पॉजिटिव मरीज का नाम सावर्जनिक करने को लेकर सरकार व अफसरशाही की नहीं मिल रही राय
अफसरशाही की मनमर्जी का ही नतीजा है कि निजी सेक्टर के लोग कोरोना टेस्टिंग में अपना सहयोग देने से पीछे हटने लगे हैं।
मनुपाल शर्मा, जालंधर। सरकार और सरकार की अफसरशाही के बीच नजर आ रही समन्वय की कमी कोरोना टेस्टिंग को प्रभावित कर रही है। प्रदेश के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह अब कोरोना पॉजिटिव पाए जाने वाले मरीजों की पहचान सार्वजनिक न करने के आदेश जारी कर रहे हैं, लेकिन सरकार की अपनी ही अफसरशाही लोगों की पहचान बताने में लगी है। अफसरशाही की मनमर्जी का ही नतीजा है कि निजी सेक्टर के लोग कोरोना टेस्टिंग में अपना सहयोग देने से पीछे हटने लगे हैं। जालंधर में इंडस्ट्री संचालकों ने अपने श्रमिकों की कोरोना टेस्टिंग से तौबा कर ली है, जिसका असर अब समूचे निजी सेक्टर में कार्यरत मुलाजिमों व अधिकारियों की कोरोना टेस्टिंग पर भी पड़ सकता है।
निजी सेक्टर कोरोना टेस्टिंग से इसलिए तौबा कर रहे है क्योंकि रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद विभाग मरीजों के निजी पते की बजाये अब संबंधित औद्योगिक इकाइयों अथवा कंपनियों का नाम देने लगा है। संबंधित औद्योगिक इकाइयों अथवा कंपनियों का नाम सार्वजनिक होने से कई तरह की अफवाह भी फैलने लगी है, जिस वजह से संबंधित संस्थानों का व्यापार प्रभावित होने लगा है। शुक्रवार को तो फोकल प्वाइंट क्षेत्र में कुछ औद्योगिक इकाइयों ने अपने मुलाजिमों की कोरोना टेस्टिंग से इंकार कर दिया।
इंडस्ट्रीज समेत अन्य निजी संस्थानों के संचालकों का तर्क है कि जब सरकार अब किसी कोरोना पॉजिटिव मरीज के घर के आगे स्टीकर लगाने से भी इंकार कर रही है और पहचान सार्वजनिक करने से मना कर रही है तो अफसरशाही अपने स्तर पर कोरोना पॉजिटिव मरीजों की पहचान के साथ-साथ उन संस्थानों का नाम, जिनमें वह कार्यरत हैं, कैसे सार्वजनिक कर सकती है। इस बारे में डिप्टी कमिश्नर घनश्याम थोरी के साथ संपर्क कोशिश करने के बावजूद संभव नहीं हो सका।