Diwali Green Crackers : जालंधर में दीवाली पर इस बार बिकेंगे ग्रीन पटाखे, जानें यह कैसे हैं दूसरे पटाखों से अलग
जालंधर में आज पटाखा मार्केट सज गई है। सरकार ने इस बार केवल ग्रीन पटाखे बेचने की ही इजाजत दी है। सरकार ने पुलिस व पीपीसीबी को इसकी निगरानी करने की जिम्मेदारी दी है। दीपावली पर सिर्फ दो घंटे ही पटाखे चलाए जा सकेंगे।
जालंधर, जेएनएन। जालंधर में शुक्रवार को बर्ल्टन पार्क में पटाखा मार्केट सज ही गई। शुक्रवार को दोपहर के बाद पुलिस ने पटाखा व्यापारियों को लाइसेंस दिए और शाम को पटाखों के सैकड़ों कार्टन भी बल्र्टन पार्क की ग्राउंड में पहुंच गए। आज सुबह से बर्ल्टन पार्क में दुकानें सजी हुई हैं। लोग सुबह से पटाखे खरीदने के लिए बर्ल्टन पार्क पहुंच गए हैं। दीवाली को महज छह दिन शेष है।
ग्रीन पटाखे ही बेच सकेंगे
सरकार ने इस बार केवल ग्रीन पटाखे बेचने की ही इजाजत दी है। सरकार ने पुलिस व पीपीसीबी को इसकी निगरानी करने की जिम्मेदारी दी है। दीपावली पर सिर्फ दो घंटे ही पटाखे चलाए जा सकेंगे।
यह है ग्रीन पटाखों का लाभ
ग्रीन पटाखे खतरनाक कणों का उत्सर्जन कम होता है। पुराने पटाखे 160 डेसिबल व ग्रीन पटाखे 110 से 125 डेसिबल ध्वनि प्रदूषण करते हैं। साइज में छोटे लेकिन कीमत ज्यादा होती है। 40 से 50 फीसदी तक कम हानिकारक होते है। ग्रीन पटाखों में अनार पानी के कण छोड़ता हैं जिसमें सल्फर व नाइट्रोजन के कण घुल जाते हैं। ग्रीन पटाखों में एल्यूमीनियम का इस्तेमाल कम इस्तेमाल होता है। सीएसआइआर के सेंट्रल इलेक्ट्रोनिक इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यून ने ई-पटाखे भी विकसित किए हैं।
ग्रीन इसलिए
- इसमें ऐसे केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है, जो विस्फोट के समय पानी के कण छोड़ता है।
- इससे यह कम धुआं छोड़ते हैं और पानी के कण धूल कणों को सोख लेते हैं।
- इसमें लाइट और आवाज तो पारंपरिक पटाखों की तरह की होती है, लेकिन यह कम कार्बन उत्सर्जन करते हैं।
- पीएम स्तर में नाइट्रस आक्साइड और सल्फर आक्साइड की मात्र 30 से 35 प्रतिशत तक कम हो जाती है।
- अनार के लिए इस्तेमाल होने वाली पर्यावरण मित्र सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है, जो पीएम का स्तर 40 प्रतिशत तक कम कर देता है।
- ग्रीन पटाखों में एल्युमीनियम, बैरियम, पोटाशियम नाइट्रेट और कार्बन का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
- इन पटाखों में धूलकणों का प्रभाव खत्म करने के लिए शोषक पदार्थो का इस्तेमाल किया जाता है।
- इनमें सुरमा, लीथियम, पारा, लेड व विषाक्त पदार्थो का इस्तेमाल नहीं किया जाता। पिछले वर्ष पीईएसओ ने इसके निर्देश जारी किए थे।
-सोर्स : सीएसआइआर।
नीरी की खोज
ग्रीन पटाखे राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) की खोज हैं। नीरी एक सरकारी संस्थान है, जो वैज्ञानिक व औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) के अधीन आता है। इनका उत्पादन पेट्रोलियम एवं एक्सप्लोसिव सेफ्टी आर्गेनाइजेशन (पीईएसओ) की मंजूरी के बाद ही किया जा सकता है।
कहां मिलेंगे?
कुछ साल पहले तो कुछ संस्थाएं ही इस निर्माण कर रही थी, लेकिन अब उत्पादन बड़े स्तर पर हो रहा है। सरकार की ओर से पंजीकृत दुकान पर यह आसानी से मिल जाएंगे। पटाखा कारोबारी विकास कुमार ने बताया कि सभी व्यापारियों ने केवल ग्रीन पटाखों का ही आर्डर किया है।