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शिक्षा की लौ जला रही मुस्कान

पूजा ¨सह, जालंधर देश का विकास तभी संभव है जब वहां के बाशिंदे पढ़े लिखे व समाज हित में सोचने वाले ह

By JagranEdited By: Published: Tue, 30 Jan 2018 01:15 AM (IST)Updated: Tue, 30 Jan 2018 01:15 AM (IST)
शिक्षा की लौ जला रही मुस्कान

पूजा ¨सह, जालंधर

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देश का विकास तभी संभव है जब वहां के बाशिंदे पढ़े लिखे व समाज हित में सोचने वाले होंगे। ऐसी ही लोकतांत्रिक सोच रखने वाले 20 से 30 वर्ष की उम्र के युवा इसी लक्ष्य को लेकर काम कर रहे हैं। जालंधर में लगभग ऐसी ही सोच रखने वाले कुछ लोगों ने दो साल पहले एनजीओ मुस्कान की स्थापना की।

एडवोकेट व आरजे सचिन भारती, का¨स्टग डायरेक्टर पूजा संधू, स्टूडेंट आस्था ¨सगला, फैशन इंडस्ट्री में कार्यरत आशिमादीप, इंजीनियर अमन चौहान, डॉ. जिज्ञासा भारती, प्रज्ञा व बिजनेसमैन गगनजोत अपने काम से जरूरतमंदों की मदद कर रहे हैं। साथ ही गरीब बच्चों को बेहतर शिक्षा देने में भी योगदान दे रहे हैं। दरअसल वे अपने घरों से पुराने कपड़े, राशन आदि जमा करके केवल दस रुपये में जरूरतमंदों को बेचते हैं और उससे जो पैसा जमा होता है उसे सांझ यूनिक स्कूल में दान कर देते हैं। मिट्ठू बस्ती के बड़े गुरुद्वारे के चार कमरों में चल रहे स्कूल को एचएमवी में फिलॉस्फी की प्रोफेसर रहीं कविता विज चलाती हैं।

एडवोकेट सचिन ने बताया कि संस्था के सभी सदस्य समाज सेवा के लिए अलग अलग से काम कर रहे थे। एक दूसरे से मिलकर जब हमने बात की तो सोचा क्यों न इकट्ठे मिलकर काम किया जाए। हमने जरूरतमंदों के लिए खुशियों की दुकान लगाने की सोची। इसके तहत हमारे पास जो भी राशन, कपड़े आदि जमा होते हैं उसे आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को केवल दस रुपये में देते हैं। उससे जो पैसा जमा होता है उसे सांझ यूनिक स्कूल में दे देते हैं। उन पैसों से बच्चों के लिए स्वेटर, जूते, स्टेशनरी खरीदने में मदद मिलती है। उन्होंने बताया कि सांझ स्कूल में प्री नर्सरी और प्राइमरी के बच्चों को शिक्षा दी जाती है। यहां शिक्षा ले रहे कई बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिला भी संस्था ने दिलवाया है। उन्होंने बताया कि फिलहाल सांझ स्कूल में बच्चों को शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा जा रहा। इसके बाद अन्य स्वयं सेवी संस्थाओं में भी ऐसे बच्चों को पढ़ने के लिए भेजा जाएगा।

130 के करीब बच्चे पढ़ते हैं सांझ स्कूल में

कविता ने बताया कि जब वे अपने घर दिलबाग नगर से एचएमवी जाती थी तो रास्ते में कूड़ा बीनते हुए कुछ बच्चों को देखती थी। उन्हें देखकर सोचा कि इन बच्चों की पढ़ाई के लिए कुछ करना चाहिए। रिटायर होने के बाद घर से एक चादर लाकर बच्चों के लिए कुछ कॉपी और किताबें लेकर उनको पढ़ाना शुरू किया। पहले तो चार-पांच बच्चे ही पढ़ने आए लेकिन जब उन्हें खाने को भी चीजें मिलने लगी तो काफी बच्चे आने लगे। अब करीब 130 बच्चे यहां पढ़ते हैं।


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