ओलंपियन सुरजीत के लिए अनलकी रहा 7 नंबर, साथी रामप्रताप ने बया की उस खौफनाक रात की दास्ता
जिस दिन विधिपुर फाटक के पास में उनकी कार दुर्घटनाग्रस्त हुई, उस दिन तारीख 7 जनवरी थी। जिस फीएट में वह सफर कर रहे थे, उसका नंबर भी 7 ही था।
जागरण संवाददाता, जालंधर : 34 वर्ष पहले हादसे में काल का ग्रास बने हॉकी ओलंपियन सुरजीत सिंह के लिए नंबर 7 बहुत अनलकी रहा। जिस दिन विधिपुर फाटक के पास में उनकी कार दुर्घटनाग्रस्त हुई, उस दिन तारीख 7 जनवरी थी। जिस फीएट में वह सफर कर रहे थे, उसका नंबर भी 7 ही था। उनके साथी रहे रामप्रताप ने भीगी पलकों के साथ उस मनहूस दिन को याद किया। वह रविवार को 35वें इंडियन ऑयल सुरजीत हॉकी टूर्नामेंट के शुभारंभ के संबंध में सुरजीत हॉकी सोसायटी की तरफ से यहां पहुंचे थे।
राम प्रताप ने बताया कि 7 जनवरी, 1984 को दिन भर वह, ओलंपियन सुरजीत और पंथा सिंह इकट्ठे थे। फिएट कार में जालंधर से वाघा, अमृतसर और बटाला होते हुए गुरदासपुर पहुंचे थे। सुरजीत एक हॉकी बेनिफिट मैच के लिए लोगों से संपर्क साध रहे थे। देर शाम गुरदासपुर से वापस जालंधर के लिए रवाना हुए। उन्होंने बताया कि सर्दियों के दिन थे, अंधेरा घिर चुका था। वह पीछे बैठे थे। पंथा ड्राइविंग सीट पर थे और उनके सुरजीत साथ वाली सीट पर बैठे थे। विधिपुर फाटक के नजदीक पहुंचे तो कार को एकाएक भारी झटका लगा मानो कार किसी गढ्डे में गिर गई थी। इसके बाद कार सड़क से उतरकर दो पेड़ों के बीच जाकर फंस गई। वह बेहोश हो गए। वहां घुप अंधेरा था। आतंकवाद का समय था और शाम ढलते ही सड़कें सूनी हो जाया करती थी।
कुछ देर बाद अकाली लीडर स्व. कुलदीप सिंह वडाला वहा से गुजरे तो उन्होंने उन्हें देखा तो एक थ्रीव्हीलर रुकवाया और अस्पताल पहुंचाने को कहा। थ्री व्हीलर चालक उन्हें करतारपुर अस्पताल ले गया। कुछ होश आया तो मैंने अपने दोनों साथियों के बारे में पूछा, लेकिन किसी ने कुछ नहीं बताया। सुबह मुझे पता चला कि मेरा हमसाया सुरजीत और पंथा दोनों दुनिया छोड़ चुके थे। घटनास्थल पर जो लोग पहुंचे थे उन्होंने बताया कि ओलंपियन सुरजीत काफी देर तक मौत से जूझे। उनका हाथ जमीन पर था और उन्होंने कार से बाहर निकलने के संघर्ष के लिए हाथ से वहां गढ्डा बना दिया था, लेकिन इससे पहले उनको बचाया जा सकता वे इस दुनिया को अलविदा कह गए।
सीपी, डीसी और अन्य ने दी श्रद्धांजलि
इस मौके पर इंटरनेशनल हॉकी खेल चुके पुलिस कमिश्नर गुरप्रीत सिंह भुल्लर ने भी ओलंपियन सुरजीत को याद किया। उन्होंने कहा कि ओलंपियन सुरजीत मजबूत शरीर के मालिक थे और भारी वजन की हॉकी से खेलते थे। विरोधी खिलाड़ियों की तरफ से किए जाने वाले हमलों को अपनी लंबी बाजू से ही निष्कि्त्रय कर देते थे। तब एस्ट्रो टर्फ नहीं हुआ करती थी। घास के मैदानों पर उनका कोई मुकाबला नहीं था। डीसी जालंधर कम अध्यक्ष सुरजीत हॉकी सोसायटी वरिंदर कुमार शर्मा ने कहा की हॉकी और सुरजीत हॉकी टूर्नामेंट के लिए उन्हें जो कुछ भी करना पड़ेगा, वह करेंगे। सुरजीत को सुरजीत रखने में कभी कोई कमी नहीं छोड़ी जाएगी। ओलंपिक सुरजीत को याद कर भावुक हुए सुरजीत हॉकी सोसायटी के मानद सचिव और एडीसी लुधियाना इकबाल सिंह संधू ने कहा कि वह पिछले 34 वर्ष के दौरान एक बार भी सुरजीत की बरसी के दिन को नहीं भूले हैं। उन्हें आज भी हर दिन सुरजीत याद आते हैं और उनकी याद में सुरजीत हॉकी टूर्नामेंट का आयोजन कराना उन्हें सच्ची श्रद्धाजलि देना है।