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सही क्लेम खारिज किया, ब्याज समेत चुकानी होगी रकम

मरीज का सही मेडिकल क्लेम इंश्योरेंस कंपनी को खारिज करना महंगा पड़ गया।

By JagranEdited By: Published: Fri, 13 Dec 2019 08:46 PM (IST)Updated: Sat, 14 Dec 2019 06:12 AM (IST)
सही क्लेम खारिज किया, ब्याज समेत चुकानी होगी रकम
सही क्लेम खारिज किया, ब्याज समेत चुकानी होगी रकम

जागरण संवाददाता, जालंधर : मरीज का सही मेडिकल क्लेम इंश्योरेंस कंपनी को खारिज करना महंगा पड़ गया। अब उन्हें क्लेम की राशि ब्याज समेत चुकाने के साथ दस हजार का हर्जाना व केस खर्च भी देना होगा। जिला कंज्यूमर फोरम ने मरीज की शिकायत पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिए।

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गुरु गोबिद सिंह एवेन्यू निवासी अनिल कुमार ने फोरम को ओरियंटल इंश्योरेंस कंपनी व ई-मेडिटेक सर्विस लिमिटेड के खिलाफ दी शिकायत में बताया कि उन्होंने अपने, पत्नी आशु आनंद, बेटे भौमिक आनंद व बेटी मांसी आनंद के नाम पर हेल्थ इंश्योरेंस मेडिकल क्लेम हैप्पी फैमिली फ्लोटर पॉलिसी ली थी। पॉलिसी के जरिए उनके किसी भी तरह के इलाज का खर्च कवर होना था। इसके बाद वो अचानक छाती के दर्द समेत कुछ और बीमारियों के चपेट में आ गए। वो 26 दिसंबर 2017 से 28 दिसंबर तक दो दिन जौहल अस्पताल में भर्ती रहे। अस्पताल के कंसलटेंट न्यूरो सर्जन डॉ. सुधीर सूद ने उनका इलाज किया। अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद उन्होंने 20,806 रुपये का इंश्योरेंस क्लेम किया। सात मार्च 2017 को उनका क्लेम खारिज कर दिया गया।

फोरम के नोटिस के जवाब में दोनों पार्टियों ने संयुक्त जवाब दिया कि अस्पताल में शिकायतकर्ता सिर्फ जांच के लिए भर्ती हुए और ओरल दवाओं से ही इलाज हुआ। इस वजह से पॉलिसी की शर्त के मुताबिक क्लेम खारिज किया गया।

दोनों पक्षों को सुनने के बाद फोरम ने टिप्पणी दी कि भले ही कंपनी का यह दावा हो कि वह जांच के मकसद से अस्पताल में भर्ती हुए थे लेकिन डॉक्टर की डिस्चार्ज स्लिप में शिकायतकर्ता को अत्यधिक छाती दर्द, उल्टियां आदि के बारे में लिखा है और वह तब चलने में असमर्थ थे। अगर शिकायतकर्ता को सिर्फ जांच के लिए ही एडमिट किया गया था तो यह संभव नहीं क्योंकि इस काम के लिए कोई अस्पताल मरीज को दो दिन भर्ती नहीं रखेगा। मरीज की हालत को सबसे बेहतर डॉक्टर ही समझ सकता है। अगर डॉक्टर को लगा कि मरीज को भर्ती करना जरूरी है तो साफ है कि शिकायतकर्ता को कोई हार्ट प्रॉब्लम थी, जिसका इलाज संभवत: दवाओं से किया गया। हर बार यह जरूरी नहीं है कि हर मरीज को ड्रिप लगानी पड़े, कई बार सिर्फ दवाओं से ही बीमारी नियंत्रित की जा सकती है। अगर यह डॉक्टर की सुपरविजन में था तो फिर शिकायतकर्ता को सिर्फ जांच के लिए भर्ती नहीं किया गया था। जिसके बाद फोरम ने इंश्योरेंस कंपनी के दावों को खारिज कर दिया। इसके बाद कंपनी को 12 फीसद ब्याज समेत क्लेम की 20,806 रुपये की राशि देने को कहा। इसके साथ ही दस हजार का हर्जाना व केस खर्च भी देने के आदेश दिए।


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