Famous Mosque of Punjab: आज भी सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश देती है गुरु की मस्जिद, श्री गुरु हरगोबिंद साहिब ने करवाया था निर्माण
ब्यास नदी के तट पर बसे श्री हरगोबिंदपुर में श्री गुरु हरगोबिंद साहिब ने मस्जिद का निर्माण करवाया था। इसे आज गुरु की मस्जिद बुलाया जाता है। इस्लाम को मानने वाले अल्लाह की इबादत कर सकें इसीलिए गुरू महाराज ने उन्हें मस्जिद बनाकर सौंपी थी।
संजय तिवारी, बटाला (गुरदासपुर)। पांचवें पातशाही श्री गुरु अर्जन देव जी ने अमृतसर में श्री हरमंदिर साहिब की नींव मुसलमान फकीर साईं मियां मीर से रखवाई थी। हालांकि कम ही लोग जानते हैं कि मिरी-पीरी के मालिक छठें गुरु श्री हरगोबिंद साहिब ने एकता का उपदेश देते हुए इस्लाम धर्म के अनुयायियों के लिए एक खुबसूरत मस्जिद (इबादतगाह) का निर्माण करवा था।
यह खूबसूरत तोहफा आज भी ब्यास नदी के तट पर पांचवें गुरू श्री गुरु अर्जन देव के बसाए श्री हरगोबिंदपुर में स्थित है। खुदा की इस इबादतगाह को 'गुरू की मस्जिद' के नाम से जाना जाता है। इस्लाम को मानने वाले अल्लाह की इबादत कर सकें, इसीलिए गुरू महाराज ने उन्हें मस्जिद बनाकर सौंपी थी। डीपीआरओ इंद्रजीत सिंह ने बताया कि ब्यास नदी के दाहिने किनारे पर श्री हरगोबिंदपुर शहर के पूर्व की तरफ स्थित गुरू की मस्जिद बहुत खूबसूरत है। यह इस्लाम धर्म समेत सारे धर्मों के अनुयायियों द्वारा प्रतिष्ठित है।
ऐसे पड़ा शहर का नाम श्री हरगोबिंदपुर
इंद्रजीत सिंह ने बताया कि श्री हरगोबिंदपुर शहर माझा का वो ऐतिहासिक शहर है जिसके निर्माण में दो गुरुओं- श्री गुरु अर्जन देव और श्री हरगोबिंद साहिब का योगदान रहा है। जब गुरु अर्जन देव जी ने इस नगर की स्थापना की तो उन्होंने इसका नाम गोबिंदपुर रखा था, बाद में छठे गुरु, श्री हरगोबिंद साहिब ने इसका पुनर्निर्माण और विस्तार किया। मिरी- पीरी के मालिक का जालंधर के सूबेदार अली बेग से भी युद्ध हुआ था, जिसमें गुरु साहिब की जीत हुई थी। गुरु साहिब के यहां रहने और शहर के पुनर्निर्माण के कारण, इसका नाम श्री हरगोबिंदपुर पड़ा।
जब छठे पातशाह श्री हरगोबिंद साहिब जी द्वारा श्री हरगोबिंदपुर का पुनर्निर्माण किया जा रहा था, तब सभी धर्मों का सम्मान करते हुए उन्होंने एक धर्मशाला, एक मंदिर और एक शानदार मस्जिद का निर्माण करवाया। यह मस्जिद गुरु साहिब की धर्मनिर्पेक्ष नीति की मिसाल है।
गुरु अर्जन देव जी को मुगल बादशाह जहांगीर ने यातनाएं देकर शहीद कर दिया था। उन्होंने मुगल सेनाओं से युद्ध किया था, फिर भी उनके मन में इस्लाम के प्रति कोई क्रोध या घृणा नहीं थी। गुरु नानक के घर में शुरू से ही यह प्रथा रही है कि सिख पंथ ने हमेशा अत्याचारी को सबक सिखाया है और अत्याचारी का कोई धर्म नहीं होता है।
विभाजन से पहले आसपास के गांवों में रहती थी बड़ी मुस्लिम आबादी
गुरु साहिब के समय से भारत और पाकिस्तान के विभाजन तक, श्री हरगोबिंदपुर शहर और आसपास के गांवों में एक बड़ी मुस्लिम आबादी रहती थी। बंटवारे तक मुस्लिम समुदाय के लोग बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ गुरु की मस्जिद में रोजाना पांच नमाज अदा करते थे। गुरु ने वुजू (हाथ और चेहरा धोने के लिए) करने के लिए एक कुआं भी बनवाया था। यह खूबसूरत मस्जिद आज भी श्री हरगोबिंदपुर की शान बनी हुई है। लगभग 20 साल पहले यूनेस्को ने गुरु की मस्जिद का जीर्णोद्धार किया था।
यूनेस्कों ने किया मस्जिद का जीर्णोद्धार
जब देश का विभाजन हुआ, तो श्री हरगोबिंदपुर शहर सहित पूरे क्षेत्र के मुसलमान पाकिस्तान चले गए। बहुत देर तक कोई गुरु की मस्जिद में अल्लाह की बंदगी करने नहीं आया। रखरखाव के अभाव में इस पवित्र मस्जिद की इमारत खंडहर में तब्दील होने लगी। फिर, कुछ दशक बाद, क्षेत्र के निहंग सिंह ने गुरु साहिब द्वारा निर्मित मस्जिद की देखभाल करना शुरू कर दिया। 2002 के आसपास यूनेस्को ने गुरु की मस्जिद का जीर्णोद्धार किया और इसे कुछ हद तक बहाल किया।
निहंग सिंह जत्थेदार ने संभाला मस्जिद का रखरखाव
गुरु की मस्जिद के जीर्णोद्धार के बाद, निहंग सिंह जत्थेदार बलवंत सिंह ने मस्जिद में श्री गुरु ग्रंथ साहिब की स्थापना की और इसके रखरखाव का कार्यभार संभाला। यहां आज भी वाहिगुरु का पाठ और कीर्तन होता है। निहंग सिंह भगवान का घर जानकर गुरु की मस्जिद की सेवा कर रहे हैं। चूंकि अधिकांश सिख समुदाय गुरु की मस्जिद से अनजान है, इसलिए बहुत कम लोग इस पवित्र स्थान पर जाते हैं।