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निगम के लिए ख्वाब बनकर रह गई है ट्रेंक्यूलाइजर गन

शहर में बेसहारा पशुओं की समस्या के लिए चाहे प्रशासन और निगम समय-समय पर बड़े दावे करता है लेकिन जमीनी हकीकत किसी से छिपी नहीं है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 05 Jul 2021 05:39 PM (IST)Updated: Tue, 06 Jul 2021 06:32 AM (IST)
निगम के लिए ख्वाब बनकर रह गई है ट्रेंक्यूलाइजर गन
निगम के लिए ख्वाब बनकर रह गई है ट्रेंक्यूलाइजर गन

जागरण संवाददाता, होशियारपुर : शहर में बेसहारा पशुओं की समस्या के लिए चाहे प्रशासन और निगम समय-समय पर बड़े दावे करता है, लेकिन जमीनी हकीकत किसी से छिपी नहीं है। यह दावे केवल मीटिग और दस्तावेजों तक सीमित होकर रह गए हैं। हैरानी की बात है कि प्लानिग से काम करने की बात तो दूर जो प्लानिग बनाई गई है वह अभी तक अधूरी पड़ी है। इसकी जीती जागती उदाहरण निगम की ओर से लावारिस पशुओं को पकड़ने के लिए ट्रेंक्यूलाइजर गन खरीदने की योजना से मिलती है। अभी तक नगर निगम इस बेहोश करने वाली गन की पहुंच से कोसों दूर है। इसे इसलिए खरीदना था कि कई बार सांड बेहद खतरनाक हो चुके होते हैं और पकड़ते वक्त पशु हमला कर देते हैं। गन की मदद से इन्हें पहले बेहोश किया जाता है, बाद में कैटल पाउंड छोड़ा जाता है। लगभग चार साल बीतने के बावजूद योजना को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका। हालात ऐसे हो गए हैं कि सड़कों पर बेसहारा पशु घूमते हुए कहीं न कहीं हादसे का कारण बन जाते हैं। इससे पता लगता है कि निगम व प्रशासनिक अधिकारी समस्या के हल के लिए कितने गंभीर हैं।

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आज तक नहीं मिला बजट

करीब तीन साल पहले निगम ने पशुओं को बेहोश करने वाली गन (ट्रेंक्यूलाइजर) के लिए हाउस में प्रस्ताव पास करके सरकार को भेजा गया था जिसे सरकार ने मंजूर भी कर लिया था। लेकिन सूत्रों की मानें तो गन के लिए दो से चार लाख रुपये तक का बजट नहीं मिल पाया। इस कारण काम अधर में रुका है। बछड़े व गायों को पकड़कर कैटल पाउंड तक पहुंचा कर निगम अपनी पीठ थपथपा देता है। समस्या उस समय घातक बन जाती है जब खतरनाक सांडों आतंक मचाते हैं क्योंकि इन्हें न तो कैटल कैचर द्वारा पकड़ा जा सकता है और न ही किसी और तरीके से। इन्हें पकड़ने के लिए केवल यह गन ही कारगर है।

जल्द खरीदी जाएगी गन

ट्रेंक्यूलाइजर गन के बारे में पूछे जाने पर मेयर सुरिदर कुमार छिदा ने बताया कि इस मामले में जल्द ही फैसला लेंगे। मीटिग में डिस्कस करने के बाद इसे खरीदा जाएगा, चाहे जितना भी बजट रखना पड़े। यह काम प्राथमिकता के आधार पर किया जाएगा, ताकि लोगों को बेसहारा पशुओं से निजात मिल सके।


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