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वैवाहिक जीवन में सुख-शांति के लिए करें मां कात्यायनी की पूजा

नवरात्र के छठे दिन मां दुर्गा के स्वरूप माता कात्यायनी की पूजा की जाती है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 21 Oct 2020 03:17 PM (IST)Updated: Thu, 22 Oct 2020 07:21 AM (IST)
वैवाहिक जीवन में सुख-शांति के लिए करें मां कात्यायनी की पूजा
वैवाहिक जीवन में सुख-शांति के लिए करें मां कात्यायनी की पूजा

संवाद सहयोगी, दातारपुर : नवरात्र के छठे दिन मां दुर्गा के स्वरूप माता कात्यायनी की पूजा की जाती है। धर्मपुर देवी मंदिर कमेटी के जगमोहन परमार ने कहा कि मान्यता है कि मां कात्यायनी की पूजा करने से शादी में आ रही बाधा दूर होती है और भगवान बृहस्पति प्रसन्न होकर विवाह का योग बनाते हैं। अगर सच्चे मन से मां की पूजा की जाए तो वैवाहिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।

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जगमोहन परमार ने कहा कि मान्यता है कि महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इसलिए उन्हें कात्यायनी कहा जाता है। मां कात्यायनी को ब्रज की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गोपियों ने श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए यमुना नदी के तट पर मां कात्यायनी की ही पूजा की थी। कहते हैं कि मां कात्यायनी ने ही अत्याचारी राक्षस महिषाषुर का वध कर तीनों लोकों को उसके आतंक से मुक्त कराया था।

मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला और भव्य है। इनकी चार भुजाएं हैं, मां कात्यायनी के दाहिनी तरफ का ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में और नीचे वाला वरमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपरवाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। मां कात्यायनी सिंह की सवारी करती हैं। मां कात्यायनी का पसंदीदा रंग लाल है। मान्यता है कि शहद का भोग पाकर वह बेहद प्रसन्न होती हैं। नवरात्रि के छठे दिन पूजा करते वक्त मां कात्यायनी को शहद का भोग लगाना शुभ माना जाता है।

मां कात्यायनी की पूजा विधि

-नवरात्रि के छठे दिन स्नान करके लाल या पीले रंग के वस्त्र पहने।

-सबसे पहले घर के पूजा स्थान में देवी कात्यायनी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।

-गंगाजल से छिड़काव करके शुद्धिकरण करें।

-मां की प्रतिमा के आगे दीपक रखें।

- हाथ में फूल लेकर मां को प्रणाम कर उनका ध्यान करें।

-उन्हें पीले फूल, कच्ची हल्दी की गांठ और शहद अर्पित करें।

- धूप-दीपक से मां की आरती उतारें।

- आरती के बाद प्रसाद वितरित कर स्वयं भी ग्रहण करें।


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