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आपसी फूट मारे गए थे 13 हजार सिख सैनिक, 176 साल बाद शहादत पर सिख कौम ने किया पश्चाताप

176 साल बाद सिख कौम ने बाबा बीर सिंह नौरंगाबादी व सिख जरनैलों की कुर्बानी को याद कर क्षमा मांगी। सन् 1844 में अंग्रेजों व डोगरा राजाओं के हमले में 13 हजार से ज्यादा सैनिक मारे गए थे।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sun, 11 Oct 2020 12:00 PM (IST)Updated: Sun, 11 Oct 2020 12:00 PM (IST)
आपसी फूट मारे गए थे 13 हजार सिख सैनिक, 176 साल बाद शहादत पर सिख कौम ने किया पश्चाताप
अमृतसर में पश्चाताप कार्यक्रम में शामिल ज्ञानी हरप्रीत , ज्ञानी रघुबीर, गोबिंद सिंह लोगोवाल व ज्ञानी मलकीत सिंह। जागरण

जेएनएन, अमृतसर/कपूरथला। महान शासक महाराजा रणजीत सिंह के देहांत के बाद सिखों में पड़ी आपसी फूट के कारण शहीद हुए बाबा बीर सिंह नौरंगाबादी, सिख जरनैलों व करीब 13 हजार सैनिकों को याद करते हुए 176 साल बाद सिख कौम ने पश्चाताप किया।

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श्री अकाल तख्त साहिब पर शनिवार को अखंड पाठ साहिब के भोग के बाद इस घटना पर खेद व्यक्त करते हुए शहीद बाबा बीर सिंह, सिख जरनैलों व सैनिकों की शहादत के लिए क्षमा याचना की गई। श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कहा कि सिखों को हमेशा विरोधियों की चाल का शिकार होना पड़ा है।

तख्त श्री केसगढ़ साहिब के जत्थेदार ज्ञानी रघुबीर सिंह ने कहा कि कौम को सिख विरोधी साजिशों से सचेत रहना होगा। श्री अकाल तख्त साहिब के पूर्व जत्थेदार जसबीर सिंह रोडे, SGPC के अध्यक्ष गोबिंद सिंह लोंगोवाल, बाबा जगजीत सिंह हरखोवाल ने भी सिखों को आपसी विरोधाभास खत्म करने की अपील की।

यह है मामला

सिख इतिहास के अनुसार महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद सिखों जरनैलों व छोटे शासकों में आपसी फूट से गृहयुद्ध छिड़ गया। इसका लाभ उठाते हुए अंग्रेजों व डोगरा राजाओं ने कुछ सिख जरनैलों व सैनिकों को अपनी सेना में शामिल कर लिया। बाबा बीर सिंह सैनिक के साथ-साथ उपदेशक व संत भी थे। उन्होंने तरनतारन के पास नौरंगाबाद गांव में अपना डेरा स्थापित किया था। वे महाराजा रणजीत सिंह के सच्चे शुभचिंतक थे।

उन्होंने अपनी सेना भी तैयार की थी। सिख साम्राज्य को अपने साम्राज्य में मिलाने में अंग्रेजों के सामने वे बड़ी चुनौती साबित हो रहे थे। बाबा बीर सिह नौरंगाबादी की सेना में शामिल महाराजा रणजीत सिंह के बेटे पिशोरा सिंह व कश्मीरा सिंह, जरनैल हरि सिंह नलवा के बेटे जवाहर सिंह समेत अन्य सिख सैनिकों ने खुद को विरोधी सेना के हवाले करने से इन्कार कर दिया।

इसके बाद डोगरा राजाओं ने अंग्रेजों के साथ समझौता करके संयुक्त सेना को पंजाब में प्रवेश करवा दिया। बाबा बीर सिंह ने इसका कड़ा विरोध किया। अंग्रेजों ने 7 मई, 1844 को डोगरा राजाओं व सिख सैनिकों के साथ बाबा बीर सिंह के डेरे पर हमला कर दिया। हरिकेपत्तन के पास हुए इस हमले के जवाब में बाबा बीर सिंह ने हमला करने से इन्कार कर दिया, क्योंकि दूसरी तरफ भी सिख सैनिक ही लड़ रहे थे, लेकिन अंग्रेजों व डोगरा राजाओं की सेना ने 13 हजार सिख सैनिकों को तोप के गोलों से उड़ा दिया गया था।

इसलिए किया पश्चाताप

संत जगजीत सिंह हरखोवाल ने श्री अकाल तख्त साहिब के समक्ष यह प्रस्ताव रखते हुए कहा था कि यह घटना सिख कौम के लिए कलंक है। उनके प्रस्ताव पर पिछले माह हुई बैठक में श्री अकाल तख्त साहिब ने SGPC को आदेश दिए थे कि यह घटना घटना सिखों की आपसी गुटबाजी का इतिहास प्रस्तुत करती है।

SGPC सिखों की प्रतिनिधि संस्था है, इसलिए इस घटना का पश्चाताप करना चाहिए और स्वीकार करना चाहिए कि सिखों से बड़ी गलती हुई। हरखोवाल ने इसे एतिहासक कदम बताते हुए कहा कि इस दुखदाई घटना के कारण सिख कौम को हजारों जांबाज सैनिकों व महापुरुषों को खोना पड़ा। इस धब्बे को मिटाना मुश्किल है, लेकिन हम आने वाली पीढ़ी के आगे अच्छी मिसाल छोड़ कर जा सकते हैं। 


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