दिव्यांगों व बुजुर्गों का दर्द दूर करने के लिए शुरू किया अभियान..ताकि चलती रहे जिंदगी
दैनिक जागरण की टीम ने पूरे पंजाब के जिला मुख्यालयों में सरकारी अस्पतालों का दौरा किया तो जो तस्वीर सामने आई उसने सरकारी तंत्र की कार्यप्रणाली पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं।
जालंधर, जेएनएन। हर किसी की जिंदगी में एक पड़ाव ऐसा आता ही है जब घुटने जवाब दे जाते हैं या टांगों में बल नहीं रहता.. या फिर किसी भी उम्र में दुर्भाग्यवश हादसे या किसी और वजह से चलना मुश्किल हो जाता है। जिंदगी फिर भी चलती है। चलती रहनी चाहिए। पंजाब में शुक्रवार से शुरू हुए जा रहे 'दैनिक जागरण' के इस अभियान का मकसद यही है कि उम्र या दिव्यांगता जिंदगी की रफ्तार न रोके। अस्पताल से लेकर पेंशन दफ्तर या बाहर कहीं भी आना जाना उनके लिए उतना सुलभ हो।
सरकारी अस्पताल हों, दफ्तर हों, बस अड्डे हों या रेलवे स्टेशन, पंजाब में सभी जगह दिव्यांग जनों, बुजुर्गों और बीमार लोगों के लिए क्या व्हीलचेयर्स उपलब्ध हैं? कहने को सरकार ने व्हीलचेयर्स के प्रबंध किए हैं, परंतु क्या जरूरतमंदों की सुविधा के लिए प्रदान की गईं व्हीलचेयर्स का लाभ उन्हें मिल भी रहा है? इस बात की पड़ताल करने के लिए 'दैनिक जागरण' की टीम ने पूरे पंजाब के जिला मुख्यालयों में सरकारी अस्पतालों का दौरा किया तो जो तस्वीर सामने आई उसने सरकारी तंत्र की कार्यप्रणाली पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। अस्पताल में आने वाले मरीजों को उनके तीमारदार कंधों पर उठाए दिखाई दिए और जिन व्हीलचेयर्स का फायदा उन्हें मिलना चाहिए था वह अस्पतालों के ताला बंद कमरों में पड़ी नजर आईं।
पिछले कुछ सालों से सरकार लगातार इस बात पर जोर देती रही कि सभी सरकारी दफ्तरों, अस्पतालों, बस अड्डों, रेलवे स्टेशन और यहां तक की सरकारी स्कूलों में भी रैंप बनवाए जाएं। ताकि जरूरतमंद सीढ़ियों के कारण परेशानी न हो और उन्हें व्हीलचेयर्स का सहारा मिल सके। परंतु यह सब बन जाने के बाद भी समस्या यह है कि अधिकांश जगह व्हीलचेयर की सुविधा ही नहीं है। अगर कहीं है भी तो वहां इनकी संख्या कम है और कई जगह तो पर्याप्त संख्या में व्हीलचेयर होने के बावजूद तो उनका सही इस्तेमाल नहीं होता। 'दैनिक जागरण' की टीम लगातार अभियान के तौर पर अब इस समस्या की पड़ताल करेगी। ताकि व्यवस्था दुरुस्त हो।
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