अमृतसर में किसानों ने किया सांसद श्वेत मलिक का विरोध, कार का पीछा कर नारेबाजी
अमृतसर के रंजीत एवेन्यू स्थित रीजनल पासपोर्ट कार्यालय में पहुंचे राज्यसभा सदस्य श्वेत मलिक का किसान संगठनों ने तीखा विरोध किया। मलिक कार्यालय की समीक्षा करने के लिए पहुंचे थे। उनके कार्यक्रम की सूचना मिलते ही किसान मजदूर संघर्ष कमेटी के सदस्य वहां पहुंच गए।
अमृतसर, जेएनएन। कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों का भाजपा नेताओं का विरोध करने का सिलसिला रुक नहीं रहा है। वीरवार को यहां रंजीत एवेन्यू स्थित रीजनल पासपोर्ट कार्यालय में पहुंचे राज्यसभा सदस्य श्वेत मलिक का किसान संगठनों ने तीखा विरोध किया। मलिक कार्यालय की समीक्षा करने के लिए पहुंचे थे। उनके कार्यक्रम की सूचना मिलते ही किसान मजदूर संघर्ष कमेटी के सदस्य वहां पहुंच गए। मलिक जैसे ही पासपोर्ट कार्यालय से बाहर निकले तो किसानों ने केंद्र सरकार के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी। इस बीच पुलिस कर्मियों ने मलिक की गाड़ी को सुरक्षित निकाला। कुछ किसान नेता विरोध में मलिकी की कार के पीछे-पीछे भागे और नारेबाजी की।
किसानों ने बनाई थी मलिक का घेराव करने की योजना
महानगर के पासपोर्ट कार्यालय में मीडिया को संबोधित करने के लिए पहुंचे राज्यसभा सदस्य श्वेत मलिक का किसान मजदूर संघर्ष समिति के कार्यकर्ताओं ने विरोध किया। किसानों ने श्वेत मलिक के घेराव की पूरी योजना बनाई हुई थी लेकिन किसानों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में पहुंचने में देरी कर दी।
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किसान मजदूर संगठन के नेता सकतर सिंह कोटला के नेतृत्व में 20 के करीब कार्यकर्ता जैसे ही पासपोर्ट कार्यालय के बाहर मलिक का घेराव करने पहुंचे, तब तक मलिक अपने काफिले के साथ तेजी से बाहर निकल गए। किसान संगठन के सदस्य भाजपा और श्वेत मलिक के खिलाफ नारेबाजी करते रहे। किसान नेताओं ने कहा कि वे संयुक्त मोर्चा के आह्वान पर वह भाजपा नेताओं का तब तक घेराव जारी रखेंगे जब तक कृषि कानून रद नहीं किए जाते। उन्होंने कहा कि संगठन भाजपा के नेताओं को जन कार्यक्रमों में शामिल नहीं होने देगा।
श्वेत मलिक बोले- मेरा विरोध करने वाले कम्यूनिस्ट
राज्यसभा सदस्य श्वेत मलिक ने कहा कि उनका घेराव करने के लिए कम्युनिस्ट नेता थे। उनका किसानों से कोई लेना-देना नहीं है। सरवन सिंह पंढेर कम्युनिस्ट नेता है ना कि किसान नेता। किसानों ने पहले ही घोषित किया हुआ है कि उनका किसी भी राजनीतिक पार्टी से कोई लेना-देना नहीं है। इसी कारण जब रवनीत सिंह बिट्टू और गुरजीत सिंह औजला किसान आंदोलन में पहुंचे तो उन्होंने उनका विरोध किया था। मलिक ने कहा कि अगर कम्युनिस्ट नेता किसान बनकर आंदोलन कर रहे हैं तो क्या उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। अपना धरातल खो चुकी कम्युनिस्ट पार्टी किसानों की आड़ में अपना राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध कर रही है।