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एक डिग्री तापमान में पहाड़ियों की दुर्गम यात्रा के बाद होते हैं ‘मणि महेश' के दर्शन

मणि महेश यात्रा 24 अगस्त यानी श्री कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर शुरू होकर श्री राधा अष्टमी तक यानी 6 सितंबर तक चलेगी।

By Pankaj DwivediEdited By: Published: Wed, 14 Aug 2019 04:05 PM (IST)Updated: Fri, 16 Aug 2019 09:26 AM (IST)
एक डिग्री तापमान में पहाड़ियों की दुर्गम यात्रा के बाद होते हैं ‘मणि महेश' के दर्शन
एक डिग्री तापमान में पहाड़ियों की दुर्गम यात्रा के बाद होते हैं ‘मणि महेश' के दर्शन

जालंधर [अंकित शर्मा]। श्री अमरनाथ यात्रा से भी कठिन यात्रा मानी जाने वाले मणि महेश की यात्रा के लिए भक्तों का जत्था रवाना हो गया। श्री अमरनाथ गुफा के मार्ग में तापमान 4-5 पांच डिग्री तक होता है, वहीं मणि महेश यात्रा में दुर्गम पहाड़ियां के बीच से गुजरते हुए तापमान एक से दो डिग्री तक पहुंच जाता है। ऐसे में इस यात्रा में सांस लेने की भी मुश्किल होती है। श्रद्धालु बड़ी मुश्किलों के बाद मणि महेश के दर्शन कर पाते हैं।

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यह यात्र यूं तो शुरू हो चुकी हैं मगर अधिकारिक तौर पर 24 अगस्त यानी कि श्री कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर शुरू होकर श्री राधा अष्टमी 6 सितंबर तक चलती है। यहां भक्तों का जत्था शिव शक्ति महासंघ के बैनर तले मणि महेश में लंगर लगाता है। इसके लिए महासंघ के जालंधर यूनिट के सदस्यों ने 18वां सालाना लंगर लगाने के लिए लंगर सामग्री का ट्रक रवाना किया। वहीं यह संस्था लंगर के साथ भक्तों के ठहरने की व्यवस्था व मेडिकल की सेवाएं भी देती है। यात्र शुरू होने से पहले ही सारे प्रबंध करने के लिए संस्थाओं की तरफ से यात्र शुरू होने से 10-15 दिन पहले ही व्यवस्था की जाती है। इस जत्थे में करण पुरी, पुनीत मदान, दीपक सलूजा, सोनू अरोड़ा, मनोज गोयल, वरिंदर सिंगला शामिल हैं।

श्री मणिहेश यात्रा के लिए महासंघ के जालंधर यूनिट के सदस्य जत्था व लंगर सामग्री लेकर रवाना होते हुए।

श्री अमरनाथ यात्र और श्री मणि महेश यात्र का अंतराल

श्री अमरनाथ गुफा 12756 मीटर ऊंची हैं जबकि मणि महेश शिवकुंड की ऊंचाई 13500 मीटर ऊंची है। श्री अमरनाथ यात्र 60 दिनों की होती है और रक्षाबंधन तक चलती है। वहीं, मणि महेश यात्रा श्री कृष्ण जन्माष्टमी से श्री राधा अष्टमी तक लगभग 15 दिन की होती है।

श्री अमरनाथ यात्र के लिए पंजीकरण अनिवार्य है जबकि श्री मणिमहेश यात्रा के लिए ऐसा नहीं है। श्री अमरनाथ यात्रा को बोर्ड चलाता है तो श्री मणि महेश के लिए संस्थाएं ही भक्तों का सहारा बनती हैं। जहां श्री अमरनाथ यात्रा के लिए हेल्थ सर्टिफिकेट अनिवार्य है वहीं श्री मणिमहेश यात्रा के लिए हेल्थ सर्टिफिकेट अनिवार्य नहीं है। श्रद्धालुओं को चेकअप करवा कर जाने की सलाह जरूर दी जाती है।

मणिमहेश जाने के यह मार्ग 

श्री मणिमहेश यात्रा के लिए जालंधर होते हुए पठानकोट 16 किलोमीटर, पठानकोट से चंबा 120 किमी, चंबा से भरमौर 60 किमी, भरमौर से हड़सर 13 किमी, हड़सर से धनछोह 6 किलोमीटर, धनछोह से गौरी कुंड 6 किमी, गौर कुंड से मणिमहेश झील तक 1 किलोमीटर रास्ता है।

हड़सर से शुरू होती है मणि महेश के लिए पैदल यात्रा

भरमौर से हड़सर पहुंचने के बाद यहां सं अगले पड़ाव के लिए यात्र पैदल ही करनी पड़ती है। हड़सर को बेस कैंप कहा जाता है। यहीं ठहरने का प्रबंध है। यहीं लंगर की व्यवस्था होती है। इससे आगे गाड़ियां भी नहीं जाती है और अगला रास्ता पैदल ही पूरा करना पड़ता है। चाहे यात्रा कितनी भी कठिन सही लेकिन भोले के भक्त दर्शन के लिए फिर भी यहां पहुंच जात हैं।

धनछोह पर आकर खत्म होता है यात्रा का आधा रास्ता

हड़सर के बाद धनछो पहला पड़ाव छह किलोमीटर पर आता हैं। यानी कि यात्रा का आधा सफर यहीं तक होता और अधिकतर भक्त यहीं पर रात को ठहरते हैं। अगले दिन सुबह यात्र शुरू करते हैं। यहीं पर छोटे से हिस्से में देश भर की लंगर सेवा सोसायटियां भक्तों के ठहरने व उनके लिए लंगर सेवा करती हैं। यात्रा के साथ यहीं पर रावी दरिया भी साथ चलता जाता है।

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