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चंडीगढ़ दरबार से सुन ली.. और अरोड़ा बन ही गए चेयरमैन, पूर्व मंत्री मोहिंदर सिंह केपी फिर हुए एक्टिव

जालंधर जिला प्लानिंग बोर्ड में मनोज अरोड़ा को चेयरमैन बनने के बाद इस बात पर चर्चा है कि चेयरमैन बनाने के लिए उन्हें कहां से क्लीनचिट दी गई है। अरोड़ा ने चंडीगढ़ में सरकार के दरबार में अपनी अंतिम सियासी इच्छा यही जताई थी कि उन्हें लाल बत्ती चाहिए।

By Vikas_KumarEdited By: Published: Sun, 10 Jan 2021 09:14 AM (IST)Updated: Sun, 10 Jan 2021 09:14 AM (IST)
चंडीगढ़ दरबार से सुन ली.. और अरोड़ा बन ही गए चेयरमैन, पूर्व मंत्री मोहिंदर सिंह केपी फिर हुए एक्टिव
अरोड़ा की चेयरमैनी ने सिटी पालिटिक्स में एक बार फिर से पूर्व मंत्री मोहिंदर सिंह केपी को सक्रिय कर दिया।

जालंधर, [मनोज त्रिपाठी]। साढ़े तीन साल की अथक मेहनत के बाद आखिरकार मनोज अरोड़ा जिला प्लानिंग बोर्ड के चेयरमैन बन गए हैं। अरोड़ा की चेयरमैनी ने सिटी पालिटिक्स में एक बार फिर से पूर्व मंत्री मोहिंदर सिंह केपी को सक्रिय कर दिया है। सत्ता के गलियारे में अरोड़ा के चेयरमैन बनने के बाद तमाम अटकलें लगाई जा रही हैं कि आखिर उन्हें चेयरमैन बनाने के लिए कहां से क्लीनचिट दी गई है। अरोड़ा इस सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही हाशिए पर चल रहे थे। उन्होंने चंडीगढ़ में सरकार के दरबार में अपनी अंतिम सियासी इच्छा यही जताई थी कि उन्हें लाल बत्ती चाहिए। लाल बत्ती के लिए करीब साढ़े तीन सालों से अरोड़ा चंडीगढ़ के चक्कर काट रहे थे। इस पद के लिए विधायक चौधरी सुरिंदर सिंह ने भी जोर लगा रखा था कि पद उनको मिल जाए, लेकिन सरकार ने अरोड़ा के नाम को हरी झंडी दे दी।

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वो याद आए, बहुत याद आए

कहा जाता है कि जब आप किसी को छोड़कर चले जाते हैं तो आपकी अच्छाइयां व बुराइयां पता चल जाती हैं। ऐसे ही कशमकश से बीते कई दिनों से शहर के मेयर जगदीश राज राजा गुजर रहे हैं। दीपर्वा लाकड़ा जब नगर निगम के कमिश्नर थे तो मेयर उनकी कार्यशैली को लेकर हमेशा नाराज रहते थे। बाद में लाबिंग करके दीपर्वा लाकड़ा का तबादला नगर निगम से करवाया गया था। लाकड़ा तो चले गए, लेकिन उनके बाद आए महोदय की कार्यशैली देखने के बाद मेयर को भी समझ आ गया है कि लाकड़ा इनसे कहीं बेहतर अधिकारी थे। यही वजह है कि अब हर बात पर मेयर की जुबान से लाकड़ा का नाम निकलने लगा है। खास तौर पर कूड़ा प्रबंधन को लेकर लाकड़ा की टीम द्वारा किए गए कामों को लेकर मेयर को अब अपनी गलती का अहसास हो रहा है। इसका परिणाम जनता को भुगतना पड़ रहा है।

 

आरटीआइ की 'गोली' मेजर पर भारी

शहर में बीते एक महीने से आरटीआइ एक्टिविस्ट सिमरजीत सिंह व वरिष्ठ कांग्रेस नेता मेजर सिंह के बीच चल रहा विवाद लगातार नए रूप लेता जा रहा है। मेयर की तमाम कोशिशें आरटीआइ एक्टिविस्ट को घेरने सफल नहीं हो पा रही हैं। आरटीआइ की आड़ में ब्लैकमेलिंग के आरोप को लेकर बढ़े विवाद ने अब कई कांग्रेसियों को लपेटे में ले लिया है। अदालत ने भी मेजर की याचिका को ठंडे बस्ते में डालकर पुलिस को जांच की कमान सौंप दी है। पुलिस ने पहले ही मेजर को कागजी कारवाई में उलझा रखा है। नतीजतन अब इस मामले में कांग्रेस की फजीहत हो रही है कि सत्ता में सरकार कांग्रेस की है और कांग्रेसियों की ही सुनवाई नहीं हो पा रही है। मामला अभी चल रहा है। इसे अंजाम तक पहुंचने में समय लगेगा, लेकिन शहर के लोगों की नजर इस मामले पर है कि आखिर यह किसका अंत करेगा।

वेरी गुड नेता जी की गांधीगिरी

जालंधर में लंबे समय से वेरी गुड, वेरी गुड कहने वाले नेता जी की नए साल पर गांधीगिरी ने सभी का ध्यान खींचा है। उनकी गांधीगिरी का क्रेज लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है। नेता जी को नए साल की बधाइयां देने वाले तमाम लोगों में उनकी गांधीगिरी की चर्चा जरूर होती है। उनकी गांधीगिरी भी अजीब तरह है। जैसे ही उनके इलाके का कोई गरीब वोटर उन्हें बधाई देने जाता है तो नेता जी का हाथ तुरंत ही जेब के अंदर चला जाता है। पहले नेता जी ध्यान से वोटर की बातें सुनते हैं और अपना पेट डायलाग वेरी गुड वेरी गुड बोलते हैं। इसके बाद नेता जी का हाथ जेब से बाहर निकलता है और वोटर के हाथ से हाथ मिलाकर नेता जी ...गांधी... को वोटर के हाथ में पकड़ा देते हैं। उनकी दरियादिली को लेकर उन्हें बधाइयां देने वालों की लाइनें लंबी होती जा रही हैं।

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