जालंधर में दिव्य ज्योति जागृति संस्थान ने धूमधाम से मनाया गया गुरु पूर्णिमा का महा उत्सव
दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से बिधिपुर और मोता सिंह नगर में श्री गुरु पूर्णिमा का महा उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया गया।। जिसमें श्रद्धालु भक्तजनों ने गुरु चरणों में पहुंचकर गुरु की पावन आरती की एवं पूजन किया।
जालंधर, जागरण संवाददाता। दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से बिधिपुर और मोता सिंह नगर में श्री गुरु पूर्णिमा का महा उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया गया। जिसमें श्रद्धालु भक्तजनों ने गुरु चरणों में पहुंचकर गुरु की पावन आरती की एवं पूजन किया। इस अवसर पर श्री आशुतोष महाराज की शिष्या साध्वी पल्लवी भारती ने बताया की गुरु का स्थान हमारे जीवन में सर्वोपरि होता है। सभी धार्मिक ग्रंथों में गुरु की पूजा को ही श्रेष्ठ कहा गया है और यह रीति युगो युगों से चलती आ रही है। विचार योग्य यह बात है की धार्मिक ग्रंथों में जिस गुरु की बात की गई है। उसको समझना एवं जानना अति आवश्यक है।
साध्वी जी ने बताया कि आध्यात्मिक जगत हमारी बौद्धिक और मानसिक क्षमताओं से बहुत परे हैं। इस मार्ग पर चलना आरंभ करने के लिए आवश्यक है कि हम पूर्ण सद्गुरु की खोज करें अन्यथा यात्रा जोखिम से खाली नहीं। हमारी आंतरिक आध्यात्मिक जगत से गुरु पूर्णतया परीक्षित होते हैं। अतः वही हमें उसकी अंतिम मंजिल तक ले जा सकते हैं। यदि हम किसी अन्य जगह पर जाना चाहते हैं तो क्या करना चाहिए बुद्धिमानी इसी में है कि हम एक ऐसे व्यक्ति की तलाश करें जो उस जगह के बारे में अच्छी प्रकार से जानता हो। जैसे विज्ञान या व्यवसाय में कुशलता हासिल करने के लिए भी हमें एक सुयोग्य शिक्षित की आवश्यकता होती है। इसी प्रकार अध्यात्म विज्ञान के लिए गुरु की शरण में जाना क्या उचित नहीं।
उन्होंने कहा कि हमारे सभी धर्म शास्त्र ऐसे आध्यात्मिक विशेषज्ञ गुरु का अभिनंदन करते हैं जो प्रत्यक्ष रूप से हमारे भीतर ही परमात्मा का बोध करा सकें। ईश्वर का दर्शन करा देने की दिव्य सामर्थ्य ही सच्ची गुरु को पहचानने की सही कसौटी है। यही ईश्वर के भवन तक दस्तक देने की एक विशिष्ट प्रक्रिया है। सच्चा गुरु शास्त्रों के सैद्धांतिक पक्ष तक ही सीमित नहीं होता। वह तो प्रायोगिक पक्ष को भी प्रकट करता है। हमें ईश्वर को प्राप्त करने के लिए उसे तत्व से जानना होगा। यह तत्व ज्ञान केवल पूर्ण सद्गुरु ही दे सकते हैं। क्योंकि वह भी ईश्वर का साकार रूप होते हैं। ऐसे पूर्ण सद्गुरु ही अपने शिष्य को कदम कदम पर सही मार्ग दिखाते हैं। तभी जीवन का कल्याण संभव है।