कोरोना के बाद डेंगू के इलाज के आर्थिक बोझ तले दबे मरीज
कोरोना के बाद अब डेंगू भी लोगों की जेब पर आर्थिक बोझ का कारण बनने लगा है। जिले में मरीजों की संख्या 203 पहुंच गई है और सिविल अस्पताल की अव्यवस्था के कारण लोगों का विश्वास वहां इलाज करवाने से उठता जा रहा है।
जागरण संवाददाता, जालंधर : कोरोना के बाद अब डेंगू भी लोगों की जेब पर आर्थिक बोझ का कारण बनने लगा है। जिले में मरीजों की संख्या 203 पहुंच गई है और सिविल अस्पताल की अव्यवस्था के कारण लोगों का विश्वास वहां इलाज करवाने से उठता जा रहा है। यही कारण है कि लोग निजी अस्पताल को तरजीह दे रहे हैं और वहां उनसे इलाज के नाम पर मनमाने दाम वसूले जा रहे है। राज्य सरकार ने डेंगू टेस्ट के लिए रेट तो निर्धारित कर दिए लेकिन अन्य टेस्ट व एसडीपी (सिंगल डोनर प्लेटलेट) के रेट निर्धारित नहीं करने के कारण निजी अस्पताल मनमाने दाम वसूल रहे हैं। सिविल अस्पताल में दाखिल डेंगू के मरीजों को एसडीपी 6720 में मिलता है वहीं निजी अस्पताल में दाखिल मरीज के लिए एसडीपी प्रति यूनिट की कीमत 8250 रुपये है। शहर के चंद नामी अस्पतालों व ब्लड बैंकों सहित आठ जगह पर ही एसडीपी तैयार कर मुहैया करवाने की सुविधा है। इन सेंटरों में 10 से 17 हजार रुपये प्रति एसडीपी यूनिट भी लिया जा रहा है। सिविल अस्पताल में प्लेटलेट्स जांच के लिए सीबीसी टेस्ट मुफ्त किए जाते है जबकि सरकारी अस्पतालों व लैब में रेट 300 से 500 रुपये तक है। पांच दिन में ही 55 हजार का बिल बन गया
नीतिन कुमार की माने तो उनके मामा को डेंगू हो गया था। उनके प्लेटलेट्स 20 हजार से भी कम हो गए थे। उन्हें आदर्श नगर के पास एक निजी अस्पताल में भर्ती करवाया था। अस्पताल में पांच दिन तक रहे और उनके इलाज के लिए 55 हजार के करीब बिल का भुगतान किया। डाक्टर ने उन्हें एसडीपी के जरिए प्लेटलेट्स चढ़ाने की सलाह दी। सिविल अस्पताल से निराश लौटना पड़ा और निजी अस्पतालों काफी सिफारिश करवाने के बाद 11 हजार में एक यूनिट मिला। एक निजी अस्पताल ने इसकी कीमत 13 हजार भी बताई थी। रेट निर्धारित होना जरूरी
डा. बीआर आंबेडकर ब्लड डोनर्स एसोसिएशन के प्रधान जतिन मट्टू का कहना है कि डेंगू के इलाज को लेकर गरीब जनता मंहगाई के बोझ तले दब रही है। एसडीपी किट का रेट निर्धारित होना जरूरी है। एक प्रतिनिधिमंडल सेहत विभाग के सचिव से मिलेगा और रेट निर्धारित करवाने की गुहार लगाई जाएगी।