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मौत के दूत बन कर सड़कों पर दौड़ रहे अनफिट वाहन

हर साल सड़क हादसों में सैंकड़ों लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं और इससे भी अधिक लोग घायल हो जाते हैं।

By JagranEdited By: Published: Thu, 26 Nov 2020 03:48 AM (IST)Updated: Thu, 26 Nov 2020 03:48 AM (IST)
मौत के दूत बन कर सड़कों पर दौड़ रहे अनफिट वाहन
मौत के दूत बन कर सड़कों पर दौड़ रहे अनफिट वाहन

जागरण संवाददाता, होशियारपुर

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हर साल सड़क हादसों में सैंकड़ों लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं और इससे भी अधिक लोग घायल हो जाते हैं। गंभीर विषय तो यह है कि सड़क हादसों में मरने वालों का आंकड़ा हर साल बढ़ जाता है। जब नया वाहन सड़क पर उतरता है तो उसे पहले ही मोटा टैक्स वसूल लिया जाता है पर इसके बदले में मिलती हैं टूटी सड़कें और घटिया व्यवस्था। इन टूटी सड़कों के कारण वाहन अपनी आयु भोगने से पहले ही कंडम हो जाते हैं। बाद में यह कंडम वाहन सड़क पर मौत के दूत बनकर दौड़ते हैं। कुल मिलाकर हादसों का कारण कंडम वाहन भी बनते हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं जिसमें हादसा केवल वाहन के कंडम होने के कारण हुआ और जिसमें जान चली गई। सड़कों पर दौड़ते हुए वाहनों में टायर फटना, एक्सल टूटना, मोटरसाइकिल के अगले पहिए का अलग हो जाना या फिर शार्ट सर्किट हो कार को आग लगने जैसी घटनाएं होती हैं। इन सबके पीछे का कारण केवल एक है इनका फिट नहीं होना होता है। यदि वाहन फिट होंगे तो कम से कम ऐसे हादसे होने से टल सकेंगे और कीमती जानें बच सकेगीं। हैरानी वाली बात तो यह है कि परिवहन विभाग कभी इस तरफ ध्यान ही नहीं देता और वह केवल सीट बेल्ट, हेलमेट, लाईसेंस के चालान काटकर अपनी पीठ थपथपाते नहीं थकते। कभी यह जानने की कोशिश तक नहीं की गई कि जिस वाहन का चालान काटा जा रहा है क्या वह सड़क पर दौड़ने के काबिल भी है या नही। आंकड़ों की बात की जाए तो साल 2015 से अब तक 2354 दुर्घटनाएं वाहनों की जर्जर हालात के चलते हुई हैं। कुल सड़क दुर्घटनाओं में लगभग नौ से दस फीसदी वाहनों की जर्जर हालत के चलते होती हैं। --- सरकारी वाहन भी हद से जायदा कंडम, कैसे चलेगा काम

बात सरकारी वाहनों की हो तो उसमें सबसे पहला नाम रोडवेज का आता है। हालात यह हैं कि रोडवेज के खुद के भारी संख्या में वाहन कंडम हो चुके हैं, फिर भी इन्हें सड़कों पर दौड़ाया जा रहा है। इन बसों से केवल कमाई की जाती है। इनमें सुधार के लिए कोई कदम नहीं उठाए जाते। होशियारपुर डिपो में तो 60 प्रतिशत बसों की स्थिति ठीक नहीं है। जो बसें सड़कों पर दौड़ रही हैं, वह काम चलाऊ हैं। कुछ बसों के इतने बुरे हाल हैं कि सीटें भी फटी हुई हैं। वहीं कई बसों की खिड़कियों का बुरा हाल है जो सही ढंग से बंद ही नहीं होती और कड़ाके की सर्दी में इन बसों में सफर करना अपने आप पर जुल्म करने जैसा लगता है। कई बसों के खिड़कियों के शीशे भी टूटे हुए हैं। होशियारपुर में रोडवेज का बसों का बेड़ा कंडम हो चुका है। जिला में रोडवेज के बेड़े में 116 बसें हैं और लगभग 60 फीसद बसें कंडम हो चुकी हैं। कंडम बसें चल रही हैं वह यात्रियों की जिदगी को दांव पर लगा रही हैं। न फाग लाइटें न ही रिफ्लेक्टर फिर भी दौड़ते हैं सड़कों पर वाहन

सबसे अधिक हादसे होने का खतरा तेज बरसात या फिर धुंध में होता है। चूंकि ऐसे मौसम में विजिबिलटी काफी कम हो जाती है। जिस कारण पता ही नहीं चल पाता है कि वाहन की दूसरे वाहन से कितनी दूरी पर है। सड़कों पर दौड़ने वाले 50 फीसदी से अधिक वाहन ऐसे हैं जो इन कमियों से जूझ रहे हैं। इन वाहनों में न तो फाग लाइट है न ही रिफ्लेक्टर यहां तक कि सस्ते में चलने वाला काम यानी वाहनों के पीछे रेडियम लगाना तक भी लोग जरूरी नहीं समझते और हादसे का शिकार बन बैठते हैं। पिछले साल मेहटियाना रोड पर ट्राली के साथ टकराने से इसी कारण स्कूटी चालक की मौत हो गई थी। सबसे अधिक समस्या जुगाड़ करके तैयार किए वाहनों में होती है। इन वाहनों में बैक लाइट नहीं होती और यही सबसे अधिक हादसों का कारण बनते हैं जिसमें ट्रैकटर ट्राली मुख्य है। इसके अलावा लोग कभी यह जानने की कोशिश भी करते कि उनकी बैक लाइट जल रही है कि नहीं। सड़क सुरक्षा सप्ताह के दौरान रेडियम लगाकर केवल औपचारिकता निभाई जाती है। सबसे गंभीर बात तो यह है कि वाहनों के लिए अनिवार्य सुरक्षा मानक जैसा कोई प्रावधान अभी देश के पास नहीं है हुआ है। वाहनों के फिटनेस की नहीं होती है जांच

सड़क पर वाहनों की जांच के समय वाहनों की फिटनेस पर सवाल नहीं उठाए जाते हैं। इसको लेकर कोई चालान हुआ। ट्रैफिक पुलिस भी केवल सीट बेल्ट, हेलमेट, लाइसैंस, रेड लाइट क्रास करने संबंधी चालान काटकर काम चला रहे हैं। लोगों को सुरक्षा संबंधी प्रशासन की तरफ से यही पाठ पढ़ाया गया कि यदि हेलमेट नहीं तो चालान, सीट बैल्ट नहीं तो चालान। हादसों को रोकने के लिए क्या आवश्यक है इस तरफ कभी ध्यान ही नहीं गया।

--- गाड़ी चलाते समय कुछ ऐसे बरतें सावधानी:-

-गाड़ी की रफ्तार लिमिट में हो।

-गाड़ी की ब्रेक दुरुस्त होना जरूरी ।

-वाहन को ओवरटेक करने से पहले स्थिति का आंकलन जरुरी।

-वाहन को हमेशा अपनी साइड में ही चलाएं।

-मोड़ पर मुड़ते समय सौ मीटर पहले ही इंडीकेटर दें।

-गाड़ी के आगे-पीछे रिफ्लेक्टर लगे होने चाहिए।

-गाड़ी के वाइपर ठीक होने जरुरी।

-सभी लाइटें ठीक हों, हो सके तो रेडियम भी लगा हो ताकि पीछे चलने वाला वाहन दूर से देख सके।


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