शहरनामाः मीडिया में छा जाने के लिए शहर से देहात तक पुलिस की 'क्रेडिट वॉर'
अपराधी जूनियर कर्मचारी व अफसर पकड़ते हैं लेकिन मीडिया के सामने क्रेडिट बड़े अफसर ले जाते हैं। उनका नाम कभी-कभार आता। अधिकांश मौकों पर तो जिक्र भी नहीं होता।
जालंधर, जेएनएन। जमीनी कारगुजारी चाहे जैसी हो लेकिन मीडिया में छाने के लिए शहर से लेकर देहात तक पुलिस वालों के बीच 'क्रेडिट वॉर' छिड़ी हुई है। हो भी क्यों ना, अपराधी जूनियर कर्मचारी व अफसर पकड़ते हैं लेकिन मीडिया के सामने क्रेडिट बड़े अफसर ले जाते हैं। उनका नाम कभी-कभार आता। अधिकांश मौकों पर तो जिक्र भी नहीं होता। अब जूनियर्स के सब्र का घड़ा फूटने लगा है। पिछले कुछ दिनों में ही ऐसे मामले सामने आ गए, जब पहले जूनियर मीडिया को जानकारी दे गए, फिर सीनियर उसे आगे भेज रहे हैं।
यह मामला देहात पुलिस का है। एक थाने की पुलिस ने नशा तस्कर पकड़े। पत्रकारों को संदेश आ गया कि बड़े साहब प्रेस कांफ्रेंस करेंगे। इससे पहले कि कांफ्रेंस होती, थाने के अफसरों ने तस्करों के साथ फोटो खिंचवाई और मीडिया को दे दी। बड़े साहब की कांफ्रेंस से पहले ही सारा रायता फैल गया। फिर भी कांफ्रेंस हुई लेकिन बड़े साहब नहीं आए। दूसरे अफसर पहुंचे, शायद उन्हें पता नहीं था। खबरनवीस ने सीधा सवाल दाग दिया कि इसकी तो प्रेस नोट व फोटो थाने ने जारी कर दी, अब किस बात की कांफ्रेंस। बड़े अफसर ने डांटने के अंदाज में पूछा लेकिन मीडिया देख ज्यादा कुछ न कह सके और प्रेस कांफ्रेंस की परंपरा निभा चलते बने।
दूसरा मामला शहर की पुलिस का है। यहां जो परंपरा सीनियर अफसरों ने शुरू की, अब उसे थाने के स्तर पर निभाया जाने लगा है। चौकी किसी अपराधी को पकड़ती है तो थाने वाले अपनी फोटो के साथ उसे मीडिया को भेज देते हैं। बेचारे चौकी वाले को कोई पूछता नहीं। बड़े अफसरों की नजरों को जो छपता है, वही दिखता है, इसलिए एक बार चौकी वालों ने पहले ही मीडिया को फोटो व प्रेस नोट भेज दिया। फिर भी थाने वाले नहीं रुके और अपनी अलग से फोटो खिंचवा कर भेज दी। असल में ऐसा करने को वो अपने स्तर पर प्रेरित नहीं हुए। एक बड़े अफसर की आदत से उन्हें प्रेरणा मिली। वो जब भी कांफ्रेंस करते हैं तो एक ही फोटो खिंचवाते हैं और अपराधियों को लेकर पहुंचे कर्मचारियों को खबरदार कर देते हैं कि अब कोई फोटो नहीं होगी। एक बार तो भरी प्रेस कांफ्रेंस में उनका दर्द भी फूटा कि अखबार वाले बाद में मेरी जगह दूसरी फोटो छाप देते हैं।
कूड़े वाली ब्रांच से बचने का 'जुगाड़' बताओ
मामला निगम की कूड़े वाली ब्रांच का है। अफसर बदल गए और नए आ गए लेकिन इस ब्रांच का चार्ज लेने से सब भाग रहे हैं। अफसर कहते हैं यह ब्रांच ले लो तो सुबह सबसे पहले इसका फोन आता है और रात में सोने से पहले भी इसकी समस्या का ही। उलटा हर रोज के पंगे भी हैं। इसका चार्ज ले लो तो बाकी ब्रांचों का काम तो ठप ही समझो। इससे बड़ी मुश्किल ये है कि नेताओं की नाराजगी भी झेलने को तैयार रहना पड़ता है। कूड़े की समस्या का कोई स्थायी हल तो है नहीं, इसलिए कभी पार्षद तो कभी विधायक से लेकर तमाम दूसरे नेताओं के फोन घनघनाते रहते हैं, ऐसे में सब बचने की कोशिश कर रहे हैं और एक-दूसरे से पूछ रहे हैं, कूड़े वाली ब्रांच से बचने का 'जुगाड़' बताओ।
(प्रस्तुति : टैंगो चार्ली)