी सिनेमा में खुशहाली आई है और प्रत्येक रिलीज हो रही ¨हदी फिल्म के साथ पंजाबी फिल्म भी रिलीज हो रही है।
जालंधर [मनुपाल शर्मा]। पंजाबी सिनेमा में खुशहाली आई है और अब हर एक हिंदी फिल्म के साथ पंजाबी फिल्म भी रिलीज हो रही है। हिंदी सिनेमा को स्थापित करने में अहम भूमिका निभा चुका पंजाबी सिनेमा अब उस मुकाम पर पहुंच गया है कि कई हीरो बॉलीवुड छोड़कर पंजाबी सिनेमा का रुख करने लगे हैं। शुक्रवार को शहीद ऊधम सिंह नगर स्थित केएल ऑडिटोरियम में 10वें जागरण फिल्म फेस्टिवल का शुभारंभ करने के बाद दर्शकों के रूबरू हुए प्रसिद्ध एक्टर, लेखक, अध्यापक, एंकर एवं फिल्म आलोचक डॉ. सतीश वर्मा ने कुछ इस तरह से पंजाबी सिनेमा के एक मुकाम पर पहुंचने का वर्णन किया।
डॉ. सतीश वर्मा विख्यात पंजाबी गायक परमीश वर्मा के पिता भी हैं। रेडियो कंमेंटेटर वरिंदर सिंह ने दर्शकों की तरफ से विभिन्न विषयों पर उनके विचार जाने। पंजाबी फिल्मों का कंटेंट साहित्य से नहीं जुड़ा, लेखकों की कमी पंजाबी सिनेमा में आ रही खुशहाली से उत्साहित डॉ. सतीश वर्मा पंजाबी फिल्मों का कंटेंट के साहित्य से न जुड़े होने को लेकर भी खुलकर बोले। उन्होंने कहा कि पंजाबी फिल्मों में लेखकों की फिलहाल कमी है। पंजाबी फिल्मों के डायरेक्टर और एक्टर पंजाबी के लेखकों को अछूत ना समझें।
देश की पहली फिल्म से ही पंजाबी एक्टर का योगदान
डॉ. सतीश वर्मा ने कहा कि बॉलीवुड के उत्थान में पंजाब का योगदान विभाजन से पहले का है देश की सबसे पहली फिल्म 1931 में आलमआरा बनी और उसमें पंजाबी पृथ्वीराज कपूर ने किरदार निभाया। उन्होंने कहा कि लेखन में भी पंजाबी हिंदी या उर्दू महज भाषा का अंतर था, लेकिन पंजाब में लगातार लिखा जाता रहा। जय हो जैसा विश्व प्रसिद्ध हिंदी गीत भी पंजाबी गायक सुखविंदर सिंह ने गाया है।
सिनेमा एक भाषा, कॉमर्शियल और आर्ट भी चलते हैं इकट्ठे
सिनेमा एक भाषा है और इसे एक बीच का रास्ता माना जा सकता है। डॉ. सतीश वर्मा ने कहा कि कॉमर्शियल और आर्ट को मिलाकर फिल्म बन सकती है, बनाने वाला होना चाहिए। पैसा तो एक मदद है। उन्होंने कहा कि एक लाख की फिल्म भी तालियां बटोर सकती है और अगर समझ नहीं है तो करोड़ों रुपये खर्च कर भी सफलता हासिल नहीं होती।
जेएफएफ सार्थक, दर्शक होते हैं एजुकेट
जागरण फिल्म फेस्टिवल (जेएफएफ) को मौजूदा दौर में सार्थक बताते हुए डॉ. सतीश वर्मा ने कहा कि यह दर्शकों को एजुकेट करने में अहम भूमिका निभाता है। उन्होंने कहा कि फिल्म देखकर तो मात्र एक दर्शक वापस आ जाता है, लेकिन फिल्म फेस्टिवल में पर्दे के पीछे की जानकारी भी दर्शक को मिल पाती है। फेस्टिवल से दर्शकों को सिनेमा के बारे में समझ मिलती है।
औरत सबसे बड़ा भगवान, सभी मां से ही पैदा हुए
दुनिया में औरत को सबसे बड़ा भगवान बताते हुए डॉ. सतीश वर्मा ने कहा कि औरत से बड़ा कोई हो ही नहीं सकता। एक मां से ही सब पैदा हुए हैं और वह मां ही एक औरत है। उन्होंने कहा कि वह आज जो कुछ भी हैं अपनी मां की ही बदौलत हैं।
ओम पुरी से प्रभावित हो रंगमंच में खिले
चार भाइयों में तीसरे डॉ. सतीश वर्मा ने कहा कि विख्यात अभिनेता ओमपुरी उनके कजन हैं और वह उन्हें ही देखकर रंगमंच में आए। उनके भाई सुदेश वर्मा भी रंगमंच से ही जुड़े हुए थे जिन्होंने उन्हें रंगमंच में आने के लिए प्रेरित किया।
फोटो मेमोरी में दक्ष, खुद को बताते हैं मिशनरी प्रोफेशनल
बीते 60 साल की यादें डॉ. सतीश वर्मा की आंखों के आगे रील की तरह चलती हैं। 63 वर्षीय डॉ. वर्मा ने कहा कि उन्हें तीन साल की आयु से लेकर अब तक का सब कुछ याद है। उन्हें अपने स्कूल के पहले दिन का विवरण आज भी याद है। आठवीं तक आते-आते उन्होंने मंटो जैसे लेखकों को भी पढ़ लिया था। उन्होंने एक शेर सुनाया कि 'मैंने उनको देखा, जितना देखा जा सकता था, पर इन दो आंखों से कितना देखा जा सकता था'। उन्होंने कहा कि वह 24 घंटे में 72 घंटे जीने की कोशिश करते हैं। उन्होंने कहा कि वह मिशनरी प्रोफेशनल हैं करोड़ों की विरासत को लोगों तक पहुंचाने का काम करते हैं। वह उस जगह भी जाकर बोलते हैं जहां उन्हें लाखों मिलते हैं और वह वहां भी बोलने में गुरेज नहीं करते जहां टाट पर बैठकर बच्चे उन्हें सुनते हैं।