Exclusive Interview: पंजाब भाजपा अध्यक्ष अश्विनी शर्मा ने बताई पार्टी की रणनीति, अपने दम पर कूदेंगे चुनाव मैदान में
पंजाब में भाजपा व अकाली दल अब अलग हो चुके हैं। वर्षों की दोस्ती टूटने के बाद अब भाजपा अपने दम पर राज्य में चुनाव लड़ेगी। पार्टी के सामने क्या चुनौतियां हैं इस पर पार्टी के पंजाब प्रधान अश्वनी शर्मा ने खुलकर बातचीत की।
जेएनएन, जालंधर। शिरोमणि अकाली दल (बादल) के साथ 22 साल पुराना गठबंधन तोड़ने के बाद पंजाब में भारतीय जनता पार्टी आक्रामक होती जा रही है। भाजपा पंजाब की सभी 117 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का दम भर रही है। पंजाब की वर्तमान परिस्थितियों और आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर उभरने वाली तस्वीर पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अश्वनी शर्मा से दैनिक जागरण ने विशेष बातचीत की। पेश हैं उसके प्रमुख अंश :
भाजपा 117 सीटों पर अकेले लडने की बात कर रही है, अकाली दल से गठबंधन टूट गया है। गांव के बगैर यह कैसे संभव है?
यह बात सही है कि पिछले 22 साल से हम एक साथ प्रतिद्वंद्वी दलों से लड़ते आए हैं। भाजपा का काडर गांवों में भी है। यह अलग बात है कि पहले वह अकाली दल को जितवाने के लिए काम करते थे। आप यह न भूलें कि 1992 में भाजपा ने पंजाब में 66 सीटों पर चुनाव लड़ा था। सुखबीर की सीट जलालाबाद से हमने जीत दर्ज की थी। उसके बाद गठबंधन के धर्म का पालन करते हुए हम 66 से 33 और फिर 23 सीटों पर आ गए, लेकिन पंजाब में अमन शांति के लिए हम उस पर भी राजी हुए। पिछले छह साल में प्रधानमंत्री मोदी की विभिन्न योजनाओं से हम गांव-गांव तक पहुंचे और आज की भाजपा चौपालों तक पहुंच गई है। पिछले विधानसभा चुनाव में हमारे कई नेता मजबूत होने के बावजूद चुनाव में नहीं उतर पाए, लेकिन अब तो हमारे लिए ओपन फील्ड है। हम न सिर्फ 117 विधानसभा सीटों पर लड़ेंगे बल्कि निगम चुनाव भी अपने दम पर लड़ेंगे।
भाजपा के पास सिख चेहरों की कमी है, शिअद के कारण ही सिख भाजपा के साथ जुड़े थे?
यह कहना गलत होगा। भाजपा के साथ हरेक वर्ग जुड़ा हुआ है। अभी तक हम अकाली दल के साथ थे। इसलिए यह भ्रम है कि हमारे पास सिख नेताओं की कमी है जबकि हकीकत यह है कि भाजपा में आज बड़े और मंझे सिख नेताओं की लाइन है। पंजाब ही नहीं, अन्य राज्यों में भी बड़ी संख्या में सिख भाजपा में हैं। शिअद के अलग होने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। अब शिअद का अपना वजूद सिकुड़ रहा है। पंजाब में कई सिख संगठन विरोध कर रहे हैं। सिखों के आगे अपने फैसले को सही ठहराने के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है। भाजपा ने तो वर्षों से काली सूची के कारण विदेशों में रह रहे सिखों को दोबारा उनके घरों तक पहुंचाया। बल्कि दंगों के पीडि़तों को इंसाफ भी दिलवाया है।
किसान आपसे नाराज हैं, किसानों के बगैर 117 सीटों पर लडऩे का सपना कैसे पूरा होगा?
यह बात जगजाहिर है कि कांग्रेस ने किसानों को गुमराह किया। सीएए के दौरान भी कांग्रेस ने इसी तरह का प्रोपेगंडा खड़ा किया था। आज लोगों को पता चल गया कि सीएए नागरिकता देने के लिए लाया गया न कि नागरिकता छीनने के लिए। किसानों में भी भ्रम पैदा किया गया। केंद्र सरकार ने किसानों के साथ बातचीत शुरू कर दी है। तीन केंद्रीय मंत्रियों के साथ 30 किसान संगठनों की वार्ता हो चुकी है।
वार्ता तो विफल रही?
टूटी भी नहीं है। इस तरह के मामलों का हल एक बैठक में नहीं निकलता है। किसान संगठन के साथ भाजपा की प्रदेश इकाई भी लगातार संपर्क में है। जल्द ही आपको सुखद खबर मिल जाएगी।
अगर कांग्रेस ने गुमराह किया तो भाजपा उन्हेंं सही तस्वीर क्यों नहीं दिखा पाई?
देखिये भ्रम तेजी से फैलता है और उसे दूर करने में समय लगता है। अभी-अभी हमने आपको सीएए का उदाहरण दिया। इसी प्रकार से किसानों में भ्रम पैदा किया गया कि एमएसपी बंद हो जाएगी। बंद हुई क्या। इस बार भी पंजाब में बंपर फसल हुई। एमएसपी पर ही खरीदी गई। आगे भी खरीदी जाएगी। भाजपा ने न एमएसपी में कुछ बदलाव किया है और न ही करेगी।
-भाजपा की जीत के बाद हमेशा ईवीएम पर सवाल उठाए जाते हैं। अब बिहार के चुनाव परिणाम के बाद अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल व अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ईवीएम पर सवाल उठा रहे हैं।
-जब राजस्थान के चुनाव परिणाम आए तो ईवीएस का मुद्दा क्यों नहीं उठा। जब पंजाब में गठबंधन की हार हुई तब भी किसी ने ईवीएम पर सवाल नहीं खड़े किए।
-ज्ञानी हरप्रीत सिंह के बयान पर कहा, वह अकाल तख्त के जिस शीर्ष पद पर बैठे हैं। उनके बारे में बतौर भाजपा प्रदेश प्रधान वह कोई टिप्पणी नहीं कर सकतेे।
- भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को पंजाब नहीं घुसने देने के कांग्रेस के सांसद रवनीत बिट्टू के बयान पर कहा, बिट्टू की बातों पर तो खुद उनकी पार्टी ध्यान नहीं देती। पहले भी जब मुझ पर हमला हुआ था तब भी बिट्टू ने हमले की जिम्मेदारी ली थी।
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