सीवरेज के पानी से हर राेज 150 एकड़ जमीन की सिंचाई, जीरो डिस्चार्ज यूनिवर्सिटी बनने की राह पर अमृतसर जीएनडीयू
प्रोजेक्ट में दो महिलाओं सहित सात लोगों को रोजगार मिला है। कूड़ा उठाने के लिए एक ट्रैक्टर-ट्राली चालक व एक सहायक दो सफाई कर्मचारी और कचरा छानने के लिए दो महिलाओं सहित तीन कर्मचारी रखे गए हैं। ये कर्मचारी गीले व सूखे कूड़े को छांटते हैं।
अमृतसर, [हरदीप रंधावा]। गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी (जीएनडीयू) जीरो डिस्चार्ज यूनिवर्सिटी बनने की दिशा में अग्रसर है। इसके लिए यूनिवर्सिटी प्रबंधन प्रयास कर रहा है। यूनिवर्सिटी कैंपस में हर रोज सीवरेज के दो लाख लीटर पानी को साफ किया जाता है। इस पानी से लगभग 150 एकड़ जमीन की सिंचाई होती है। कैंपस में गीले व सूखे कूड़े को अलग करके हर महीने तीन क्विंटल जैविक खाद तैयार होती है। इस खाद को कैंपस के ही पेड़-पौधों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। जीएनडीयू प्रबंधन को इससे वार्षिक सात लाख रुपये की बचत होती है। यह काम सालिड लिक्विड रिसोर्स मैनेजमेंट (एलएलआरएम) प्रोजेक्ट के तहत हो रहा है।
दो महिलाओं सहित सात लोगों को मिला है रोजगार
जीएनडीयू स्थित सालिड लिक्विड रिसोर्स मैनेजमेंट सेंटर में वाटर ट्रीटमेंट के लिए लगाई गईं टंकियां। जागरण
प्रोजेक्ट में दो महिलाओं सहित सात लोगों को रोजगार मिला है। कूड़ा उठाने के लिए एक ट्रैक्टर-ट्राली चालक व एक सहायक, दो सफाई कर्मचारी और कचरा छानने के लिए दो महिलाओं सहित तीन कर्मचारी रखे गए हैं। ये कर्मचारी गीले व सूखे कूड़े को छांटते हैं। उसके बाद गलने योग्य कूड़े को पांच फीट के गड्ढे में भर देते हैं खाद बनने के लिए। केंचुओं से तैयार होने वाली जैविक खाद एक महीने में एक क्विंटल तैयार हो जाती है। गोबर, सूखे पत्तों और गीले कूड़े-कर्कट से जैविक खाद पांच महीनों में दस क्विंटल तैयार होती है। प्लास्टिक की बोतलों सहित अन्य सामान को साढ़े दस हजार रुपये महीने की दर से एक ठेकेदार को बेच दिया जाता है। इससे वार्षिक सवा लाख रुपये की कमाई होती है।
दो लाख लीटर पानी होता है साफ
वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के जरिये प्रतिदिन सीवरेज का दो लाख लीटर पानी साफ किया जाता है। साफ पानी का इस्तेमाल सिंचाई में होता है। इससे ट्यूबवेल पर खर्च होने वाली बिजली की भी बचत हो रही है। पानी का कुछ हिस्सा बाटेनिकल गार्डन में बने एक तालाब में जाता है। तालाब में डौला किस्म की मछलियों को तालाब में यह देखने के लिए डाला गया था कि क्या वे उस पानी में जीवित रह सकेंगी। प्रयोग सफल रहा। मछलियां उस पानी में जीवित रहीं, इसलिए अब तालाब में उक्त मछलियों को पाला जाएगा। मछलियों को बाद में बेचा जाएगा।
बायोगैस प्लांट का ट्रायल जारी
जीएनडीयू कैंपस को जीरो डिस्चार्ज बनाने के लिए गठित एलएलआरएम कमेटी के चेयरमैन डा. दलबीर सिंह सोगी व सदस्य डा. विक्रम संधू ने बताया कि बायोगैस प्लांट का ट्रायल जारी है। पहले चरण में यहां से दस परिवारों को नो प्रोफिट-नो लास पर मिथेन गैस का एक-एक सिलंडर दिया जाएगा। हर माह सौ सिलंडर गैस तैयार करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। जीएनडीयू के वीसी प्रो. डा. जसपाल सिंह संधू के मुताबिक यह प्रोजेक्ट साल 2017 में शुरू किया गया था। इसमें जीएनडीयू के विभिन्न प्रोफेसरों ने मेहनत की, जिससे जीएनडीयू प्रदूषण मुक्त हुई है।
इन यूनिवर्सिटियों में भी सीवरेज का पानी साफ कर होती है सिंचाई
लुधियाना के पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में भी सीवरेज का 15 लाख लीटर पानी साफ कर सिंचाई में इस्तेमाल होता है। पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला में 4.5 लाख लीटर और राजीव गांधी नेश्नल यूनिवर्सिटी आफ ला पटियाला में दो लाख लीटर सीवरेज का पानी साफ किया जाता है। इस पानी का इस्तेमाल सिंचाई के लिए होता है।