कैप्टन की कुशल रणनीति के ये पांच कारक, मोदी लहर में भी बचाया अपना किला
लोकसभा चुनाव में उत्तर-भारत में पंजाब अकेला ऐसा राज्य साबित हुआ जहां नतीजे कांग्रेस के लिए सुखद रहे। यहां कैप्टन की कुशल रणनीति काम आई।
जेएनएन, जालंधर। लोकसभा चुनाव में उत्तर-भारत में पंजाब अकेला ऐसा राज्य साबित हुआ, जहां नतीजे कांग्रेस के लिए सुखद रहे। यहां दूसरी बार मुख्यमंत्री बने कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस को राज्य की 13 लोकसभा सीटों में से आठ पर जीत दिलाई। भारतीय जनता पार्टी (BJP) के वंशवाद विरोधी अभियान के बावजूद मुख्यमंत्री की पत्नी परनीत कौर पटियाला से चौथी बार सांसद चुनीं गईं।
परनीत कौर ने अपने करीबी प्रतिद्वंद्वी शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के सुरजीत सिंह रखड़ा को 1,62,718 मतों से हराया। हालांकि, अमरिंदर सिंह राज्य के शहरी क्षेत्रों में पार्टी के प्रदर्शन से खुश नहीं हैं। उन्होंने बिना बात घुमाए शहरी निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू का विभाग बदलने की बात कही है, जिससे विकास परियोजनाओं को जल्द से जल्द पूरा किया जा सके।
कैप्टन ने कहा कि पंजाब में शहरी वोट कांग्रेस की मजबूती है, लेकिन विकास कार्य पूरा करने में सिद्धू की असफलता के कारण पार्टी पर प्रभाव पड़ा। उन्होंने कहा कि पार्टी ने इस बार ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन किया है। चुनाव से पहले उन्होंने अपने मंत्रियों और विधायकों से स्पष्ट रूप से पार्टी उम्मीदवारों के लिए काम करने के लिए कहा था। उन्होंने कहा था कि इसमें विफल रहने पर मंत्रियों पर कार्रवाई हो सकती है।
सैन्य पृष्ठभूमि का इस्तेमाल
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अमरिंदर सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा के एजेंडे का मुकाबला करने के लिए अपनी सैन्य पृष्ठभूमि का उपयोग किया और यह सफल रहा, क्योंकि उनके साथी फौजी उनके संदेश से जुड़ गए। कैप्टन समय-समय पर सैन्य कार्यक्रमों में शिरकत करते रहे। कई बाद उन्होंने अचानक जवानों के बीच पहुंचकर उन्हें चौकाया।
बरगाड़ी में राहुल की रैली
भाजपा-शिअद सरकार के दौरान साल 2015 में बहिबलकलां और कोटकपूरा गोलीकांड के मृतकों की याद में यादगार बनाने का उनका वादा भी भाजपा-शिअद के लिए नकारात्मक साबित हुआ। इसके अलावा फरीदकोट के बरगाड़ी में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की रैली करवाने का निर्णय भी सही रहा। यहां से कांग्रेस के मोहम्मद सदीक को बड़ी जीत मिली। हालांकि, इससे पहले विधानसभा चुनाव में सदीक को हार का सामना करना पड़ा था। गौरतलब है कि श्री गुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी के खिलाफ बहिबलकलां में हुए प्रदर्शन के दौरान पुलिस फायरिंग में दो युवकों की जान चली गई थी।
सिख विरोधी दंगों की खुली आलोचना
एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, 'मत परिणाम स्पष्ट रूप से संकेत देते हैं कि मतदाता शिअद-BJP सरकार के दौरान 2015 में हुई घटना को भूल चुके हैं। इससे सिख समुदाय की भावनाएं आहत हुई थीं।Ó इसके अलावा 1984 के सिख विरोधी दंगों के मुद्दे की सार्वजनिक रूप से आलोचना करने के कारण उन्हें वोटों के ध्रुवीकरण का सामना करने में मदद मिली।
जीत के ये प्रमुख कारण
- मंत्रियों पर कार्रवाई का डर दिखाकर उन्हें मजबूती से काम करने को कहा।
- कैप्टन मोदी के राष्ट्रवाद व राष्ट्रीय सुरक्षा के एजेंडे का मुकाबला करने के लिए अपनी सैन्य पृष्ठभूमि का उपयोग किया।
- समय-समय पर सैन्य कार्यक्रमों में शिरकत करते रहे।
- बरगाड़ी मामले में शिअद को घेरने में सफल रहे। यहां राहुल गांधी की रैली भी करवाई।
- 1984 के सिख विरोधी दंगों के मुद्दे की सार्वजनिक रूप से आलोचना करने से नहीं चूके।
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