जालंधर की डा. दीपाली ने किशोरियों को पढ़ाया स्वास्थ्य का पाठ, बांट रहीं आयरन व फोलिक एसिड की गोलियां
चावला नर्सिंग होम एवं मेटरनिटी अस्पताल की डा. दीपाली लूथरा नारची और क्लब 35 प्लस से जुड़ी हैं। वह कहती हैं लड़कियों को स्वास्थ्य सुरक्षा मुहैया करवाना बहुत जरूरी है। लड़का सिर्फ एक परिवार चलाता है जबकि लड़की को सुसराल और मायके की भी जिम्मेवारी निभानी पड़ती है।
जगदीश कुमार, जालंधर। कोरोना काल में हर व्यक्ति स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए सजग है। लाकडाउन में स्कूल-कालेज और कारोबार बंद होने से जनजीवन काफी प्रभावित हुआ। भविष्य में परिवार की जिम्मेवारी संभालने वाली किशोरियों को स्वास्थ्य सुरक्षा मुहैया करवाने से स्वजन हाथ खींचते हैं। ऐसे में नारची और क्लब 35 प्लस से जुड़ी चावला नर्सिंग होम एवं मेटरनिटी अस्पताल की डा. दीपाली लूथरा किशोरियों को पिछले करीब डेढ़ दशक से स्वच्छता और स्वास्थ्य संबंधी जानकारी दे रही हैं।
वह कहती हैं कि कई जगह पर लड़के और लड़की में अंतर की धारणा कायम है, परंतु समय के साथ यह अंतर भी खत्म होने के कगार पर पहुंच चुका है। लड़कियां लड़कों के मुकाबले हर फील्ड में कंधे से कंधा मिला कर आगे बढ़ रही हैं। इसके बावजूद लड़कियों की स्वास्थ्य सुरक्षा को लेकर स्वजन कन्नी काटते हैं, जबकि लड़कियों को स्वास्थ्य सुरक्षा मुहैया करवाना बहुत जरूरी है। लड़का सिर्फ एक परिवार चलाता है, जबकि लड़की को सुसराल और मायके की भी जिम्मेवारी निभानी पड़ती है। डा. दीपाली लूथरा कहती हैं कि वह अपनी मां नारची की प्रधान डा. सुषमा चावला के साथ स्कूलों व कालेजों में जागरूकता मुहिम के तहत जाती थीं। इस दौरान देखा कि लड़कियों को भविष्य में होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की जानकारी नहीं है।
उन्होंने कई स्कूलों व कालेजों में इस विषय पर गहन पड़ताल करने बाद खुद प्रोजेक्ट शुरू करने का मन बनाया। इस प्रोजेक्ट के तहत शिक्षित करने के लिए उन्होंने 12 से 18 साल तक आयु वर्ग की लड़कियों को चुना। सबसे पहले लड़कियों के हीमोग्लोबिन टेस्ट करवा अनिमिया की शिकार लड़कियों को आयरन व फोलिक एसिड की गोलियां बांटी। तकरीबन 15 हजार लड़कियों को आयरन व फोलिक एसिड की गोलियां बांटी गई हैं। इसके बाद जिले करीब छह सौ स्कूलों व कालेजों में आठ हजार के करीब लड़कियों को भविष्य में होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को पहले से ही अवगत करवाने व इनका सामना करने के बारे में बताया।
उन्होंने बताया कि इस दौरान जांच में पाया गया कि ज्यादातर लड़कियों को परेशानियां होती हैं, परंतु स्वजन इससे अंजान होते हैं, जो भविष्य में लड़कियों के लिए खतरनाक साबित होती है। ऐसी लड़कियों का चयन कर उन्हें मुफ्त में स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करवाने के साथ जागरूकता का पाठ भी पढ़ाया जाता है। लड़कियों को कन्या भ्रूण जांच और हत्या के विषय में भी जानकारी दी जाती है। हर साल एक आयु वर्ग में दाखिल होने वाली लड़कियां उनके प्रोजेक्ट का हिस्सा बन रही हैं। इसके अलावा स्वयं फिट रहने के साथ लड़कियों को भी फिटनेंस के गुर सिखाती हैं।
स्कूल-कालेज बंद रहने पर आनलाइन करती हैं जागरूक
वह कहती है कि किशोरियों को जागरूक करने के लिए सबसे बड़ी चुनौती कोरोना काल में आई। स्कूल और कालेज बंद रहने से मुहिम भी प्रभावित हुई। इसके बावजूद स्कूलों व कालेजों में संपर्क किया गया। शिक्षकों के साथ लड़कियों को आनलाइन क्लासों के माध्यम से इस मुहिम का हिस्सा बनाया गया। किशोरियों को आनलाइन जागरूकता का पाठ पढ़ाया गया। हालांकि उनकी स्वास्थ्य जांच को लेकर परेशानियों से जूझना पड़ा। पिछले साल के अंतिम दिनों में कालेज खुलने पर मुहिम की थोड़ी रफ्तार बढ़ी। नए साल की शुरुआत के साथ ही कोरोना के मरीजों की संख्या बढऩे से दोबारा वर्चुअल बैठकें कर किशोरियों के साथ स्कूलों-कालेजों के टीचरों को भी जागरूक करना शुरू किया है।