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फिल्म फेस्टिवल : न्यायपालिका की व्यवस्था में अव्यवस्था को किया बयां

वाइस चांसलर डा. देशबंधु गुप्ता ने कहा कि फिल्में संचार और सामाजिक जागरूकता के सबसे प्रबल माध्यमों में से एक हैं।

By JagranEdited By: Published: Tue, 19 Nov 2019 02:33 AM (IST)Updated: Tue, 19 Nov 2019 06:13 AM (IST)
फिल्म फेस्टिवल : न्यायपालिका की व्यवस्था में अव्यवस्था को किया बयां
फिल्म फेस्टिवल : न्यायपालिका की व्यवस्था में अव्यवस्था को किया बयां

जागरण संवाददाता, जालंधर

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डीएवी यूनिवर्सिटी में तीन दिवसीय डीएवीयू फिल्म फेस्टिवल-2019 का आगाज हुआ। पत्रकारिता व जनसंचार विभाग की तरफ से करवाए जा रहे इस फेस्टिवल का अनवर जमाल, यशपाल शर्मा, रवि चौहान और रविदर कौल ने दीप जलाकर उद्घाटन किया।

वाइस चांसलर डा. देशबंधु गुप्ता ने कहा कि फिल्में संचार और सामाजिक जागरूकता के सबसे प्रबल माध्यमों में से एक हैं। इस फिल्म उत्सव की शुरूआत प्रसिद्ध भारतीय फिल्म निर्माता और अभिनेता वी शांताराम की जयंती के साथ हुआ है। प्रसिद्ध वृत्तचित्र निर्माता अनवर जमाल ने कहा कि सिनेमा दर्शकों को एक अलग क्षेत्र में ले जाता है। स्वतंत्र सिनेमा जीवन के सभी क्षेत्रों के विचारों को किसी भी संघर्ष से मुक्त करता है।

फिल्म अभिनेता यशपाल शर्मा ने फिल्म मेकिग के बदलते परिदृश्य के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि फिल्मों में ग्रामीण मुद्दों पर ध्यान देना एक सकारात्मक दृष्टिकोण है, जिससे अब ग्रामीण क्षेत्रों की सूरत भी बदलने लग पड़ी है। फेस्टिवल के दौरान कोर्ट फिल्म दिखाई गई। इसमें दिखाया गया है कि किस प्रकार हमारी न्यायपालिका की व्यवस्था में अव्यवस्था है। जिस वजह से कई साल अदालती केस चलते रहते हैं। बस रह जाती है तारीख पर तारीख। हजारों लाखों केस लंबित ही चले जाते हैं और कुछ तो इंसाफ की आस में ही दुनिया से चले जाते हैं।

फिल्म मेकर रविदर कौल कहते हैं कि हमें हिदी, अंग्रेजी और पंजाबी भाषा आने का कारण है एल्फाबेट की जानकारी। हम चाइनीज में फिल्म देखें तो चाइनीज समझ नहीं पाते। क्योंकि हमें चाइनीज एल्फाबेट नहीं आते। इसी तरह से कुछ फिल्में हम देखते हैं तो हमें आसानी से समझ नहीं आती। क्योंकि उन्हें समझने के लिए अलग नजरिया आना चाहिए। हमें उस समझ व नजर को विकसित करना होगा। यह तभी संभव हो सकेगा, जब हम उस फिल्म की गहराई को समझेंगे। आज हम यूट्यूब पर फिल्में देखने लगे हैं। मगर उसमें ज्यादा ध्यान को केंद्रीत नहीं कर पाते, जो बात थिएटर में फिल्म देखने पर बनती है। आज तो फोन के जरिए ही शॉर्ट मूवी बनाने का भी चलन बढ़ा है। फेस्टिवल में देव टॉकीज के साथ लघु फिल्म बनाने का मुकाबला भी कराया जा रहा है। रजिस्ट्रार डॉ सुषमा आर्य, डीन स्टूडेंट वेलफेयर डा. जसबीर ऋषि, डा. यशबीर सिंह, पत्रकारिता व जनसंचार विभाग की एचओडी गीता कश्यप, डा. विजयता तनेजा और एचके सिंह सहित छात्र राघव, रोहित, साक्षी प्रभाकर, राघव जैन और मुस्कान जौली आदि थे।


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