आजादी के बाद जालंधर से प्रकाशित हुए उर्दू के 12 अखबार, एक भी नहीं बचा सका अस्तित्व Jalandhar News
वर्ष 1950 में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई जिसके अनुसार हिंदुस्तान में 415 उर्दू के अखबार साप्ताहिक पंदरबाड़ा एवं मासिक निकला करते थे।
जालंधर। तब ईस्ट इंडिया कंपनी चौतरफा कदम बढ़ा रही थी, तब वर्ष 1822 में कोलकाता से पहला उर्दू का अखबार ‘जामे जहां’ के नाम से प्रकाशित हुआ था। इसके बाद हिंदोस्तान की आजादी के लिए पहली जंग के बाद वर्ष 1858 में लाहौर से ‘रोजऩामा पंजाब’ के नाम से अखबार पाठकों तक पहुंचा। उन दिनों सरकारी कामकाज फारसी युक्त उर्दू में ही हुआ करता था जैसा कि मुगलों के दौर से चलता आ रहा था।
सन् 1919 की बैसाखी के दिन जो नरसंहार जलियांवाला बाग में हुआ तो महाश्य कृष्ण ने लाहौर से ‘प्रताप’ के नाम से दैनिक अखबार निकाला। उर्दू का यह अखबार लोगों ने हाथों हाथ लिया। महाशय कृष्ण के लेख बड़ी दिलचस्पी से पढ़े जाते थे। इस पर ‘रोज़ाना जि़मिदार’ के संपादक मौलाना अली खां ने एक बार कहा था कि ‘महाश्य कृष्ण कलम से नहीं तेशे से लिखता है।’ वर्ष 1923 की वैसाखी के दिन लाहौर से दूसरा उर्दू दैनिक ‘मिलाप’ के नाम से प्रकाशित हुआ। देश के विभाजन के बाद वर्ष 1950 में बहुत से अखबार लाहौर से हिंदोस्तान आ गए।
वर्ष 1950 में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई जिसके अनुसार हिंदुस्तान में 415 उर्दू के अखबार, साप्ताहिक, पंदरबाड़ा एवं मासिक निकला करते थे। इनमें जालंधर से छपने वाले उर्दू के अखबार भी शामिल थे। दुर्भाग्य है कि 20वीं शताब्दी के अंतिम छोर तक आते-आते अधिकतर उर्दू के समाचार पत्र बंद हो गए। जालंधर से पहला उर्दू में छपने वाला अखबार ‘जै हिन्द’ था, जो बहुत कम समय तक प्रकाशित हुआ। फिर महाशय कृष्ण का ‘प्रताप’ जिसे महाशय वीरेन्द्र एक लंबे समय तक चलाते रहे अंतत: बंद हो गया। यहां हमारा ये बताना अनिवार्य है कि पंजाब में स्वामी दयानंद के आगमन और आर्य समाज का प्रभाव बढ़ने से हिंदी के उत्थान का अनुकूल समय सिद्ध हुआ। इसके अतिरिक्त पंजाबी भाषा के समाचारपत्र भी छपने आरंभ हुए, हम यहां केवल उर्दू के समाचार पत्रों की बात कर रहे हैं।
‘मिलाप’ जो जालंधर से निकलने वाला पहला उर्दू समाचार था, उसका फिल्म एडीशन रंगीन छपना आरंभ हुआ। इसका संपादन महाशय खुशहाल चंद कर रहे थे, उन्होंने कुछ समय के बाद संन्यास ले लिया। इसके बाद रणबीर जी के लेख और यश जी का संपादन मिलाप को प्राप्त हुआ। महाशय खुशहाल चंद आनंद स्वामी के नाम से विख्यात हुए और यश जी राजनीति में सक्रिय हो चुके थे। इसलिए मिलाप में उस दौर में उर्दू के विद्वान लोगों को संपादन करने का अवसर मिला। उर्दू मिलाप को भी वक्त की आंधी जाने कहां ले गई।
उर्दू दैनिक प्रभात मास्टर तारा सिंह के विचारों को लोगों तक पहुंचाने का माध्यम बना। मास्टर तारा सिंह इन दिनों पंजाबी सूबे के लिए संघर्ष कर रहे थे और उनके समाचार पत्र के संपादक थे नानक चन्द नाज़। उर्दू के इस अखबार को भी वक्त संभाल कर न रख सका।
उर्दू दैनिक 'वीर भारत’ को गोस्वामी गणोश जी ने सनातन धर्म के प्रचार व प्रसार के लिए आरंभ किया था। गोस्वामी गणोश दत्त जी महामना मदन मोहन मालवीय जी के निकटतम साथियों में थे। पंजाब में सनातम धर्म के जितने स्कूल कॉलेज बने वे स्वामी गणोश दत्त जी के प्रयास का परिणाम दिखाई देते हैं। वीर भारत के संपादक उस दौर के पंजाब सरकार के राजकवि पंडित मेला राम वफा थे। ये अखबार खिंगरा गेट के सामने राम चौबारे से प्रकाशित होता था। वीर भारत कब वीरगति को प्राप्त हुआ, पता नहीं चला।
उर्दू दैनिक 'प्रदीप’ का कार्यालय जीटी रोड, सिविल लाइंज़ स्थित एक इमारत की पहली मंजिल पर था। इसके संपादक विख्यात साहित्यकार प्रीतम जियाई’ थे। उनके बाद प्रताप अखबार से प्रदीप में आए दीनानाथ वर्मा ने इसका संपादन संभाला। यह अखबार भी लंबी दौड़ न दौड़ सका और उर्दू समाचार पत्रों के इतिहास में दर्ज हो गया।
उर्दू दैनिक ‘अजीत समाचार’ के संपादक डॉ. साधु सिंह हमदर्द थे। हमदर्द साहिब ने कुछ समय तक उर्दू अख़बार प्रभात में काम किया था, इसीलिए उनके पास पत्रकारिता का अनुभव था। वह अच्छे कवि थे इसलिए उनके अखबार में ‘तरहमिस्ना’ के अधीन लोगों को शेयर कहने का सलीका आ गया। कुछ समय के बाद उन्होंने पंजाबी भाषा का अजीत छपवाना आरंभ कर दिया और उर्दू दैनिक अजीत समाचार आंखों से ओझल हो गया। कुछ वषों के बाद उन्होंने एक बार फिर उर्दू दैनिक अजीत समाचार निकालने का प्रयास किया। इसमें मदन मोहन मनोट जैसे अनुभवी पत्रकारों को अपनी काबलियत दिखाने का मौका मिला। उर्दू का यह समाचार पत्र फिर एक दिन अचानक गुम हो गया।
नया दौर नाम से उर्दू दैनिक कांग्रेस के विचारों को जन जन तक पहुंचाने के तत्कालीन मुख्यमंत्री सरदार प्रताप सिंह कैरों के प्रभाव से छपना आरंभ हुआ। इसका कार्यालय पुरानी रेलवे रोड पर स्थित कार वाली कोठी के आंगन में था। इसके संपादक सोहन लाल साहिर थे, जो कपूरथला के राज घराने के करीबी माने जाते थे। ये समाचार पत्र राजनीति के हिचकोले न सह सका और लुप्त हो गया।
उर्दू भाषा दिन-प्रतिदिन समाज से खिसकती जा रही थी। हालांकि दाग देहलवी ने कहा था।
‘नहीं खेला है दाग़ यारों से कह दो
कि आती है उर्दू ज़बां आते आते’
इसी शेयर को अपने जमाने के प्रसिद्ध तंजनिगार ने यूं कहा था नहीं खेल है राजा यारों से कह दो कि जायेगी। उर्दू जबां जाते जाते।
सत्यानंद बांसल जो शाकर के नाम से प्रसिद्ध थे, उन्होंने एक बड़े अखबार की नौकरी छोड़ कर एक उर्दू रोजनामा मेहनत निकाला। उर्दू के पढऩे वाले हिमाचल, हरियाणा, जम्मू कश्मीर व पंजाब के चार क्षेत्रों में उपलब्ध थे। उन तक अखबार पहुंचाना बड़ी मेहनत का काम था। कभी समाचार पत्र मिशन हुआ करते थे। धीरे-धीरे व्यवसाय हो गए। इसीलिए सत्यानन्द शाकर उन हालात से जूझ न सके और उर्दू का यह अखबार पंजाबी में चला गया वह भी उनके एक मित्र द्वारा और शाकर साहिब ने दैनिक टिब्यून में संपादक का पद ग्रहण कर लिया।
उर्दू के इतने अखबार क्यों प्रकाशित हुए, क्यों बार-बार कुछ लोगों में उर्दू भाषा के समाचार पत्रों को लोगों तक पहुंचाने की दिलचस्पी रही। हम समझते हैं कि अकबर इलाहाबादी का यह कथन लोगों को समाचार पत्र का जोखिम उठाने के लिए प्रेरित करता है। उन्होंने कहा था-
न तीर, खंजर, तलवार निकालो
जब तोप मुकाबिल हो, अखबार निकालो
'नया जमाना' नाम से वामपंथी विचारों वाला उर्दू का दैनिक भी निकला। इसके संपादकीय मंडल में प्याज के छिलके जैसा कालम लिखने वाला प्रसिद्ध व्यंग लेखक फिक्र तौंसवी भी था। यह परचा जमाने की हवा का मुकाबला न कर सका और बड़ी मुश्किल से डेढ़ दो दशक पूरा करके स्वयं पूरा हो गया।
कभी प्रताप अखबार की 13 हजार कॉपी बिकी
एक बार प्रताप अखबार का 13 हजार परचा छपा और लोगों तक पहुंचा। यह अखबार हिमाचल में बहुत लोकप्रिय था। तब यह घटना बहुत बड़ी मानी गई। आज देखा जाए तो अखबार लाखों की गिनती में बिकते हैं। प्रताप वह अखबार था जो लिको से हटकर ऑफसेट प्रिटिंग में सबसे पहले गया। प्रदीप की प्रेस नई रेलवे रोड पर हरि पैलेस वाली गली में थी।
आर्य गजर आर्य समाज के प्रचार हेतु उर्दू में निकलने वाला साप्ताहिक था। इसके संपादक थे भीष्म जी थे उनके बाद मदन लाल विरमाणी ने इसका संपादन किया। समय की धूल इसे भी चाट गई।
गुरु घंटाल एक और उर्दू साप्ताहिक था जिसे बनारसी दास रेचन छपवाया करते थे। रेचन साहिब डॉ. राम मनोहर लोहिया के निकट मित्रों में से थे। इसीलिए इस अखबार को समाजवादी विचारों वाला कहा जाता था। रेचन साहिब के देहावसान के बाद यह परचा एक पल ठहर न सका।
आजाद भारत एक उर्दू का अच्छा साप्ताहिक टहल सिंह बागी द्वारा प्रकाशित परचा था। जो अपराध जगत के विरूद्ध झंडा उठाता था। यूं तो बागी साहिब समाजवादी विचारों से प्रभावित थे और एक बड़े अखबार के क्राइम रिपोर्टर भी कहे जाते थे। धीरे-धीरे यह अखबार भी समाप्त हो गया।
पंजाब में हालांकि कई नामवर उर्दू के पत्रकार रहे जिनमें दया किशन गर्दिश, नौहरिया राम दर्द, द्वारका दास निष्काम, हुमा हरनालवी, सैफी काश्मीरी, साहिर सियालकोटी, देसराज शर्मा, जोगिन्द्र पाल भनोट ये सब उल्लेखनीय उर्दू भाषा के अखबार नवीस थे। इनके लेख आज भी कई लोगों को याद हैं।
(प्रस्तुतिः दीपक जालंधरी- लेखक शहर की जानी-मानी शख्सियत और जानकार हैं)