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धरोहर: देश विभाजन के बाद जालंधर की लाल कोठी को बनाया गया था गवर्नर हाउस

जालंधर में स्थित लाल कोठी को भारत विभाजन के बाद गवर्नर हाउस बनाया गया था। पंजाब के पहले राज्यपाल इसमें दो साल से अधिक समय तक रहे थे।

By Sat PaulEdited By: Published: Sat, 17 Nov 2018 05:06 PM (IST)Updated: Sun, 18 Nov 2018 10:00 AM (IST)
धरोहर: देश विभाजन के बाद जालंधर की लाल कोठी को बनाया गया था गवर्नर हाउस
धरोहर: देश विभाजन के बाद जालंधर की लाल कोठी को बनाया गया था गवर्नर हाउस

[वंदना वालिया बाली, जालंधर] जालंधर के डीएवी काॅलेज के पास स्थित हुकुम चंद कालोनी के बाहर स्थित है एक आकर्षक लाल इमारत, जिसके आंगन में बने एक ‘मंदिर’ की शिल्पकारी भी अद्भुत है। इस लाल कोठी में विभाजन के तुरंत बाद बने भारत के नए पंजाब के राज्यपाल चंदूलाल माधवलाल द्विवेदी दो साल से अधिक समय के लिए रहे थे।

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मुफ्त में दी थी कोठी गवर्नर को
देश विभाजन के बाद जब जालंधर पंजाब की अस्थायी राजधानी बनी, तो 1932 में सेठ हुकुम चंद द्वारा बनवाई गई लाल कोठी यानी ‘आत्मा निवास’ को गवर्नर हाउस बनाया गया। पंजाब के पहले राज्यपाल चंदू लाल त्रिवेदी यहां रहे। उस दौरान यहां पंडित नेहरू सहित अनेक केंद्रीय मंत्री भी आए। इस इमारत को ही गवर्नर हाउस के लिए इसलिए चुना गया। क्योंकि शहर में इतनी बड़ी व आलीशान इमारत कोई अन्य नहीं थी। सरकार द्वारा उन्हें इस कोठी के लिए अप्रोच किया गया तो उन्होंने बिना किराया लिए ही कोठी को राजभवन बनाने की अनुमति दे दी और मलिका चौक के पास स्थित अपनी एक अन्य कोठी में जा कर परिवार सहित रहने लगा।

बेमिसाल इमारत है यह

बुधिया परिवार के सदस्य कमल कुमार बताते हैं कि उस समय 12 एकड़ जमीन इस राजभवन का हिस्सा थी। इस कोठी में करीब 30 बेडरूम्स के अलावा ड्राइंग रूम, डाइनिंग रूम, स्टोर, किचन आदि अलग हैं। इसके पास ही एक सफेद रंग की इमारत गेस्ट हाउस के रूप में बनवाई गई थी। कोठी का ड्राइंग रूम छत से जमीन तक बर्मा टीक की लकड़ी का बना है, जिसे तब से अब तक पॉलिश की भी जरूरत नहीं पड़ी है। एक रामतलाई (उस जमाने का स्विमिंग पूल) भी कोठी के एक हिस्से में बना है। इस कुंडनुमा रामतलाई में छोटी-छोटी पौड़ियां हैं। इसके अलावा तब धोबी घाट भी कोठी में ही था। आसपास बड़े-बड़े बाग-बगीचे थे। सेठ हुकुम चंद ने अपने दादा देवी सहाय की समृति में एक ‘मंदिर’ भी बनवाया था। लकड़ी की खूबसूरत मीनाकारी वाली यह समाधी आज भी आत्मा निवास में आकर्षण का केंद्र और समूचे परिवार के लिए आस्था का स्थल है। इस समय परिवार के मुखिया सेठ हुकुम चंद के भतीजे पुरुषोत्तम लाल हैं। वे बताते हैं कि उस जमाने में इस समाधी की शिल्पकारी मुस्लिम कारीगरों ने की थी। तब यह पूरी कोठी बनाने पर करीब तीन-चार लाख रुपए खर्च किए गए थे। घर की बहू अंबिका बताती हैैं कि इस कोठी की दीवारें इतनी मोटी बनाई गई हैं कि एसी लगवाने के लिए उनमें छेद नहीं किया जा सका।
करीब 1825 में जालंधर आया था बुधिया परिवार

लाल कोठी में बुधिया परिवार के ही करीब 35 सदस्य आज भी रहते हैं। इनके पूर्वज शिव लाल बुधिया राजस्थान के सूरजगढ़ से व्यापार के सिलसिले में करीब 1825-30 में जालंधर आए थे। उनके पुत्र यानी कमल कुमार के पड़दादा देवी सहाय बुधिया थे और उनके पुत्र लोकनाथ बुधिया। आगे लोक नाथ के तीन पुत्र थे-हुकुम चंद, आत्मा राम तथा रघुनाथ प्रसाद। इनमें से सेठ हुकुम चंद सबसे बड़े थे और दोनों छोटे भाई उन्हीं के साथ काम करते थे। सेठ हुकुम चंद के नाम के साथ ‘नहौरिया’ जुड़ गया क्योंकि इस रईस परिवार के पास अनेक घोड़े व बग्गियां थीं। चूंकि घोड़े बांधने के स्थान को ‘नोहड़’ कहा जाता है, इसी से नाम मिला ‘नहौरियां’ और इनके नाम पर ही है जालंधर का बाजर नहौरियां तथा नहौरियां मंदिर। सरकार से उन्हें ‘राय साहब’ का खिताब भी मिला था।
लाखों का टैक्स अदा करता था परिवार

रघुनाथ प्रसाद बुधिया के चार पुत्रों में से एक कमल कुमार बुधिया बताते हैं कि परिवार का कपड़े व कनक का व्यापार 1920-30 के दशक में कराची, लाहौर, दिल्ली, अहमदाबाद व बॉम्बे तक फैला हुआ था। सेठ हुकुम चंद खूब कमाते थे और उतने ही बड़े दानी भी थे। जालंधर, हरिद्वार तथा चिंतपुर्णी में उनके अन्नक्षेत्र थे जहां हर वक्त भंडारा चलता था। माता चिंतपुर्णी मंदिर का बाजार व पौड़ियां भी उन्होंने बनवाए थे। गरीबों की बेटियों की शादी में मदद के काम के लिए विशेषतौर पर दो मुंशी उन्होंने रखे हुए थे। रात में वह अपनी चार घोड़ों वाली बग्गी में कई कंबल रख कर निकलते और शहर भर का चक्कर लगाते हुए फुटपाथ पर सोए लोगों को कंबल ओढ़ाते जाते थे। 1942 में उनका 8-9 लाख रुपए का इनकम टैक्स बना, तो वकील ने उन्हें सुझाव दिया कि कागजों में संपत्ति को तीन भागों में दिखा दिया जाए, तो टैक्स से बचाया जा सकता है। लेकिन उन्होंने उस जमाने में वह रकम चुकाना बेहतर समझा और कागजों में भी परिवार के टुकड़े करने से इंकार कर दिया। उससे अगले साल भी टैक्स की बड़ी रकम अदा की और उसके बाद से ही परिवार की आर्थिक स्थिति डगमगा गई। बहुत ही साधारण जीवन यापन करने वाले कमल कुमार बुधिया बताते हैं कि अब उनका चाय का कारोबार है और भले ही परिवार के ट्रस्ट के शिक्षा संस्थान चलते हैं और उनके अध्यक्ष उनके बड़े भाई पुरुषोत्तम लाल हैं, लेकिन वे उनसे कोई पैसा नहीं लेते। जितना स्कूल कमाते हैं, उतना उन्हीं के विस्तार पर खर्च कर दिया जाता है।

आज भी जारी है विद्या दान
सेठ हुकुम चंद नहौरियां द्वारा कुछ शिक्षण संस्थान भी शुरू किये गए थे। आज सेठ रघुनाथ प्रसाद के बेटे पुरुषोत्तम लाल बुधिया की अध्यक्षता में श्री देवी सहाय ट्रस्ट चल रहा है, जिसके अंतरगत सेठ हुकुम चंद स्कूल की ब्रांचें, एसडी कालेज फार वुमेन आदि चल रहे हैं। मारकंडा परिवार तथा दादा परिवार भी इस ट्रस्ट के सदस्य हैैं। यहां करीब 15 हजार विद्यार्थी सस्ती लेकिन स्तरीय शिक्षा पा रहे हैैं। पुरुषोत्तम लाल अपने पूर्वजों द्वारा शुरू किया गया विद्या दान का सिलसिला जारी रखे हुए हैैं हालांकि इन संस्थानों से वह कोई आर्थिक सहयोग नहीं लेते है।


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