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नहीं रहे हॉकी ओलंपियन बलबीर सिंह कुलार, दिलचस्प है उनके गांव की कहानी, ऐसेे निकले 14 ओलंपियन

हॉकी का सितारा रहे ओलंपियन बलबीर सिंह कुलार का उनके पैतृक गांव संसारपुर में शुक्रवार को दिल का दौरा पड़नेे सेे निधन हो गया।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Mon, 02 Mar 2020 10:16 AM (IST)Updated: Mon, 02 Mar 2020 10:16 AM (IST)
नहीं रहे हॉकी ओलंपियन बलबीर सिंह कुलार, दिलचस्प है उनके गांव की कहानी, ऐसेे निकले 14 ओलंपियन
नहीं रहे हॉकी ओलंपियन बलबीर सिंह कुलार, दिलचस्प है उनके गांव की कहानी, ऐसेे निकले 14 ओलंपियन

जेएनएन, जालंधर। हॉकी का सितारा रहे ओलंपियन बलबीर सिंह कुलार का उनके पैतृक गांव संसारपुर में शुक्रवार को दिल का दौरा पड़नेे सेे निधन हो गया। उन्होंने अपने घर पर ही अंतिम सांस ली। दो दिन बाद उनकी मौत की सूचना उनके बेटे कमलबीर सिंह ने अमेरिका से जालंधर पहुंचने के बाद हॉकी इंडिया को दी। हॉकी इंडिया की तरफ से रविवार सायं ट्वीट करके बलबीर सिंह की मौत की सूचना सार्वजनिक की गई। बलबीर पंजाब पुलिस से बतौर डीआइजी रिटायर हुए थे। वह अपने पीछे एक बेटा, दो बेटियों व पत्नी को छोड़ गए हैं। बेटा कनाडा और अमेरिका में रहने वाली दोनों बेटियां भी रविवार को देर रात तक जालंधर पहुंच गईं।

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बलबीर का जन्म संसारपुर गांव में 8 अगस्त 1942 को हुआ था। 17 साल की उम्र में उन्होंने स्कूल गेम्स को लेकर चयनित हॉकी की इंडिया टीम को बतौर कप्तान लीड किया था। उसके बाद उन्होंने पलट कर नहीं देखा और हॉकी के मैदान में हाफ बैक पेनाल्टी स्ट्रोक व कार्नर के जरिए गोल करके संसारपुर का नाम अमर कर दिया। उन्होंने 1962 में पंजाब पुलिस को ज्वाइन किया था। 1963 में असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर पर तैनात हुए। 1968 से 75 तक ऑल इंडिया पुलिस टीम के कप्तान भी रहे। वर्ष 2001 में डीआइजी पद से रिटायर्ड हुए थे।

ओलंपिक टीम का हिस्सा रह चुके हैं

बलबीर सिंह मैदान के हॉफ बैक में बेहतर खेलते थे। स्ट्रोक को रोकने में महारत हासिल थी। पेनाल्टी स्ट्रोक को भी बेहतर ढंग से लगाते थे। वर्ष 1966 में बैंकाक एशियाई गेम्स में स्वर्ण पदक, वर्ष 1968 में ओलंपिक कांस्य पदक जीतने वाली टीम का हिस्सा रहे।

पद्मश्री व अर्जुन अवार्डी थे बलबीर

बलबीर सिंह को सरकार ने वर्ष 1999 में अर्जुन अवार्ड और 2009 में पद्मश्री अवार्ड से नवाजा। वह द्रोणाचार्य अवार्ड से भी सम्मानित हुए।

300 साल पुराने पांच परिवार के गांव में पैदा हुए थे बलबीर

पूरी दुनिया में हॉकी के मक्का-मदीना नाम से प्रसिद्ध संसारपुर गांव ने देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर के 14 हॉकी खिलाड़ी दिए हैं। 1960 से 1975 का एक दौर था जब भारतीय हॉकी टीम में पांच से सात खिलाड़ी इसी गांव के होते थे। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गांव का नाम रोशन करने वाले बलबीर सिंह कुलार भी उन्हीं में एक थे।

टाइम पास के लिए खेलना शुरू किया

संसारपुर गांव की कहानी भी दिलचस्प है। करीब 300 साल पहले पांच परिवारों ने एक साथ जालंधर शहर से आठ किलोमीटर दूर संसारपुर गांव को बसाया था। कुछ समय बाद इन सभी परिवारों के सदस्यों ने अपने नाम के पीछे कुलार लिखना शुरू कर दिया। उसी समय बलबीर के पूर्वजों ने भी तय कर लिया था कि इस गांव का नाम पूरी दुनिया में रोशन करना है। वह परंपरा आज तक जारी है। गांव के हॉकी खेलने वाले सभी खिलाड़ी अपने नाम के पीछे कुलार लिखते हैं। इन्हीं पांच परिवारों ने गांव में खाली पड़े मैदान में लकड़ी की हॉकी से टाइम पास के लिए खेलना शुरू किया।

धीरे-धीरे इस गांव के हॉकी खिलाडिय़ों ने पूरी दुनिया में संसारपुर का नाम रोशन कर दिया। 300 साल पहले शुरू हुआ सफर आज तक जारी है। संसारपुर गांव आज भी पंजाब व देश को 14 ओलंपियन देने वाला एकमात्र गांव है। ज्यादातर खिलाड़ी व पूर्व खिलाड़ी इस गांव से जा चुके हैं, लेकिन बलबीर ने पंजाब पुलिस के रिटायर होने के बाद अपने पैतृक गांव में ही रहना पसंद किया था। उन्होंने अपनी मिट्टी का मोह कभी नहीं छोड़ा।

निधन पर किसने क्या कहा

सुरजीत हॉकी सोसायटी के संयुक्त सचिव सुरिंदर भापा ने कहा कि बलबीर सिंह कुलार ने देश के लिए खेलकर अपनी अलग पहचान बनाई। संसारपुर का नाम रोशन किया। 

ओलंपियन संजीव कुमार ने कहा कि बलबीर सिंह ने भारतीय टीम में इनसाइज फॉरवर्ड के रूप में प्रतिष्ठा हासिल की। हर मैच में बेहतर प्रदर्शन करते रहे हैं। जालंधर ने एक बेहतरीन खिलाड़ी को खो दिया है। 

पंजाब पुलिस हॉकी टीम के पूर्व कोच सुरजीत ने कहा कि बलबीर सिंह भारतीय राष्ट्रीय टीम के चयनकर्ता भी रह चुके हैं। ओलंपिक पदक विजेता बलबीर सिंह के निधन का दुख है। 

पूर्व ओलंपियन, पदमश्री व विधायक परगट सिंह ने कहा कि बलबीर सिंह एक बेहतर खिलाड़ी थे। हॉकी जगत में शोक की लहर है। कइयों ने उन्हें देखकर खेलना शुरु किया है।

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