दो लाख वोट मिलने की वजह तलाश रही बसपा, आंकड़ों के विश्लेषण में जुटे दिग्गज
लोकसभा चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों में अपनी कारगुजारी से सनसनी पैदा करने वाली बसपा भी इन दिनों आत्मविश्लेषण के दौर से गुजर रही है।
जालंधर, [मनुपाल शर्मा]। लोकसभा चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों में अपनी कारगुजारी से सनसनी पैदा करने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भी इन दिनों आत्मविश्लेषण के दौर से गुजर रही है। बसपा के दिग्गज चुनाव में दो लाख से ज्यादा वोट लेने के आंकड़े को पार करने की वजह तलाश रहे हैं। जवाब इस बात का ढूंढा जा रहा है कि ढाई वर्ष पहले हुए विधानसभा चुनाव में बेहद निम्नस्तरीय प्रदर्शन करने वाली बसपा ने ऐसा क्या किया कि इस बार पार्टी को दो दशक से भी ज्यादा समय के बाद दो लाख का आंकड़ा पार करने में सफल हो गई।
बसपा के ही वरिष्ठ नेताओं का तर्क है कि इसमें कोई शक नहीं कि अन्य पार्टियों में जा चुका बसपा का कैडर बीते लोकसभा चुनाव में पार्टी के हक में वापस लौटा, लेकिन इस कैडर के वापस लौटने की वजह बसपा की कारगुजारी हरगिज नहीं है। बसपा ने इस बार आम आदमी पार्टी की तरफ से विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे सुखपाल खैहरा की तरफ से गठित पीडीए (पंजाब डेमोक्रेटिक एलायंस) के साथ चुनावी समझौता कर चुनाव लड़ा और इस समझौते में चार अन्य राजनीतिक पार्टियां भी शामिल थी।
बसपा के नेताओं का तर्क यह है कि जब सुखपाल खैहरा ने आप छोड़ी तो उनके साथ आप कैडर का एक हिस्सा भी उनके साथ चला गया, जिनमें दलित वर्ग भी शामिल था। इसके अलावा कामरेड विचारधारा रखने वाले राजनीतिक दल भी बसपा के साथ समझौते में चुनाव लड़ रहे थे और उनका वोट भी बसपा को ही मिला। बसपा के ही दिग्गज इस बात को भी स्वीकार करते हैं कि बीते ढाई वर्ष में और चुनाव प्रचार के दौरान भी बसपा की तरफ से सिवाय पोस्टमैट्रिक स्कॉलरशिप स्कीम, संविधान में तबदीली करने की केंद्र सरकार की कोशिशों आदि का विरोध करने के अलावा पंजाब की आम जनता के साथ जुड़े मसलों को कभी भी मजबूती से उठाया ही नहीं गया। मात्र दलित केंद्रित पॉलिटिक्स करने से बसपा कभी भी दो लाख का आंकड़ा पार कर ही नहीं सकती थी।
बड़ा सवाल : क्या विस चुनाव में बसपा ऐसा प्रदर्शन कर पाएगी
सवाल यह है कि ढाई साल बाद होने जा रहे पंजाब विधानसभा चुनाव में भी बसपा क्या ऐसा उम्दा प्रदर्शन करने में होगी। अगर दोबारा से इन्हीं छह पार्टियों में चुनावी समझौता होता है और उम्मीदवार बसपा के होते हैं, तो 2019 की कारगुजारी दोहराई जा सकती है। लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है तो इन राजनीतिक पार्टियों के साथ बसपा का समर्थन करने वाला कैडर भी वापस अपनी पार्टियों के साथ चला जाएगा। ऐसे में बसपा के साथ उसी का पुराना कैडर ही बचेगा। ढाई वर्ष बाद बसपा की कारगुजारी कैसी रहेगी, इसका जवाब तो भविष्य के गर्भ में है। लेकिन फिलहाल विश्लेषण कर रहा बसपाइयों का एक गुट जरूर गर्म है कि अगर दो लाख वोट लेने के आंकड़े की सच्चाई की वजह गहराई तक नहीं जानी जाती, तब तक इसे खुद को धोखा देना ही माना जा सकता है। तैयारी इस बात की होनी चाहिए कि ढाई वर्ष बाद बसपा अपनी कम से कम 2019 वाली कारगुजारी को अकेली दोहरा सके।
हरियाणा की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
पंजाब की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप